सनातनी विचारधारा क्या है सभी विचारधारा की जननी सनातनी विचारधारा को क्यों कहा जाता है ?

                    

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इस कालखंड मे विश्व की जितनी विचारधारा उनमें पंथ और वाद शब्द का प्रयुक्त किया जाता जहां वाद पंथ लग जाता है वहां पर वाद विवाद होने की संभावना खत्म हो जाती है । जब विचारो आदन प्रदान होने की संभावना समाप्त हो जाती है । वही वैचारिक संघर्ष पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है एक विचारधारा दूसरे को बर्दाश्त नहीं करती है ‌ । जो व्यक्ति या वर्ग हमारी विचारधारा को नहीं मानता उसका गला कटना शुरू हो जाता है । दुनिया भर ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे अपने मत या विचारधारा के वर्चस्व को कायम रखने के लिए नरसंहार हुए । उसमें इस्लाम वामपंथ ईसाई तीनों ऐसे विचार है । जो अपने के आलवा दूसरे के विचार को सहन नहीं कर सकते हैं । जो कह दे वो वही सत्य है । जो उनके विचारो को नहीं माने उसे इस दुनिया में जीने का कोई अधिकार नहीं है । इस विषैले माहौल में एक विचारधारा अमृत के सामान है । जिसमें दुनिया भर की सभी विचारधारा समहित हो सकती है । वह सनातनी विचारधारा का जिसका आदि है न अन्त जैसे समुद्र में हजारों नदियां समुद्र में समहित हो जाती है फिर भी समुद्र के जल में कोई परिवर्तन नहीं होता है । वैसे सनातनी विचारधारा अपने मे सभी विचारधारा और मत पंथ को समहित कर लेती है फिर भी सनातनी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।  

 समय के साथ लाखों वर्ष की यात्रा मे प्राकृति मे परिवर्तन मे आए 6 मन्वन्तर बीत गए हैं 7 वे मन्वन्तर की 28 वे चतुर्थीयुगी का कालयुग चल रहा है । इस लाखों वर्षों की यात्रा में सनातनी समाज में बहुत परिवर्तन आ चुके हैं । समय के साथ परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं । हम इसे गलत भी नहीं ठहरा सकते हैं समय कभी किसी एक समान नहीं रहता है । जैसे किसी व्यक्ति के जीवन में उतार चढाव आते रहते हैं । वैसे हर समाज में और सभ्यता समय के साथ उतार चढाव आते रहते हैं । वही प्रक्रिया से सनातनी समाज और सभ्यता भी गुज़र रही है । समय की इस यात्रा एक ऐसा समय आया है जब समाज के रूप में संगठित नहीं रह पाए उसी का लाभ कुछ संप्रदायिक विचारधाराओं ने उठाया है उन्होंने सनातन की मूल विचारधारा और सिद्धांत पर प्रहार करने आरंभ कर दिए उन्होंने कुछ इस स्तर तक सफलता मिल गयी । उन्होंने बड़े भूभाग को अपने अधीन कर लिया है और लंबे समय तक तक अ़़धीन किए रहे । फिर भी सनातनी विचारधारा को मानने वाले कभी हार नहीं माने घास की रोटी खा लिए फिर उन संप्रदायिक विचारधारा का जमकर प्रतिकार किया है वो संप्रदायिक विचारधारा दुनिया पर विजय प्राप्त कर ली । फिर भी सनातनियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाए । फिर भी हजार वर्ष के लम्बे कालखंड में एक ऐसा वर्ग भी तैयार हो गया जो उन विचारधाराओं के प्रभाव में आने लग गया । जो विचारधारा सनातन धर्म संस्कृति सभ्यता और सनातन के मूल विचार को खत्म करना चाहती है । क्योंकि उन्हें पता है सनातन विचार जब तक रहेगा तब तक धर्म रहेगा तो उन्होंने मनमानी करने की स्वच्छंदता नहीं मिल पाएगी । इसलिए वह सनातन के मूल विचार पर लगातार प्रहार करते हैं । इसी सनातनी समाज में एक ऐसा वर्ग जो अपने को वामपंथी कहता और कोई अपने आप दक्षिणपंथी कहता है कोई अपने को मध्यममार्गीय कहता है । यह लोग समझ नहीं पाए वामपंथ दक्षिणपंथ और मध्यम मार्ग तीनों विचार के नाम सनातनी समाज को विभाजित करके सनातन के मूल विचार विरूद्ध खड़ा करके सनातन विरोधी विमर्श तैयार कर दिया गया । हम लोग इन तीनों विचारों विभाजित रहें ।हमारे विरूद्ध कैसे विमर्श तैयार किया गया इसे समझने के लिए हमें वामपंथ दक्षिणपंथ मध्यम वर्गीय विचारधारा के बीच का अंतर समझने का प्रयास करना चाहिए यह तीनों विचार सनातन के विचार विरूद्ध कैसे यह समझना चाहिए। 

