हमारे सनातनी पूर्वजों की सृजनशीलता किसी भी अन्य सभ्यता से अतुलनीय ही रहा है।
सनातनी हाथों ने जो कुछ भी रच डाला है वह आज भी कल्पनातीत ही है।
यहां तक कि उस सृजन में प्रयोग किए गए तकनीकों से भी आज का आधुनिक विश्व और आधुनिक विज्ञान अनभिज्ञ ही है।
उनके सृजन में उपयुक्त यंत्र और विधि आज तक भी रहस्य के गर्भ में छुपे हुए हैं।
चलिए देखिए इन अद्भुत चित्रों को.......
(चित्र साभार)
जैसा कि वामियों, कांगियों, लहरू के चरण-चाटूकारों ने लुगदी उपन्यास (इतिहास) में लिख कर संसार को बताया था कि आर्यावर्त के निवासी सँपेरे, असभ्य जंगली थे..
तो "उनाकोटी" के रघुनंदन पहाड़ों पर (त्रिपुरा में) यह नयनाभिरामी, अद्वितीय, अद्भुत शिल्प किसने बनाया??
क्योंकि जिस काल में यह बनाया गया था उस समय ईसा-मूसा का जन्म भी नहीं हुआ था।
इस काल में "उजला, हरा, पीला, नीला" का कोई अस्तित्व ही नहीं था।
सभी पहाड़ आदि देव शिव, श्री गणेश, श्री विष्णु, मां भवानी आदि आराध्य देव/देवी के मूर्तियों से भरे पड़े हैं।
यह धर्मनगर का महत्वपूर्ण तीर्थ व पर्यटन स्थल है।
वैसे "उनाकोटी" का अर्थ बंगाली में
"करोड़ से एक कम" अर्थात (९९,९९,९९९) होता है।
कल्पना करें कि हमारे पूर्वजों ने कितने वर्षों के अथक परिश्रम के बाद इन्हें बनाए होंगे।
कितना श्रमसाध्य रहा होगा यह और कितना समय लगा होगा इसके निर्माण में.???
उन सनातनी पूर्वजों के धर्म के प्रति समर्पण और भक्तिभाव को नमन है।
अविश्वसनीय सनातन धरोहर...!!
जय सनातन धर्म 🙏🚩
जय महाकाल 🙏🔱🚩
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