घर छोड़े हुए बहुत समय हो गया। जब घर से निकले थे तब से लेकर आजतक एक ही वस्तु constant रहा जीवन में - श्रीरामचरितमानस!

घर छोड़े हुए बहुत समय हो गया। जब घर से निकले थे तब से लेकर आजतक एक ही वस्तु constant रहा जीवन में - श्रीरामचरितमानस! 

जीवन जहाँ भी लेकर गया, इसका साथ रहा। भौतिक जीवन कई बातों को बनते-बिगड़ते देखा, कई लोगों को आते-जाते देखा, ज्ञान और ध्यान को भी ऊपर-नीचे जाते देखा लेकिन जो constant रहा वो है - श्रीरामचरितमानस! 

कभी ज्ञान के दंभ में भी पन्ने पलटे तो कई बार भक्तिरस में नहाते हुए भी डुबकी लगाने का प्रयास किया। कभी बिल्कुल डर से हाथ से पकड़ लिया तो कभी प्रसन्नता में पुष्प अर्पण कर दिया। लेकिन इतने सारे emotions में भी जो constant रहा वो है - श्रीरामचरितमानस! 

कई बार प्रश्न भी पूछे और कई बार बिना प्रश्न के अपना उत्तर भी सुना दिया। कभी बिना बात के ढेर सारी कहानियाँ सुना दिया तो कभी घंटों बैठ कर सुनने का प्रयास किया। जब कुछ अच्छा मिला तो उसका स्वाद भी चखा लेकिन जब कुछ बुरा मिला तो लाकर इसके चरणों में रख दिया। लेकिन इन सबमें भी जो constant रहा वो है - श्रीरामचरितमानस! 

तो अक्षरों को न समझ सकने वालों सुनों,

दुनियाभर के तर्क-वितर्क इकट्ठा करने वालों तुम भी सुनों,

शब्द का संधि-विच्छेद करके उससे नया मतलब निकालने वालों तुम भी सुनों,

और श्रद्धा-भक्ति को कभी न अनुभव कर पाने वालों तुम भी सुनों,

तुम किसी भी स्तर पर अपनी चर्चा को लेकर चले जाओ, ये द्वंद तुम जीत ही नहीं सकते। तुम वैसी आस्था को हिला ही नहीं सकते जिसकी नींव में ईश्वर स्वयं विराजमान है। तुम तर्क से भी नहीं जीत सकते क्योंकि तुम्हारा बौद्धिक विकास हुआ ही नहीं है (और हरकतों को देखकर लगता है होगा भी नहीं)!

निवाला उतना ही मुँह में डालो जितना चबा सको….

शेष किसी और माध्यम से…

कुमार दिपांशु जी 

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