वामपंथी राजनीति (left-wing politics या leftist politics) राजनीति में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहते हैं। इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों। राजनीति के सन्दर्भ में 'बाएँ' और 'दाएँ' शब्दों का प्रयोग फ़्रान्सीसी क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ। फ़्रांस में क्रान्ति से पूर्व की एस्टेट जनरल (Estates General) नामक संसद में सम्राट को हटाकर गणतंत्र लाना चाहने वाले और धर्मनिरपेक्षता चाहने वाले अक्सर बाई तरफ़ बैठते थे। आधुनिक काल में समाजवाद (सोशलिज़म) और साम्यवाद (कम्युनिजम) से सम्बंधित विचारधाराओं को बाईं राजनीति में डाला जाता है !

दक्षिणपंथी राजनीति (right-wing politics या rightist politics ) उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो सामाजिक स्तरीकरण या सामाजिक समता को अपरिहार्य, प्राकृतिक, सामान्य या आवश्यक मानते हैंआम तौर से इस पक्ष के समर्थक समाज की ऐतिहासिक भाषा, अर्थ-व्यवस्था और धार्मिक पहचान को बानाए रखने की चेष्टा करते हैं। पारम्परिक समाजों में अक्सर लोगों में वर्गीकरण और श्रेणीकरण नही होता है और दाईं राजनीति में प्राकृतिक नियम की दलील देकर ऐसे वर्गीकरणों को जारी रखने का समर्थन नही किया जाता है। राजनीति के सन्दर्भ में 'बाएँ' और 'दाएँ' शब्दों का प्रयोग फ़्रान्सीसी क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ। फ़्रांस में क्रान्ति से पूर्व की एस्तात झ़ेनेराल (Estates General) नामक संसद में सम्राट को हटाकर गणतंत्र लाना चाहने वाले और धर्मनिरपेक्षता चाहने वाले अक्सर बाई तरफ़ बैठते थे। आधुनिक काल में पूँजीवाद से सम्बंधित विचारधाराओं को अक्सर दाईं राजनीति में डाला जाता है।फ्रांस की क्रांति के आधार पर अन्य देशों के बारे में जिनमें प्रमुख रूप से भारत शामििल है कतई नहीं कहा जा सकता कि दक्षिणपंथी समाजवाद के समर्थक नहीं होते । किसी एक देश की विचारधारा को दुनिया के सभी देशों पर लागू नहीं किया जा सकता फ्रांस में कुछ लोग बाई तरफ बैठ गए तो इससेे दुनिया केेेेेेेेेेे अन्य देशों की विचारधारा कैसे निर्धारित की जा सकती है 

केंद्रवाद एक राजनीतिक दृष्टिकोण या स्थिति है जिसमें राजनीतिक परिवर्तनों का विरोध करते हुए सामाजिक समानता के संतुलन और सामाजिक पदानुक्रम की एक डिग्री की स्वीकृति या समर्थन शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप समाज का एक महत्वपूर्ण बदलाव बाईं या दाईं ओर होगा । 
केन्द्रवाद - केंद्र-बाएं और केंद्र-दाएं राजनीति दोनों में केंद्रवाद के साथ एक सामान्य जुड़ाव शामिल है जो कि बाएं-दाएं राजनीतिक स्पेक्ट्रम के अपने-अपने पक्ष में कुछ हद तक झुकाव के साथ जुड़ा हुआ है । विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, जैसे कि ईसाई लोकतंत्र , पंचसिला , और उदारवाद के कुछ रूपों जैसे सामाजिक उदारवाद , को मध्यमार्गी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसा कि तीसरा तरीका हो सकता है एक आधुनिक राजनीतिक आंदोलन जो केंद्र-वाम सामाजिक नीतियों के साथ केंद्र-दक्षिणपंथी आर्थिक प्लेटफार्मों के संश्लेषण की वकालत करके दक्षिणपंथी और वामपंथी राजनीति में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है। 

