यहां हर कोई अपने चेहरे को एक मुखौटे से छुपा रखा है और अपने अहं की तुष्टि के लिए आदर्शवाद का पाखंड, ढकोसला और दिखावा करता है।

यहां हर कोई अपने चेहरे को एक मुखौटे से छुपा रखा है और अपने अहं की तुष्टि के लिए आदर्शवाद का पाखंड, ढकोसला और दिखावा करता है।

अहंकार तुष्टि का एक उदाहरण देखिए....

किसी एक को जो अपने बच्चे के साथ हो उससे एक प्रश्न पूछिए :- "यह बच्चा किसका है??"

क्षण भर को भी देरी किए बिना वह कहेगा, "मेरा है.!"

जबकि यह अर्ध सत्य ही है। पूर्ण सत्य यह है कि वह बच्चा उसका और उसके पति/पत्नी का संयुक्त रूप से है।

यह जानते हुए भी वह "हमारा" कभी भी नहीं कहेगा।

ऐसा इसलिए होता है कि "मेरा" कहने भर से ownership का गर्व अनुभव होता है। एक authority का भाव आता है।

और इससे "अहंकार" को बल मिलता है।

यह सारा मद्य निषेध, मांस निषेध, सादा जीवन उच्च विचार, ढिंग ढकोसला ही है।

इनलोगो को "आनन्द" का न अर्थ पता है और ना ही कभी अनुभूति प्राप्त है।

ऐसा विचार प्रदर्शित करने से उनके अहंकार को बल मिलता है।

ओशो ने कहा था, "तुम्हारा समाज सदा से केवल गंभीरधर्म और उदास आदमी को ही सम्मान देता है।
प्रेमी और गीत गाते हुए आदमी को हमेशा से रुलाया गया है।"

इसलिए किसी को प्रसन्न, आनंदित, आह्लादित देख कर अधिकांश लोगों को वेदना होने लगता है।

सर्वोत्तम उपाय यही है कि ऐसे रुग्ण मानसिकता वाले को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए।

इन को समझाने में अनावश्यक रूप से ऊर्जा क्षरण करना निरर्थक है।

और अपने आनन्द में परमानन्द से मिलन को प्रयासरत रहें।

सबों को परमानन्द की प्राप्ति हो...!!

जय मधुसूदन जय घनश्याम 🙏🚩

जय सच्चिदानंद 🙏🚩

जय महाकाल 🙏🌹🚩

साभार 
प्रेम झा

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