बागेश्वर धाम सरकार के साथ खड़ा होना प्रत्येक सनातनी का धर्म क्यों आईए जाने।

 उपनिषद कहते हैं यह जगत मिथ्या है ब्रह्म सत्य है अर्थात इस जगत में जो भी कुछ दिख रहा है वह वास्तव है ही नही ब्रह्मा सत्य है पुराण कहते हैं यह जगत में जो कुछ वह माया है ईश्वर ही सत्य है। भौतिकवादी कहते हैं यह जगत ही सत्य है इसके अलावा कोई दुनिया में  नहीं है। ये लोग यह कहते हैं भूल जाते हैं जब यह जगत सत्य है फिर आधुनिक वैज्ञानिक दूसरों ग्रहो जीवन कल्पना सच क्यों मानते एलियन सभ्यताओं की खोज क्यो कर रहे हैं । जब वैज्ञानिक कहते इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक विस्फोट कारण अपने आप हो गई जगत उत्पत्ति का कोई कारण नहीं था फिर वैज्ञानिक गॉड पार्टिकल की बात क्यों करते हैं गॉड पार्टिकल पर इतना शोध क्यो हुआ आज भी चल रहा है । इसका अर्थ आधुनिक विज्ञान भी ईश्वर अस्तित्व को स्वीकार कर रहा है जब वैज्ञानिक ईश्वर के अस्तित्व स्वीकार करते हैं। फिर विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है। सनातन धर्म दुनिया में आब्रहिमिक मतो की तरह है नहीं है सनातन धर्म एक विज्ञान है इसलिए आब्रहिमिक मतो सनातन धर्म की तुलना करने बचना चाहिए। संख्या योग दर्शन हो या मींमसा दर्शन हो या प्रश्नोउपनिषद या श्रीमद्भागवत गीता सबका आरंभ प्रश्न से होता है अंत उस तत्व को जानने के बाद होता है जिसे विज्ञान गॉड पार्टिकल कहता है वही वेदों उपनिषदों श्रीमद्भागवत गीता और पुराणों का ब्रह्म है इसलिए हमें कभी भ्रमित नहीं होना चाहिए इस विषय पर लेख आगे विस्तार से प्रकाश डालेंगे। 



अब बात लौकिक अलौकिक जगत की करता हूं यह सृष्टि में जो हम देख रहें हैं वह सब माया है उसका कोई अस्तित्व नहीं है सत सिर्फ आत्मा है जब व्यक्ति को आत्मतत्वका ज्ञान हो जाता है तब व्यक्ति ब्रह्म ज्ञानी कहलाता है । उसी प्रकार इस सृष्टि लय प्रलय का क्रम  अनवरत चलता है हजारों ब्रह्मांड बनते हैं और बिगड़ते रहते हैं । उसी प्रकार इस मृत्युलोक में  हर पल लोगों की जन्म और मृत्यु होती रहती हैं, प्रतिदिन लाखों लोग जन्म लेते हैं, तो लाखों लोगों की मृत्यु भी होती है। यह सब तो अपने आप तो होता नहीं जब सृष्टि उत्पत्ति बिना कारण से हुई किसी का जन्म भी नहीं होना चाहिए न किसी मृत्यु होनी चाहिए इससे यह सिद्ध सृष्टि गति को सुचारू रूप से कोई दैवीय शक्ति संचालित कर रही । वही दैवीय शक्ति अलौकिक जगत है जिसे उपनिषद की भाषा आत्मा ही ब्रह्म है ,पुराणों की भाषा में आदि शक्ति ब्रह्म विष्णु महेश देवताओं आदि को मान सकते जो इस लौकिक अलौकिक जगत के स्वामी हैं वही इस जगत चला रहे वही इस जगत का लय भी करेंगे । भौतिक जगत और अलौकिक जगत को सरल शब्दों में समझने के लिए जिसे हम आप देख रहे हैं खेल रहे हैं वह लौकिक या भौतिक जगत है जिसे हमे नहीं देख पा  रहे हैं वह अलौकिक जगत है उदाहरण के लिए मेरा मित्र श्याम अमेरिका में रहता है मैं रीवा में रहता हूं उसे हम तो देख नहीं पा रहे हैं उससे मिल भी नहीं पा रहे हैं फिर श्याम अस्तित्व तो है । उसी प्रकार भौतिक जगत की तरह अलौकिक जगत का भी अस्तित्व है । जैसे लौकिक जगत का अस्तित्व उसी तरह ब्रह्म का अस्तित्व है आप सगुण साकार ब्रह्म को नहीं मानते तो आप निर्गुण निराकार ब्रह्म को मानिए हम यह कह दे जो ब्रह्म निर्गुण निराकार है वह सगुण साकार रूप धारण नहीं कर सकता है तो हम अपने विवेक पर प्रश्न है उठा रहे हैं ।  जिस ब्रह्म की सृजन शक्ति माया है उस माया के माध्यम हर प्राणी को वह ब्रह्म अपनी इच्छा अनुसार नचा रहा है वह ब्रह्म सगुण रूप धारण नहीं कर सकता है। इसका अर्थ है कि ब्रह्म की शक्ति को स्वीकार तो कर रहे हैं फिर भी प्रश्न कर रहे वह ईश्वर सगुण साकार रूप धारण नहीं कर रहा है इसका अर्थ हम इस जगत को समझ नहीं पा रहे या समझकर सच को नहीं स्वीकार कर रहे हैं । इसलिए कहावत बहुत प्रचलित है जो सो रहा है उसे जगाया जा रहा है जो जागकर सो रहा है उसे कोई नहीं जगा सकता है। 

