ज़ाकिर नाइक क़ुरआन का हवाला देकर हर बार अपने पेज पर लिखता है की क्रिसमस की बधाई देना गुनाह है।

 हर बार उस पोस्ट पर मुस्लिम समुदाय के लड़के लड़कियाँ ही उसको लानत भेजते हैं। 

हम लोग भी ज़ाकिर नाइक की राह पर हैं। क्रिसमस को महत्व न देना बहुत अच्छी पहल है, लेकिन यह कहना की हम क्रिसमस की बधाई देने वालों को ब्लॉक कर देंगे, यह गुनाह है, यह पाप है आदि, आपके ज़ाकिर नाइक बनने की यात्रा है। 
अति से बचिए। प्रसन्न रहिए। अपने धर्म को पकड़े रहिए। 

ईसाइयों से सीखिए की किस तरह धर्म के नाम पर बड़ी बड़ी बात करने और गपोड़बाज़ी करने की जगह असल में सुदूर से सुदूर स्थान पर जाकर लोगों को मतांतरित करने के लिए सेवा करने पहुँचा जाते हैं। भले यह ग़लत है, पर यह उनके सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है इसलिए वह अपना जीवन लगाने को तैयार हैं। इधर हमारे लोग अपने मन के भीतर चोर लिए अपने लोगों को ही छोटा और निम्न दिखाने के लिए तथाकथित शास्त्र तक लिख डाले और आज भी उस अधर्म, कलंक और पाप वृत्ति को धर्म बताने में बेशर्मी भी महसूस नहीं करते। आज के ज़माने में भी लोग भेद दृष्टि के लिए पुराण और स्मृति बाँचने की बेशर्मी करते हैं।

बाइबिल पढ़ने से आप ईसाई नहीं बनेंगे, अपना धर्म बिना समझे बाइबल पढ़ेंगे तो ज़रूर यह ख़तरा है। आप समदर्शी बनेंगे तब जाकर अपने लोगों के ईसाई बनने की सम्भावना कम होगी, आप भेद दृष्टि रखेंगे और क्रिसमस का बायकाट करेंगे तो इसका कोई फ़ायदा नहीं। प्रसन्न रहिए, खुश रहिए। सबको एक शरीर और आत्मा के स्तर पर अपने बराबर मानिए, कम से उन लोगों को तो अवश्य ही जिनके नैतिक नियम आपके जैसे हों। 

हमें कबीलाइयों का विरोध करना है, ख़ुद क़बीलाई नहीं बनना है। 

साभार 
लोक संस्कृति विज्ञानी
डॉ भूपेंद्र सिंह जी 

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