जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी और मण्डन मिश्र का प्रसंग भाग ५


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कुमारिल का आदेश पाकर शंकराचार्य मण्डन मिश्र से मिलने के लिए गए । मण्डन मिश्र उस समय समस्त विद्वन्मण्डली के सिरमौर थे । ये अद्वैत से भिन्न मतावलंबियों के नेता थे तथा उनके प्रबल पक्षपाती थे । अतः शंकराचार्य के लिए अपना प्रभाव इस देश में जमाने के लिए इनके उपर विजय प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक था । इनको शास्त्रार्थ में परास्त करना भारत के समस्त पंडितों को परास्त करना था तथा किसी मत को फैलाने के लिए किसी दार्शनिक सिद्धांत का प्रचार प्रसार करने के लिए इनकी सहायता तथा सहानभूति प्राप्त करना नितांत आवश्यक था: अतः शंकराचार्य ने सर्वप्रथम इन्हीं को शास्त्रार्थ में पराजित करना उचित समझा । मण्डन के साथ शंकर का शास्त्रार्थ बड़ा प्रसिद्ध है तथा अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण भी है । शंकराचार्य ने अपना दिग्विजय यही से प्रारंभ किया था तथा अपने सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करना शुरू किया । इस शास्त्रार्थ के बाद शंकर का सिक्का सारे भारतवर्ष पर जम गया । परन्तु इस ऐतिहासिक शास्त्रार्थ का विवरण उपस्थित करने के पूर्व मण्डन मिश्र की अलौकिक विद्वता व्यापक प्रभाव , लोकोत्तर व्यक्तित्व तथा अप्रतिम प्रतिभा को जानना अत्यन्त आवश्यक है , यहा पहले इन्हीं विषयों को पाठक के सामने उपस्थित किया जाता है ।  

मण्डन मिश्र का जीवन वृत - मण्डन का व्याक्तिगत नाम विश्वरुप था । परन्तु पण्डित मण्डली स्वरूप होने कारण ये संभवतः मण्डन के नाम से प्रसिद्ध थे । माधव के कथनानुसार इनके पिता का नाम हिममित्र था । आनन्दगिरि ने इन्हें भट्ट कुमारिल का बहनोई लिखा है परन्तु आनन्दगिरि का यह कथन कहा तक ठीक है यह कहा नहीं जा सकता । यह बड़े दुःख का विषय है कि इतने बड़े विद्वान की जन्मभूमि का निर्णय अभी तक नहीं हो सका है। मैथिली पण्डितो का यह कथन हैं कि मण्डन मिश्र मिथिला के निवासी थे और दरभंगा के पास स्थान बतलाया जाता है । जहां शंकराचार्य का इनकी विदुषी पत्नी भारती के साथ वह संस्मरणीय शास्त्रार्थ संपन्न हुआ था ।माधव ने शंकर दिग्विजय में माहिष्मती नगरी को इनका निवास स्थान माना है । यह नगरी आजकल मध्य भारत की इन्दौर रियासत में नर्मदा के किनारे मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध है । माहिष्मती नाम एख छोटी सी नदी भी है जो नर्मदा में स्थान पर मिलती है। माहिष्मती और नर्मदा के संगम पर ही मण्डन मिश्र का विशाल प्रसाद सुशोभित था आज कल इस प्रसाद के खण्डहर मिलते हैं जहां पर थोड़ी 

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आनन्दगिरि शंकर विजय पृ ० १८१ ( मद्वगिनीभर्ता मण्डन मिश्र सर्वज्ञ इव सकल विद्यासु पितमह इव विद्यते) 

माधव शं० दि० ८/१ 

सी जमीन खोद लेने से भी ही भस्म से समान धूसरी मिट्टी मिलती है, जिससे मालूम होता है कि इस स्थान पर यज्ञ अवश्य हुआ होगा । बहुत संभव है कि मण्डन मिश्र का जन्म मिथिला में हुआ हो और मान्धाता नगरी, पवित्र स्थान समझकर अथवा किसी राजा का आश्रय प्राप्त कर अपनी कर्मस्थली बनाया हो मैथिली पण्डितो में आज भी यही ख्वाति है कि बनगांव मिहिसी नामक गांव वर्तमान सहरसा जिले में ) मण्डन मिश्र की जन्मभूमि है । 

जय श्री कृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी

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