अब कुछ लोग प्रश्न  करेंगे परम ब्रह्म इस ने ब्रह्मांड की रचना किस उद्देश्य के लिए की है  उसे ब्रह्मांड की रचना की करने इच्छा कारण  क्या  था । ऐसे प्रश्न जरूर मन में उठ रहे होंगे । इस प्रश्न उत्तर एक उदाहरण के माध्यम से सरल शब्दो मे देने का प्रयास करूंगा । हम लोग बचपन में कभी गर्मियों की छुट्टियों में अकेले होते हैं उस वक्त हमारे पास सबकुछ होता है फिर भी घर में अच्छा नहीं लगता है उस वक्त हमारे पास किसी वस्तु की कमी नहीं होती है सबकुछ होते हुए फिर घर के अंदर अच्छा नहीं लगता है ऐसी अवस्था क्यो होती जब हम बाहर जाकर मित्रों साथ खेलने लगते हैं तभी अच्छा क्यो लगता क्योंकि हमे घर में बैठने आनंद नहीं मिल रहा था बाहर मित्रों साथ खेलने से जो आनंद मिलता है वह आनंद घर के अंदर संभव नहीं था । उसी प्रकार जब हमे बचपन में खेलने के बिना आनंद नहीं मिलता था । वैसे परम ब्रह्म को  परम आनंद की अनुभूति के लिए खेल रूपी जगत का सृजन ब्रह्म अपनी सृजन शक्ति माया के माध्यम से करता है । ब्रह्रा के लिए यह जगत खेल के मैदान की तरह है इसलिए हमारे शस्त्रो में ब्रह्म का एक नाम परमानंद भी है । फिर एक प्रश्न उठेगा इस जगत में सबकुछ ब्रह्म की इच्छा कारण हो रहा है जो मानव पाप दुष्कर्म दुराचार लूट करते हैं वह सब ब्रह्म ही  कर रहा है । जब सबकुछ ब्रह्म की इच्छा अनुरूप हो । इस प्रश्न का उत्तर होगा । हमारे शरीर में दो शरीर होते हैं एक आत्मा दूसरा मन रूपी सूक्ष्म शरीर , सूक्ष्म शरीर अपने इन्द्रियो के माध्यम सबकुछ करता है । जो योगी अपने इन्द्रियो को नियंत्रित करके अपने आत्म तत्व को जान लेता है वह इस लौकिक जगत से मुक्ति होकर अलौकिक जगत में जा सकता है ।  हमें अलौकिक जगत की प्राप्ति इसी जीवन में हो सकती है सिर्फ अपने आत्म तत्व को जानने की आवश्यकता है। अपने आत्म तत्व को जान गए तो हम ही ब्रह्मा विष्णु महेश हो सकते हैं। फिर आत्म तत्व को जानने के लिए एक योग्य गुरु आवश्यकता होती है नहीं तो आत्मा तत्व जानने के प्रयास में पागल भी हो सकते हैं । इसलिए ग्रहस्थ के लिए ज्ञान मार्ग उचित नहीं माना गया है । ग्रहस्थ के लिए सिर्फ कर्म मार्ग या जिसे सरल शब्दों भक्ति मार्ग  भी कहते हैं इसलिए भक्ति मार्ग से मनुष्य लौकिक जगत से मुक्त हो सकता है । इसलिए भक्ति मार्ग के लिए तत्व पूजा आवश्यक मानी गई और ईश्वर आराधना उपासना और कर्मकांड बनाए गए जिससे मनुष्य अपना ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करके इस जगत से मुक्ति प्राप्त कर सकें क्योंकि ज्ञान मार्ग मन इन्द्रियों नियंत्रित करने करके ब्रह्म को प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता उसी प्रकार भक्ति मार्ग से अपने ईष्ट का ध्यान करके अपने मन और बुद्धि इन्द्रियों को शुद्ध करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है ।


