हिंदू समाज आपस में क्यों भिड़ रहा है क्या कारण है आईए जानते हैं ?

यह लड़ाई आज की नहीं है। यह लड़ाई स्वामी दयानंद से सामाजिक क्षेत्र में शुरू हुई, स्वामी विवेकानंद द्वारा आध्यात्मिक क्षेत्र में गई और वीर सावरकर, श्री गुरु जी के आते आते राजनीतिक क्षेत्र में पहुँची। इसे पुराणपंथ बनाम हिंदुत्ववाद की लड़ाई कहा जाता है। इस पर तमाम किताब आज से पचास वर्ष पूर्व लिखे गए हैं। 
जब भी कभी इस्लाम का आतंक बढ़ जाता है तो यह लड़ाई कुछ समय के लिए बंद हो जाती है और जैसे ही इस्लाम शांत बैठता है, शुरू हो जाती है। 
यह लड़ाई विदेशी उपनिवेश की भाति, आंतरिक उपनिवेश से मुक्ति की लड़ाई है। विदेशी, पूरे हिंदू समाज को परेशान करते हैं तो पूरा हिंदू समाज इसके ख़िलाफ़ एक हो जाता है, जबकि जन्म आधारित जातिगत श्रेष्ठता से हिंदू समाज के भीतर जो लोग हैं, वह परेशान रहते है। (यहाँ उपनिवेशवाद के शाब्दिक अर्थ के बजाय उससे उत्पन्न स्थिति समझा जाना चाहिए)

हिंदू राष्ट्र प्रत्येक हिंदू बनाना चाहता है। पर वह हिंदू राष्ट्र कैसा होगा? यह प्रश्न अटका हुआ है। पुराणपंथी ऐसे हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जहां जन्म के आधार पर छूआछूत, उच्च नीच का मूर्खता एवं धूर्ततापूर्ण भेद होगा जबकि हिंदुत्ववादी ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जहां प्रत्येक हिंदू को जन्म से एक हिंदू के रूप में सैद्धांतिक रूप से बराबर समझा जाएगा। 

पुराणपंथी एक ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जहां उनका तथाकथित धर्म किसी को श्रेष्ठ बनाने के लिए किसी दूसरे को निम्न बनाने के लिए श्रापित है, वहीं हिंदुत्ववादी ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जहां हिंदू होना एकमात्र जन्मआधारित श्रेष्ठता का आधार होगा। उसके बाद की श्रेष्ठता आपको मेहनत करके हासिल करनी होगी।

पुराणपंथी एक ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जहां हिंदू फिर से अलग थलग होकर किसी नये कुसंस्कृति का दास बनने की तैयारी करेगा, जबकि हिंदुत्ववादी एक ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जिसमें लोग इस प्रकार से एक हो जाएँगे की उनके बीच की सारा अलगाव और दूरी सदैव के लिए समाप्त हो जाएगा।

पुराणपंथियों का हिंदू राष्ट्र 1 % लोगों के लिए फ़ायदेमंद है। जिस जाति को यह श्रेष्ठता का चूरन बाँट रहे हैं, सबसे पहले उसी में उपजाति बाँटकर उसके अधिकांश लोगों को अपने से निम्न बना चुके हैं और आदत से मज़बूर होकर बनाते रहेंगे। हिंदुत्ववादियों का हिंदू राष्ट्र 99% लोगों के लिए फ़ायदेमंद है क्यूँकि सबके बीच समदर्शिता की बात करता है। 

शास्त्र एक बहाना है जिसके द्वारा पुराणपंथी गिरोह एक तरफ़ लोगों को भावनात्मक रूप से मूर्ख रखना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ धार्मिक रूप से डराना चाहते हैं। हिंदुत्ववादी समूह अध्यात्म के मूल तत्व अभेद दृष्टि को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं ताकि सब एक हो सकें। 

इसमें लोगों को पक्ष चुनना आवश्यक है। पुराणपंथी गिरोह फिर से अपने स्वार्थ में देश को नए सिरे से ग़ुलामी की तरफ़ ले जाने वाले हैं और उनके साथ खड़ा होना, अधिकांश हिंदू समाज के साथ भयानक धोखा है। इसलिए दक्षिणपंथ के भीतर की यह लड़ाई आवश्यक भी है और हितकर भी। इसको होने दीजिए। यह प्रश्न हल हुए बिना हिंदू राष्ट्र बना तो दो पीढ़ी नहीं टिकने वाला और ऐसा हिंदू राष्ट्र 99% लोगों के लिए किसी श्राप से कम नहीं होगा जहां जन्म आधारित भेदभाव हो। 

वैचारिक रूप से कम से कम मैं सावरकर जी और श्रीगुरुजी के क़रीब ख़ुद को पाता हूँ और इसलिए समदर्शी हिंदुत्ववादी समूह के पक्ष में हूँ। पुराणपंथी गिरोह का विरोधी हूँ।

लोक संस्कृति विज्ञानी
डॉ भूपेंद्र सिंह 

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