सनातनी विचारधारा के सिंद्धांत के सामने आधुनिक विचारधारा के सिद्धांत क्यो नही ठहराते हैं? इससे सिद्ध होता कि सनातनी विचारधारा सभी विचारधाराओं की जननी है। 

वामपंथी विचारधारा कहती सभी को एक समान करेंगे समाज में समानता स्थापित करेंगे इसके लिए हम संसधान उपलब्ध कराएंगे किसी के साथ मे कोई भेद करेंगे न कोई गरीब रहेगा सब एक समान हो जाएंगे । सबको बराबरी की अधिकार देंगे वामपंथी सिद्धांत सुनने मे अच्छे लगते है । जब संसाधन विभाजन की बात है सबको एक समान कैसे करेंगे इतना ज्यादा संसाधन कैसे तैयार होगा । तो इस पर वामपंथी शांत हो जाते है बात तो बराबरी और समानता की करते हैं दुनिया मे हर व्यक्ति क्योंकि प्रकृति में कोई समान नहीं है न महिला न पुरूष एक समान न इस जगत कोई एक प्राणी एक समान सबके गुण स्वभाव अलग अलग है । जब प्रकृति से भेद है तो फिर सबको एक समान करना अंसभव हो जाता है । जब अंसभव हो जाता है तो वामपंथी वर्ग संघर्ष की थ्योरी दी देते हैं अर्थात एक शोषक और एक शोषणकर्ता उसमें समाज को दो वर्गों में विभाजित करके राष्ट्र को हिंसा की आग मे झोक देते हैं । कुछ वर्षों लाखों लोगों नरसंहार कर देते हैं । ये वर्ग संघर्ष का सिद्धांत इतना भयावह हो जाता है । कि राष्ट्र टुटने लगता और समाज गरीब अशिक्षा भुखमरी के चपेट में आ जाता है । कुछ वर्षों राष्ट्र के टुकड़े हो जाते है । और अंत में राष्ट्र लोकतंत्र से तानाशाही की ओर बढ़ जाता है। 
सनातनी विचारधारा के सामने आधुनिक वामपंथी विचारधार महत्वहीन हो जाती है उसे समझने के लिए श्रीमद्भागवत गीता एक श्लोक वामपंथी विचारधारा पर भारी पड़ता है  
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥ 
भावार्थ
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। सनातनी विचारधारा के मूल मे जनकल्याण हैं इसमे संसाधन निर्माण करने वाला भी पूज्यनीय हैं उस संसाधन का उपभोग करने वाला व्यक्ति भी पूज्यनीय हैं सनातनी विचारधारा किसी बीच वर्ग संघर्ष नहीं है चाहे व्यक्ति धनवान हो दरिद्र हो उसमें विभेद नहीं किया जाता है धनवान व्यक्ति दरिद्र कि सहयोग करता है दरिद्र व्यक्ति आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है इसलिए यहां पर दरिद्रनरायण कहा गया है यहां पर सब समान हैं सनातन विचारधारा मे अधिकार लिए संघर्ष नहीं हैं सनातनी विचारधारा के सामने न आधुनिक वामपंथ कही नहीं ठहराता न आधुनिक दक्षिणपंथ न केद्रवाद कही नहीं ठहराता है । क्योंकि सनातनी विचारधारा दुनिया की सभी विचारधारा की जननी है । सनातन के विचार दुनिया में सभी विचारों का जन्म हुआ है । 