 बहुत लोग कहते ब्रह्म निर्गुण निराकार वह अवतार नहीं ले सकता है । जब उस ईश्वर के बिना इस सृष्टि में एक पत्ता भी नहीं हिलता वह ईश्वर अपनी माया शक्ति माध्यम से दुष्टों को दंड देने लिए सज्जनों की रक्षा के लिए लोगों धर्म अर्थ समझने के लिए अवतार क्यों नहीं ले सकता है वह ईश्वर अवतार भी ले सकता है यह प्रश्न पूरी तरह निराधार कि ईश्वर निर्गुण निराकार है ईश्वर निराकार भी है तो धर्म की स्थापना के लिए इस ब्रह्मांड की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित करने के लिए वह सगुण साकार भी है क्योंकि वह ब्रह्म सत है वह निर्गुण निराकार भी होकर सगुण साकार रूप भी धारण कर सकता है क्योंकि वह ईश्वर चराचर जगत में विद्यमान है इसलिए हम सबको समझना चाहिए इस जगत में जो कुछ हो रहा है उसका कारण है बिना कारण के इस जगत में कुछ नहीं हो सकता है इस जगत में धर्म का अर्थ सनातन धर्म है बाकी सब मत पंथ और संप्रदाय हैं इसलिए सभी धर्म है इस मिथ्य को समझिए और धर्म अनुसरण करिए यही आपका धर्म है ।

