धर्म और विज्ञान एक बराबर क्यों है आईए जाने

 
नवी या दसवीं मे ये कहानी पढ़ी थी अंग्रेजी में ,थोड़ी बहुत विस्मृति भी संभव हैं उस्के लिए क्षमा करें !

        एक बहुत महान चित्रकार थे । बहुत प्रसिद्ध थे ,अक्सर होने वाले  अभिनंदन समारोहों , प्रदर्शनीयो, प्रसंशको से परेशान एक नए शहर में अपने एक और घर पर रहने चले गए कुछ महीनों  के लिए ।

    दुनिया उनकी कला का लोहा मानती थी लेकिन वो अब तक असंतुष्ट ही थे , वो सोचते थे कि उनका "मास्टर पीस " वे अब तक नही बना पॉये थे । वे अक्सर अकेले में उसके बारे में ही सोचते रहते थे ।

      उस मकान के सामने एक नया परिवार रहने आया था जिसमे एक 7-8 साल की छोटी बच्ची भी थी जो अक्सर उस चित्रकार के पास आ जाया करती थी , अपनी पोती की उम्र की उस बच्ची के साथ समय बिताकर ,बचपना करके उस चित्रकार का मास्टर पीस वाला तनाव भी कम हो जाता ।धीरे धीरे दोनो मे एक मजबूत एवं वात्सल्यपूर्ण संबंध बन गया ।

   एक बार जब चित्रकार किसी काम से पांच सात दिन के लिये बाहर गए हुए थे तो लौटने पर देखा कि दो तीन दिन हो गए वो गुड़िया आई ही नही उनसे मिलने । चित्रकार पता लगाने उनके घर गये तो ये देखकर बहुत दुखी हो गए कि लड़की बहुत गंभीर रूप से अस्वस्थ्य थी , उंसके पिता कह रहे थे कि जाने क्यों व्यवस्थित औषधियों के बाद भी वह स्वास्थ्यलाभ नही कर पा रही थी । रोग भी कोई असाध्य नही था फिर भी जाने क्यों उसकी हालत बिगड़ती ही चली जा रही थी । 

    चित्रकार बच्ची के पास गया तो बहुत दिनों के बाद उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान प्रकट हुई  ।थोड़ी देर बाद वो लड़की मायूस होकर बोली ," दादा वो खिड़की मे से जो आपके घर के बाहर दीवार पर एक बेल (लता ,वल्लरी ) दिख रही है ना रोज उसके पत्ते गिर रहे है , जिस दिन वो आखिरी पत्ता गिर जाएगा ना दादा मैं भी उस दिन चली जाऊँगी इस दुनिया से ।

    चित्रकार चौंक गए लेकिन बोले कुछ नही ।उंसके सिर पर हाथ फेरते हुए उठे और बोले बहुत जल्द ही तुम उस बेल के पत्तों को छुओगी मेरी बच्ची ।

     जाते जाते वे उसके माता पिता को कह गए कि गुड़िया ठीक हो जाएगी ! 

  चमत्कार ! गुड़िया दिनोदिन ठीक होती चली गई ।
कुछ दिनों बाद वो बिल्कुल स्वस्थ्य हो गई और अपने उन चित्रकार दादा से मिलने उनके घर गई । दादा वहां नही थे , उनके नौकर ने बताया कि वे अब नही रहे ,उन्हें गंभीर निमोनिया हो गया था ,वे कुछ रात पूर्व बहुत भीग गए थे बाहर उस दीवार के पास खड़े खड़े ।

      गुड़िया धीमे धीमे कदमो से उस दीवार की तरफ गई और उस बेल को ध्यान से देखा ,जिसमे कुछ पत्ते असली थे और कुछ उस पत्ते के हूबहू चित्र थे ,उड़ते लहराते !

 नीचे कही एक कोने में लिखा हुआ था " मेरा मास्टर पीस " !

बच्ची की आँखों मे छलछलाते आंसू उस महान चित्रकार के उस मास्टर पीस को मास्टर श्रद्धांजलि दी रहे थे ।प्रकृति आज बिल्कुल शांत थी इस मास्टर घटना के समक्ष नतमस्तक होकर ।

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     विज्ञान और धर्म कभी पूरक नही थे न है और ना होंगे । जब भी मानवता उत्कर्ष पर होगी तो उसके मूल में ये दोनों बराबर मात्रा में होंगे ।

       सनातन , विज्ञान को मनोविज्ञान से दिशा निर्देशित करने को कहता है ,मनोविज्ञान को आध्यात्म ऊर्जा देता है और आध्यात्म को धर्म प्रश्रय देता है । इसलिए ही हम गर्व से उद्घोष करते आये है हमेशा की " धर्म की जय हो " ।

   उन आभासी ,झूठे पत्तों ने उस गुड़िया की नही सहस्त्रों वर्षो से मानवता ,सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की है ,जीवनदान दिया है ।

   मानव ,मानव है मित्र ! विज्ञान और धर्म का मिश्रण , मानव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक उत्पाद रोबोट नही है । जिस दिन मानव रोबोट हो जाएगा अधूरा दिशाहीन विज्ञान जीत जाएगा लेकिन मानवता नष्ट हो जाएगी !

   आज भी लोग रोबोट को केवल सहायक के रूप में चाहते है पुत्र-पुत्री ,माता -पिता ,पति-पत्नी  ,मित्र -बांधव के रूप मे नही ।

    मैं मानता हूं कि धर्म मे भी कई अशुद्धियों का अतिक्रमण हुआ है लेकिन जब दीवारों पर दीमक लग जाये तो दिमक का उपचार किया जाता है दीवारें ही नही गिरा दी जाती,क्योंकि दीवारें गिर गई तो मकान भी भरभरा के धराशायी हो जाएगा , मानव संभ्यता ही ध्वस्त हो जाएगी ।

     1994 मे एक महत्वपूर्ण विभाग के मुखिया दुनिया के नंबर चार चिकित्सक के कक्ष में मैने इस परमसत्य को देखा था जहां एक और हिप्पोक्रेट्स ओथ (डॉक्टरों द्वारा ली गई शपथ ) का  चित्र टंगा था  तो उंसके पास ही एक चित्र था जिसमे एक दिव्य प्रकाश के उजाले में लिखा था 

" शिफा तो महज दस्त-ए-कुदरत मे है ,फ़ख्त एक कोशिश है मेरी , दवा के साथ साथ दुआ भी मांग लेता हूँ । "

अर्थात उपचार तो वो सर्वशक्तिशाली प्रकृति /ईश्वर के ही हाथों में है , मेरा तो मात्र एक प्रयास भर है , औषधि के साथ प्रार्थना भी कर लेता हूं  कि रोगी स्वस्थ्य हो जाये ।


जय सनातन ।।


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