जगतगुरु शंकराचार्य जी और शारदा के बीच शास्त्रार्थ का प्रसंग भाग ६


                                   ॐ

अपने पति के विषम पराजय से शारदा के मन में नितान्त क्षोभ उत्पन्न हुआ । उन्हें इस बात का विश्वास न था कि कोई पंडित शास्त्र तथा तर्क से उनके पति को हराने में कभी समर्थ होगा। जिस घटना की स्वप्न में भी कभी आशा नहीं की जाती थी, अत्यन्त वही घटना घटी। परन्तु उन्हें अपनी विद्वत्ता पर पूरा भरोसा था । आचार्य शंकर अलौकिक प्रतिभा संपन्न अवश्य थे , परन्तु शारदा देवी मे शास्रनुशीलन व्यापक पण्डित्य , नवीन कल्पना तथा लोकातीत प्रतिभा की किसी प्रकार कमी नहीं थी । उन्हें इस बात का पूरा विश्वास था कि बड़ा से बड़ा भी विद्वान तर्कयुद्व में उनके सामने टिक नहीं सकता । उन्होंने शंकर को इन शब्दों में चुनौती देते हुए शास्त्रार्थ के लिए ललकारा । 

शारदा -हे विद्वान ! अब तक आपने मेरे पति के उपर आधी सही विजय पायी है । मैं उनकी अर्द्धांगिनी हूं और उसे आपने अभी नहीं जीता है। पहले मुझे जीतिए ,तब मेरे पतिदेव को अपना शिष्य बनाने का प्रयत्न कीजिए । 

शंकर - मैं तुम्हारे साथ विवाद करने के लिए उद्यत नहीं हूं क्योंकि यशस्वी पुरूष महिला जनो के साथ कभी वाद नहीं करते। 

शारदा - परन्तु मै आपके सिद्धांत को मानने के लिए तैयार नहीं हूं । अपने मत के खण्डन करने के लिए जो व्यक्ति चेष्टा करता हो उसे जीतने के लिए अवश्य प्रयत्न करना चाहिए - यदि अपने पक्ष की रक्षा करना उसे अभीष्ट हो । क्या आपने महर्षि याज्ञवल्क्य और राजर्षि जनक के दृष्टान्तो को भूला दिया हैं जिन्होंने अपने पक्ष की रक्षा करने के लिए क्रमश: गार्गी तथा सुलभी के साथ शास्त्रार्थ किया था । क्या स्री से शास्त्रार्थ करने के कारण ये लोग यशस्वी नहीं हुए ?  

इस तर्क के सामने शंकर मौन हो गए । और विवश होकर वे शास्त्रार्थ करने के लिए उद्यत हुए । अपूर्व समारोह था । वादिनी थी भारत की सर्वशास्त्र विशारदा शारदा और प्रतिवादी थे शंकर के अवतारभूत अलौकिक शेमुषी सम्पन्न आचार्य शंकर । पण्डित मण्डली के लिए यह दृश्य नितांत कौतूहल का विषय था उन्होंने शारदा की विद्वता की रोचक कहानियां सुन रखी थी परन्तु उनके परखने का यह अयाचित अवसर पाकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा । इन दोनों के बीच नाना शास्त्रों के रहस्य तथा तथ्यों के विषय में गहरा शास्त्रार्थ होने लगा । शारदा प्रश्न करती शंकर उनका परम संतोषजनक उत्तर देते थे । जगत का कोई भी शास्त्र अछूता न बचा । लगातार सत्रह दिन तक यह वाचिक मल्ल युद्ध होता रहा । इधर प्रश्न पर प्रश्न होते थे और उधर प्रत्येक का उत्तर देकर संतोष उत्पन्न किया जाता था अर्थशास्त्र धर्मशास्त्र तथा मोक्षशास्त्र इन तीनों शास्त्रों के विवेचनीय शास्रों के उपर लगातार शास्त्रार्थ होता रहा । परन्तु शंकराचार्य अजेय हिमालय की तरह अपने पक्ष के समर्थन में डटे रहे । जब शारदा ने अपने प्रतिपक्षी की यह विलक्षणता देखी तब उनके मन में अकस्मात एक नवीन विचार धारा का उदय इस प्रकार हुआ -
इन्होंने तो बालकपन से ही संन्यास ग्रहण किया है और संन्यासियों के समस्त नियमों का भली भांति पालन तथा रक्षण किया है । काम शास्त्र से भला ये किस प्रकार से परिचित हो सकते हैं? इनकी विरक्त बुद्धि भला इस गहन शास्त्र में प्रवेश कर सकती हैं? काम शास्त्र ही इनके पाण्डित्य का दुर्बल अंश है ।क्यो न मैं इस शास्त्र के द्वारा इनको परास्त कर अपने पति को प्रतिज्ञा से मुक्त करू ? 

यह विचारकर शारदा ने काम शास्त्र विषयक ये अदुभत प्रश्न किए- भगवन् काम की कितनी कलाएं होती है? इनका स्वरूप क्या है ? वे किस स्थान पर निवास करती है? शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष में इनकी स्थिति एक समान रहती है अथवा भिन्न हुआ करती ? पुरूष में तथा युवती में इन कलाओ का निवास किस प्रकार से होता है ? 

 
            कला: कियन्त्यो वद पुष्पधन्वन: ,
                   किमात्मिका: किञ पदं समाश्रिता:।
           पूर्वे च पक्षे कथमन्यथा स्थिति: ,
               कथं युवत्या कथमेव पूरूषे ।। श० दि ० १/६१ 

प्रश्न सुनते ही शंकर की मानसिक दशा में बड़ा परिवर्तन हो गया। उनकी विचित्र दशा थी वो वे बड़े धर्म - संकट में पड़ गये । यदि प्रश्न उतर नहीं देते तो अल्पज्ञता का दोष उनके माथे पर मढ़ा जाता और यदि देते हैं तो संन्याधर्म का विनाश होता है । हृदय में यह विचारकर संन्यासियों के नियम की रक्षा करते हुए काम शास्त्र से अनभिज्ञ के समान उन्होंने इन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए एक मास के अवधि मांगी । शारदा को इसमें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं थी । वह समझती थी कि एक मास के भीतर ही उनमें कौन सा परिवर्तन हो जायगा! जैसे ये आज काम शास्त्र से अनभिज्ञ हैं इसी प्रकार एक मास के अनन्तर भी वे उसी प्रकार इस शास्त्र से अपरिचित बने रहेंगे । उन्होंने सहर्ष सम्मति दे दी । अकाल मे ही यह तुमल शास्त्रार्थ समाप्त हुआ। 

जय श्री कृष्ण 
दीपक कुमार द्विवेदी

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