जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी की दिग्विजय यात्रा का वर्णक्रम अनुसार से वर्णन का प्रसंग ११.४


                                    ॐ

मदुरै ( चिद) - यह दक्षिण का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है जहां मीनाक्षी का प्रसिद्ध मंदिर है । यहां सुपर्णपद्मिनी नामक नदी में स्नान कर शंकर ने मीनाक्षी तथा सुन्दरेश्वर का दर्शन किया। 

मध्यार्जुन ( आ० चिद०) - यह स्थान तंजोर जिले में है जिसका वर्तमान नाम तीरु विद हरत्ताचार्य के जन्मस्थान होने का गौरव प्राप्त है । भविष्योत्तर पुराण में है अग्नीश्वर क्षेत्र का माहात्म्य भी विशेष रूप से वर्णित है । उस अंश का ही मान है अग्नीश्वर माहात्म्य । इससे स्पष्ट है कि मध्यार्जुन प्राचीनकाल से ही अपने धार्मिक माहात्म्य के कारण अत्यंत प्रसिद्ध रहा है । यहां महादेव की मूर्ति है यहां विचित्र घटना का उल्लेख आनन्दगिरि ने किया है शंकराचार्य ने विधिवत पूजन के अनन्तर यहां के अधिष्ठाता देवता महादेव से पूछा कि भगवन द्वैत और अद्वैत इन उभय मार्गो में कौन सच्चा है । इस पर व्यक्तिरूप धारणकर महादेव लिंग से प्रगट हुए और दाहिना हाथ उठाकर तीन बार जोर से कहा कि अद्वैत ही सत्य है आचार्य तथा उपस्थित जनता को इस घटना से विस्मय तथा सन्तोष दोनों प्राप्त हुए ( चिद ० २६ अ०) 

मरून्धपुर ( आ०)  - इस नगर का उल्लेख आनन्दगिरि ने किया है जहां आचार्य मल्लपुर के अनन्तर पधारे थे। यह स्थान मल्लपुर से पश्चिम में था । यह विष्वक्सेन मत तथा मन्मथ मत खण्डन की बात लिखी हुई है ( आ० प्रक० ३०)  

मल्लपुर ( आ०) यह भी कोई दक्षिण ही से
का स्थान प्रतीत होता है जहां मल्लारि की पूजा विशेष रूप से होती थी - ( आ० प्रक० २९) 

मागधपुर ( आ०) इस स्थान की स्थिति का ठीक ठीक पता नहीं चलता कि यह मगध का कोई नगर था या किसी अन्य प्रान्त का । आनन्दगिरि ने इसे मरून्धपुर के उत्तर में बतलाया है । यहां कुबेर तथा सेवक यक्ष लोगों की उपासना होती थी -( अ० प्रक० ३२) 

मायापुरी - इसका वर्तमान काल में प्रसिद्ध नाम हरद्वार है । इस स्थान से शंकराचार्य का विशेष संबंध रहा है । बदरीनाथ जाते समय शंकराचार्य इधर से गए ही गए थे । प्रसिद्ध है का विष्णु की प्रतिमा को डाकुओं के डर से पुजारी लोगों ने गंगा के प्रवाह में डाल दिया था शंकर ने इस प्रतिमा को उद्धारकर फिर इसकी प्रतिष्ठा की । 
मृडपुरी ( चिद ०) - यह भी दक्षिण का कोई तीर्थ है वासुकि क्षेत्र आचार्य शंकर के जाने का उल्लेख चिदविलास में किया गया है यहां पर बौद्धो के साथ शंकर शास्त्रार्थ हुआ था -( चिद ० आ० २९) 

यमप्रस्थपुर ( आ०) - आनन्दगिरि ने इस स्थान को इन्द्रपस्थपुर से प्रयाग के मार्ग में बतलाया है । इन्द्रपस्थ तो वर्तमान दिल्ली के पास था । वही पूरब प्रयाग जाते समय यह नगर मिला था । यम की पूजा होने कारण ही इस नगर का यह नाम पड़ा था 
- ( अ० प्रक० ३४) 

रामेश्वर - यह स्थान आज भी अपनी धार्मिक पवित्रता अक्षुण्ण बनाए हुए हैं इस स्थान पर भगवान रामचन्द्र ने समुद्र बंधवाया था उसी के उपलक्ष्य में यहां रामेश्वरम नामक भगवान शंकर प्रतिष्ठा की थी । हमारे चार धामों में अन्यतम धाम यही है । यह स्थान सुदूर दक्षिण समुद्र के किनारे है यहां विशालकाय मन्दिर दक्षिणापत्य स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है, जिसका मण्डप एक सहस्त्र स्तमभ्भो से सुशोभित है। भगवान का सुवर्ण का बना हुआ रथ अब भी बड़ी धूमधाम के साथ निकलता है । माध्वाचार्य ने यहां शाक्त लोगों की प्रधानता बतलायी है। 


जय श्री कृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी 

टिप्पणियाँ