एक प्रश्न आता है क्या भूत प्रेत टोना टोटका आदि क्या  संभव है 

इस जगत में जो असंभव लग रहा है वह संभव नहीं है यह विचार रखने वाले लोग लौकिक और अलौकिक जगत को समझते नहीं या समझते हैं तो सच स्वीकार नहीं करना नहीं चाहते हैं। क्योंकि  जो चारो ओर दिख रहा है उसका कोई अस्तित्व  नहीं है जो नहीं  उसी का अस्तित्व  है । इस जगत हम जो हिस्सा दे रहा है वह इस जगत 1% हिस्सा 99% जगत से हम अनभिज्ञ हैं। इस  जगत को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए मूलभूत चार सिद्धांतो की आवश्यकता होती है पहली आत्मा , दूसरा  ब्रह्रा  तीसरा भौतिक जगत  चौथा कर्म फल सिद्धांत है ।  ‌इसलिए इस जगत सुचारू रूप संचालित करने के लिए कर्म फल सिद्धांत सबसे महत्वपूर्ण कारक  है ऋ । उदाहरण के लिए जब सबको ईश्वर मुक्ति देने लगे , पापियों और असुरों को भी मुक्ति देने लगे सभी  के साथ समानता का व्यवहार करने लगे तो इस सृष्टि पापियों और पुण्य आत्मा कोई अंतर नहीं रह जाएगा  । लोग सत्य धर्म न्याय नीति मार्ग का  अनुसरण करना भी छोड़ देंगे  जिसके कारण समाज में अवस्था और अराजकता फैल जाएगी पूरा सृष्टि चक्र बिगड़ने लगे उसी व्यवस्था सुचारू रूप संचालित रखने के लिए कर्म फल सिद्धांत पर आधारित व्यवस्था ब्रह्म ने बनाई जिससे पापियों को दंड दिया जा सके पुण्यात्माओं धर्म मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके जिससे समाजिक नैतिक मूल्य संरक्षित रहे समाज में अव्यवस्था ना फैले  । कर्म फल सिद्धांत में अच्छी  आत्माओं को प्रोत्साहन  दिया और दुष्ट पापी आत्माओ को ईश्वर दंड देता है इस विषय पर गरूड़ पुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है । फिर मैं संक्षेप बताने का प्रयास करूंगा पापी आत्माओ को दंड स्वरूप ईश्वर नर्क लोक में भेजा देता जो पुण्य आत्मा होती है उन्हें स्वर्ग सुख भोगने के लिए कुछ कुछ समय के लिए स्वर्ग लोग भेज देते हैं उनके पुण्य जब क्षीण हो जाते उन्हें फिर से मृत्यु लोक आना पड़ता है कुछ पवित्र विशिष्ट श्रेणी आत्मा होती है उन्हें इसी मृत्यु लोक में लोक देवता रूप लोक कल्याण के लिए मृत्यु लोक कुछ समय लिए भेजता है । अब  भूत प्रेत योनि की बात करते हैं  भूत अर्थ भूतकाल से होता है जो इच्छाएं किसी कारण वस पूर्ण नहीं होती है उन्ही इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक आत्मा एक समय सीमा तक भटकती रहती है जब उनके पाप पूर्ण होते हैं ईश्वर उन्हें दूसरी योनि में भेजा देता है 84 लाख योनि भोगने के बाद मनुष्य का तन मिलता है । उसी प्रकार प्रेत योनि वह आत्माए जाती है जिनकी मृत्यु अकाल मृत्यु होती है या कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं या उनके अंतिम क्रिया कर्म उनके परिवार के लोग नहीं करते वही आत्माएं प्रेत योनि में जाती है प्रेत योनि में हिंदूओ जाने की संभावना सत प्रतिशत कम रहती है आब्रहिमिक संप्रदायो ज्यादा रहती है क्योंकि वह लोग दाह संस्कार नहीं करते हैं विधि विधान अन्तिम संस्कार नहीं करते हैं वह आत्माएं इस जगत में अनादि काल तक भटकती रहती है। इसी कारण वह आत्माएं बहुत घातक भी होती है । इन्ही आत्माओं से रक्षा के लिए तंत्र विद्या की रचना हुई जिससे दुष्ट आत्माओं से लोगों की रक्षा किया जा सके फिर कुछ स्वार्थी लोगों उन विद्याओं गलत प्रयोग किया सिद्धियों का भी गलत प्रयोग किया वहीं गलत प्रयोग टोना टोटका मूठ आदि नाम जानी जाती है । जब किसी विद्या का प्रयोग सकारात्मक कार्य के लिए होता है समाज के लिए हितकारी होता है जब किसी विद्या प्रयोग समाज के अनहित के लिए कुछ लोग करने लगते हैं वही वही विद्या समाज के लिए घातक होती है तंत्र विद्या से कुंडली चक्र को जागृति किया जा सकता है तंत्र विद्या कुछ ऐसी भी सिद्धियां जो मृत्यु व्यक्ति जीवित कर सकती हैं कुछ विद्याएं ऐसी जिसमें भूत भविष्य सब बताया जा सकता है इन विद्याओं का प्रचार प्रसार दुनिया भर में हुआ है लोक कल्याण की भावना से फिर आसुरी प्रवृत्तियां को मानने वाले लोगों इन विद्याओं को प्रयोग समाज के विरुद्ध करना शुरू किया है इसलिए जो विद्या प्रयोग ग़लत विचार से किया जाता उस तोड़ भी दिया गया है जिससे समाज में अवस्था फैले इसका ध्यान रखा गया है। उसी के लिए सनातन धर्म में कई सारे तंत्रिक मत पंथ हुए इन मत के मानने वाले उसका लोक कल्याण के लिए प्रयोग भी किया फिर भी बौद्ध मत के आने इन मतो को मानने लोगों विकृतियां आने लगी थी उसे जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी तंत्रिक मतो को मानने वाले लोगों को पराजित किया कुछ मतो राजाओं मध्यम से दंड भी दिया है। उनकी विकृतियां भी दूर की है। धर्म का अर्थ लोक कल्याण भी होता इसलिए अनुचित भी उचित है कई विद्या समाज के लिए घातक भी थी फिर उनका प्रयोग धर्म रक्षा के लिए बागेश्वर धाम जो अभी कर रहे हैं वह आज के संदर्भ उचित नहीं लग रहा है जो ईश्वरीय प्रेरणा से लोक कल्याण में कर है उचित है इस जगत में सबकुछ है भौतिक जगत भी परा जगत भी है । आज के समय भाई भाई का नहीं है लोग अपनो धन संपत्ति के लिए मर देते हैं दोस्त 10 रूपए के लिए हत्या कर देता है । उस काल में आपने शत्रु को निपटाने के इन विद्याओं का प्रयोग नहीं करते हैं । कुछ दुष्ट अतृप्त आत्माएं भी होती है वह भी लोगों परेशान करती है कुछ भौतिक बधांए होती है कुछ ग्रह नक्षत्रों कारण भी लोग परेशान रहते हैं उन परिस्थितियों को निपटाने के लिए यह आवश्यक होता है ।  भूत प्रेत नहीं ठीक करने लिए लोक देवता की धरती लोक पर भेज जाते  ऐसे लोक  देवता कुछ विशिष्ट मनुष्यों के माध्यम समास्याओं समाधान भी तो करते हैं ऐसे लोक देवता हर गांव में मिल जाएंगे जो कार्य बागेश्वर धाम आज कर रहे हैं विद्या अनादि काल से चल रही है कुछ कारण वस इन विद्याओं का दुरूपयोग बहुत हो रहा है फिर भी इन विद्याओं और इन सिद्धियों के माध्यम लाखों करोड़ों लोगों भला हो सकता है कुछ ग़लत लोग कारण सभी पाखंडी अंधविश्वासी आदि नहीं कह सकते हैं । यह विद्याए और सिद्धियां इस कलियुग में बहुत आवश्यक नहीं है तो आसुरी शक्तियां हमारा जीवन दुर्भर कर सकती हैं। हम सबको ध्यान रखना चाहिए कौन सा व्यक्ति इन सिद्धियों को प्राप्त करने के बाद किस मार्ग पर चल रहा है जो इन सिद्धियों प्रयोग लोक कल्याण के लिए प्रयोग कर रहा है उस व्यक्ति के साथ हमे खड़े होना चाहिए या कोई व्यक्ति इन सिद्धियों को प्रयोग अपने निजी स्वार्थ या धन लाभ के लिए प्रयोग कर रहा इन विद्याओं सिद्धियों दुरूपयोग कर रहा है उस व्यक्ति खुला विरोध होना चाहिए यह सिद्धियां सिर्फ लोक कल्याण के लिए जो लोग इन विद्याओं दुरूपयोग कर रहे हैं वह समाज के लिए घातक ऐसे लोगों का पूरे समाज को विरोध करना चाहिए । 

