इस साल सोशल मीडिया में हिंदुत्व के मूलभूत मुद्दों पर बात शुरू हुई।


इस साल सोशल मीडिया में हिंदुत्व के मूलभूत मुद्दों पर बात शुरू हुई। पहले केवल इस्लामिक दबाव से उत्पन्न एक कृत्रिम परिस्थिति के आधार पर सारी अतिवादी चर्चायें हो रहीं थीं, जो की समय की माँग भी थी। अब चर्चा उन विषयों पर भी हो रही है जो कड़वी है परंतु बेहद आवश्यक है। 
इन चर्चाओं के कारण हिंदुत्ववादी लेखकों में गोलबंदी देखने को मिली है। स्थिति यह बन गई है अब आप मन में कुछ और, बाहर कुछ और दिखावा नहीं कर सकते। आप का पोस्टमार्टम होकर रहेगा। 
इन विमर्श में जो मेरे मन का विमर्श है, जिसके लिए मैंने अपना पूरा प्रयास किया, वह है समदर्शी हिंदुत्व। इसके कारण मेरे तमाम पाठक मुझसे छिटक गये, तमाम नए पाठक मुझसे जुड़े। तमाम लेखक मेरे ख़िलाफ़ हो गए, वहीं तमाम मेरे साथ खड़े हो गए। 
समदर्शी हिंदुत्व के विमर्श को मुख्य पटल पर लेकर आना और एक ऐसी परिस्थिति खड़ा कर देना की आपको अपने पत्ते खोलने ही होंगे, मुझे अपनी इस साल की बड़ी सफलता लगती है। तमाम लोग मेरे विरोध में गए और तमाम लोग छिटक गए, यह अच्छा हुआ, क्यूँकि यह लोग मैं जिस हिंदुत्व का सपना देख रहा हूँ उसमें या तो बाधक थे अथवा दुश्मन थे। 
मैं एक ऐसा हिंदू राष्ट्र देखना चाहता हूँ जहां जन्म, क्षेत्र, भाषा और लिंग के आधार पर किसी के साथ ग़लत व्यवहार, निम्न व्यवहार न हो, जहां पर प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का आदर केवल हिंदू होने भर के कारण कर सके। एक ऐसा हिंदू राष्ट्र जहां किसी जाति को बड़ा बनने के लिए दूसरे को छोटा साबित न करना पड़े। एक ऐसा हिंदू राष्ट्र जहां एक अनाथ हिंदुव को उतना ही सम्मान मिले जितना किसी अन्य जाति अथवा इतिहास वाले को। 
ऐसे हिंदू राष्ट्र के लिए समदर्शी हिंदुत्व के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। यह हिंदुत्व इस देश के अधिकांश हिंदू के लिए फ़ायदेमंद है। मैं यह भी जानता हूँ की इसी विचारधारा का भविष्य है। जो लोग साथ आएँगे वह सम्मान पाएँगे और जो लोग बहाने बनाएँगे वह स्वयं को और अपने समाज को शेष हिंदू समाज के बीच विलन साबित करेंगे। बहुत देर हो जाये, उससे पहले लोग संभल जाँय, यह उनके भी हित में होगा और हम सभी के भी। 
अब वह समय नहीं है जब लोग जागरूक नहीं है। कोई किसी से दबने वाला नहीं है। आप मन में चोर रखकर एजेंडा चलाना चाहेंगे तो वह एजेंडा तो नहीं ही चलेगा पर आप ज़रूर पकड़े जाएँगे। मन बड़ा करिए, आपके हिंदुत्व में अधिक से अधिक लोग समाहित हों, इसका प्रयास करिए। आपका धर्म प्रत्येक व्यक्ति का उत्थान करने वाला हो, न की किसी को गिराने वाला। 
आशा है कि अगला वर्ष हिंदुत्व के भीतर के इस मंथन को और सकारात्मक दिशा देगा। सभी पाठकों एवं मित्रों को धन्यवाद जिन्होंने इस वर्ष मेरे लेखों को पढ़ा और आगे बढ़ाया।


लोक संस्कृति विज्ञानी
डॉ भूपेंद्र सिंह 

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