धर्म का आचरण करें अधर्म का नहीं, सत्य बोलें असत्य नहीं, विशाल दृष्टि रखें संकुचित नहीं, अपनी ओर देखें दूसरों की ओर नहीं।


धर्म चरत, माऽधर्मंम्, सत्यं वदत, नानृतम् ।
दीर्घं पश्यत, मा हृस्वं, परं पश्यत माऽपरम् ॥

वसिष्ठ स्मृति 30.1

धर्म का आचरण करें अधर्म का नहीं, सत्य बोलें असत्य नहीं, विशाल दृष्टि रखें संकुचित नहीं, अपनी ओर देखें दूसरों की ओर नहीं।

व्यक्ति सदैव सोच विचार कर ही कार्य करना चाहिए। सदा परमात्मा पर ही विश्वास रखना चाहिए उससे भिन्न किसी दूसरी वस्तु पर नहीं। 

व्यक्ति की प्रतिष्ठा का आकलन उसके जीवन- मूल्यों से किया जाता है। जीवन-मूल्य सफलता के लिए जरूरी हैं।
हममें से बहुत से लोग उन्ही जीवन मूल्यों का पालन करते हैं जो हमें हमारे पूर्वजों से मिलते हैं या फिर हम श्रेष्ठ जनों का अनुसरण कर अपने जीवन मूल्य का स्वयं निर्धारण करते हैं। जहां तक संभव होता है हम उन आदर्शो की ओर चलने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब हम मात्र दूसरों को खुश करने के लिये या फिर किसी अन्य स्वार्थवश अपने मूल्यों को बदल देते हैं। यदि हम सिर्फ आदर्शो की बातें करें किन्तु उन्हें अपने आचरण में न लागू करें तो हम मूल्यहीन ही कहे जाएंगे। 
जीवन मूल्य हमारे दिन प्रतिदिन के व्यवहार में झलकने चाहिए हमारी वाणी में दिखनी चाहिए। हमारे आचरण से प्रदर्शित होने चाहिए। याद रखें, जो व्यक्ति मूल्यहीन जीवन जीते हैं वे समाज के लिए बोझ माने जाते हैं। निठल्ले व्यक्ति समाज का कभी भी मार्ग-दर्शन नहीं करते।
मनुष्य मस्तिष्क, हृदय और भावना से युक्त प्राणी है। वेद, उपनिषद भी हमे यही संदेश देते हैं कि व्यक्ति सत्य के प्रति आग्रही, सत्यनिष्ठ और जीवन मूल्यों को मानने वाला होना चाहिए। 
सदाचार से जीवन उत्तम बनता है और उससे सामाजिक जीवन आनंदित होता है। हम जिन मानव मूल्यों का पालन करते हैं वो हमारी बुद्धि एवं सोच को भी प्रभावित करते हैं। मान लीजिए हमें यह निर्णय करना हो कि संयम और व्यभिचार में क्या ठीक है?अगर हम सचमुच सशक्त जीवन मूल्यों का पालन करने वाले हैं तो हमारी आत्मा की आवाज बता देगी कि संयम प्रशंसनीय है और उत्तम है और व्यभिचार घिनौना कर्म है। 
व्यक्ति के मन में संसार की वस्तुओं को देखकर, काम क्रोध लोभ ईर्ष्या द्वेष अभिमान आदि दोषों का कचरा तो रोज़ बिना बुलाए आता ही है। जो जीवन मूल्यों को स्थापित रखने में निरन्तर बाधा पैदा करता है। यदि हम अपने मन की शुद्धि नहीं करेंगे, तो यह कचरा एक दिन इतना बढ़ जाएगा, कि आपका जीना भी कठिन हो जाएगा। 
आइए अपने अंदर उत्तम गुणों की, उत्तम संस्कारों की स्थापना करें। जैसे कि वेदों को पढ़ना, ऋषियों के ग्रंथ पढ़ना, बच्चों को अच्छे संस्कार देना, उत्तम गुणों को, अच्छे संस्कारों को यदि आप धारण करेंगे, तो आपके मन की शुद्धि होती रहेगी, और आप शांति पूर्वक अपना जीवन जी सकेंगे।
रीढ़विहीन या लिजलिजे व्यक्ति का समाज में कभी आदर नहीं होता। ऐसे लोग सदैव आलोचना और निंदा के पात्र होते हैं।हम समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बनें, यही हमारी सार्थकता है। याद रखे जब हम सुधरेंगे तभी जग भी सुधरेगा।
इसलिए वेद के अनुयायियों व अन्य सभी को सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।

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