जो लोग बागेश्वर धाम धाम के पूज्य धीरेन्द्र शास्त्री जी पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह अन्धविश्वास फैला रहे हैं चमत्कार करते हैं वह लोग यह बताए उनके किताबों यह लिखा है इस संसार की उत्पत्ति 6 हजार वर्ष पहले हुई है और सात दिन में हुई  दूसरे बताए उनके आसमानी किताब में लिखा यह धरती चपटी है। और यह अन्धविश्वास उन्मूलन सीमित वाले श्याम मानव बजिंदर सिंह या पॉल दिनाकरन जैसे हलेलुईया अथवा फकीरों-मजारों वाले "सो कॉल्ड" चमत्कार करते हुए लोगों ठीक करने का दाव करते हैं उनसे कब प्रश्न करने जाएंगे उनके खिलाफ पुलिस में कब शिकायत करेंगे । वो लोग अन्धविश्वास नहीं फैला रहे हैं। अन्धविश्वास सिर्फ पूज्य धीरेन्द्र शास्त्री फैला रहे हैं तीसरे बजिंदर सिंह या पॉल दिनाकरन जैसे हलेलुईया अथवा फकीरों-मजारों वाले "सो कॉल्ड" चमत्कारों के सरेआम उपलब्ध वीडियो, अपने चैनल से आम जनता को दिखाए हैं?? या उन पर कोई ठोस चर्चा की है?? इसका मतलब आप लोगों को समास्या सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म से है इसलिए आप अन्धविश्वास तार्किकता और वैज्ञानिकता नाम पर अपना सनातन विरोधी एजेंडा चला रहे हैं। इस एजेंडा हिंदू समाज को समझना चाहिए इन शक्तियों का प्रतिकार करना चाहिए नहीं तो आपके अस्तित्व संकट खड़ा हो जाएगा। तर्क विज्ञान शास्त्रार्थ शांति काल में हो सकता है युद्धकाल में सिर्फ आपकी रक्षा शास्त्र ही कर सकता है यह सनातन खिलाफ यह युद्ध है यह युद्ध हजार वर्ष से अनवरत जारी है इस युद्धकाल में शत्रुओं पर प्रहार करने की वज़ह जो शत्रुओं कोई लड़ रहा है उसके साथ खड़ा होने की वजह तर्क वैज्ञानिकता सिद्धांत लाएंगे तो हम युद्ध के मैदान में शत्रु पक्ष खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसलिए निसंकोच संदेह मुक्त होकर बागेश्वर धाम के महंत पूज्य धीरेन्द्र शास्त्री जी के साथ मजबूती के साथ खड़ा होना चाहिए । उनके साथ खड़ा होना हम लोग का धर्म है हमें इस धर्म का पालन करना चाहिए नहीं करेंगे तो कल आपके लिए कोई आवाज उठाने की हिम्मत भी नहीं करेगा इसलिए कायर नहीं बनिए सनातनी बनिए और धर्म की रक्षा करने के लिए सदैव तात्पर्य रहिए क्योंकि धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा 

दीपक कुमार द्विवेदी
जय बाला जी सरकार

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