इसलिए सनातन एक विचारधारा नहीं है । जीवन जीने की कला है । कैसे प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठकर जीवन को जीया सकता है । इस माया रूपी संसार मुक्त हुआ जा सकता है । जन्म जन्मांतर के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त किया जा रहा है । सनातनी विचारधारा के चार मूल स्तंभ है धर्म अर्थ काम मोक्ष । क्योंकि अर्थ के बिना धर्म संभव नहीं है । कर्म के बिना मोक्ष संभव नहीं है । उसी तरह सृष्टि की व्यवस्था को सुचारू रूप संचालित करने के लिए समाज को चार वर्गों में विभक्त किया गया है । ब्रह्माण क्षत्रिय वैश्य शूद्र यह चार वर्ग सृष्टि की व्यवस्था संचालित करने के लिए सबसे आवश्यक है इनके बिना सृष्टि की कोई व्यवस्था नहीं चलती है । चारों वर्ण एक दूसरे पूरक हो सकते हैं एक दूसरे को विरोधी कभी नहीं हो सकते हैं । इतने समझ नहीं आए तो आधुनिक वर्ग संस्कृति जिसे अंग्रेजी क्लास कहते हैं । इस व्यवस्था समाज को चार भागों विभक्त किया गया है । शिक्षक सैनिक व्यापारी और श्रमिक । जब आधुनिक व्यवस्था में चार वर्ग हैं तो फिर भी प्राचीन व्यवस्था में चार वर्ग थे जिन्हें वर्ण कहा जाता था । वर्ण व्यवस्था गुण कर्म के आधार पर थी जैसे आज वर्ग व्यवस्था दोनों व्यवस्था कोई अन्तर नहीं दिखता है । बात आर्थिक व्यवस्था की अति सम्मवादी से किसी का भला सका न पूरा समाज सुखी है । सम्यावादी आर्थिक व्यवस्था कारण दुनिया के 70 अधिक देश दिवालिया हो गए । उसी तरह से पूंजीवादी व्यवस्था में कुछ चंद लोग के पास दुनिया की सारी संपत्ति है । 99% प्रतिशत लोगों बड़े मुश्किल से जीवन जी रहे हैं । जो आज भी सनातन आर्थिक व्यवस्था के नियमों से चल रहा है वह जीवन सुखी है उसे जीवन कोई समस्या नहीं है वह अपना जीवन सुख पूर्वक निर्वाहन कर रहे हैं। 

 सनातनी आर्थिक व्यवस्था में धन की पूजा लक्ष्मी माता के रूप होती है । सनातनी व्यवस्था में धन संचय को महत्व दिया जाता है सनातनी आर्थिक व्यवस्था पहली रोटी गाय को दिया जाता आखिरी रोटी कुत्ते को दिया जाता है । सनातनी समाजिक आर्थिक व्यवस्था में कमजोरो को सहयोग दिया जाता है। जब तक वह अपने पैर पर खड़ा न हो जाया । सनातनी समाजिक आर्थिक व्यवस्था छोटे कुटीर उद्योगों का बहुत महत्व है । सनातनी व्यवस्था में उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलता है । उद्यमियों को कभी चोर नहीं बोला जाता है उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है । और सनातनी आर्थिक समाजिक व्यवस्था शोधकार्य सबसे अधिक महत्व है । सनातनी व्यवस्था में शोधकर्ताओं को ऋषि के रूप में पूजा जाता है । सनातनी आर्थिक समाजिक व्यवस्था में महिलाओं को देवी तरह पूजा जाता है। उन्हें घर की लक्ष्मी की तरह माना जाता है उन्हें पठन-पाठन करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है । सनातनी आर्थिक समाजिक व्यवस्था में किसी का लिंग जाति भेष के आधार पर किसी तरह भेदभाव नहीं किया जाता है सबको एक समान माना जाता है । इसलिए सनातनी आर्थिक व्यवस्था के सामने आधुनिक वामपंथ दक्षिणपंथ केन्द्रवादी कही नहीं ठहराते हैं । 

सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र वसुधैव कुटुंबकम् का है सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर जाना । सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र चरैवेति चरैवेति चलते रहना है सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र यतो धर्म ततो जयः सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र सत्यमेव जयते सनातनी विचारधारा का मूल मंत्र अहिंसा परमो धर्म धर्म हिंसा तथेव च सनातनी विचारधारा का ध्येय वाक्य अहम ब्रह्मास्मि सनातनी विचारधारा का न कोई आदि है न अंत सनातनी विचारधारा शाश्वत सत्य है जब तक यह सृष्टि रहेगी तब तक सनातनी विचारधारा रहेगी 

जय श्री कृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी

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