सनातन वर्ण व्यवस्था विश्लेषण


 वैदिक वर्ण व्यवस्था सनातन संस्कृति का "वरदान या अभिशाप"....!!

एक अवलोकन....

वामपंथियों और मैकाले के मानस पुत्रों को सबसे अधिक समस्या ब्राह्मणों से रहा है।

इस कथित बुद्धि-जीवी का कहना है कि ब्राह्मण शूद्रों को अछूत मानते थे। आइए इस तथ्य की वास्तविकता को जानने का प्रयास करते हैं ।

सभी जानते हैं कि :- 

जब ब्राह्मणों के घर ब्रह्मभोज होता था तो उनके घर जो दोना पत्तल लगता था वह मुसहर (महादलित) लेकर आते थे।

जो पानी भरा जाता था वह कहार भरते थे।

जो मिट्टी का बर्तन प्रयोग होता था वह कुम्हार बनाते थे।

जो आवश्यक कपड़े लगते थे वह बुनकरों (तांती) के यहाँ से आते थे।

जो जनेऊ होती थी उसके कच्चे सूत शूद्र कारीगर बनाते थे।

हाथ में जो कलावा पहनते हैं यह भी शूद्र (पटवा) समाज ही बनाते थे। 

नदी जब पार करते थे तो उसे मल्लाह पार करवाते थे।

अन्न किसानों से आता था।

और दुग्ध तथा दुग्ध उत्पाद अहीरों के यहाँ से आते थे।

छूत अछूत वाली सारी कहानी यहीं धराशाई हो जाती है।

ब्राह्मणों ने ऐसे समाज की रचना की थी जहाँ सबको बराबर काम आवंटित होता था और ९०% कार्य क्षेत्रों में शूद्रों को आरक्षण दिया गया था।

ब्राह्मण सिर्फ शिक्षा (education) का काम संभालते थे।

क्षत्रिय राजकाज और समाज की रक्षा (security) का।

जबकि वैश्य व्यापार (business) सम्हालते थे।

औद्योगिक उत्पादन (production) का पूरा कार्य शूद्रों के हाथों में था।

लेकिन रक्तचूषक ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने शूद्रों का पूरा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर उनसे छीना और वो फिर से उबर न पाये इसके लिए उन्होंने ब्राह्मणों को ही खलनायक बना दिया। जिन ब्राह्मणों ने एक आदर्श समाज की रचना की थी उसे ही कलंकित कर दिया, और आज दुख इस बात का है कि आज भी कुछ लोग इसी बात को आधार बनाकर इस पर राजनीति करते हैं और इस पर अपनी रोटी सेक रहे है।

अब, इसे CORPORATE operation theory से इस प्रकार समझते हैं।

जिस प्रकार एक corporate house को सही तरीके से चलाने और पूर्ण उत्पादकता के लिए अलग अलग विभाग की आवश्यकता होती है जो independently operate करते हैं लेकिन उनका लक्ष्य COMMON OBJECTIVE उस corporate house का vertical and horizontal growth and development होता है।

Similarly, सनातन समाज भी अपने उत्थान और विकास के लिए जो विभिन्न विभागों का सृजन किये उन्हें "वर्ण" का नाम दिए।

विभिन्न वर्णों के कार्य का distribution इस प्रकार किया गया :- 

ब्राह्मण वर्ण : इनका कार्य formulation of strategy and planning for the growth of SANATAN society.

इसके लिए ब्राह्मणों को जन्म से मृत्यु तक के सोलह (१६) संस्कारों के लिए विधि विधान, नियम बनाना, शिक्षा का समग्र व्यवस्था करना, एक सुसंस्कृत मानव निर्माण के लिए नियम बनाना।

क्षत्रिय वर्ण : इनका कार्य marketing and sales,  implementation of discipline, promotion and advertisement था।

इसके अंतर्गत योद्धाओं का selection/recruitment, training, deployment इनकी जिम्मेदारी यही। Competitor को crush करने के रणनीति बनाना, exploring new territories राज्य सीमा विस्तार इनके कंधों पर था।

वैश्य वर्ष : Finance and account department इनके पास था। समाज में व्यय तथा व्यवसाय इनके पास था। इन्हें proper allocation of raw material and resources करना पड़ता था। जैसे खेती के बीज उपलब्ध कराना, अलग अलग उत्पादों के लिए कच्चे माल की व्यवस्था करना इत्यादि।

शुद्र वर्ण : इनके पास सभी products के production department था। मिट्टी के उत्पाद, धातु के उत्पाद, लकड़ी के उत्पाद, अन्न उत्पादन, या कहें कि जितने भी प्रकार के उत्पाद हम सोचते हैं उनके research, development and production इनके हाथों में था।

अब यदि कोई भी एक वर्ण-(विभाग) का कार्य सुचारू रूप से नहीं होता है है तो सनातन समाज का सर्वांगीण विकास प्रभावित हो सकता है।

इतना सुव्यवस्थित संरचना को रक्तचूषक अंग्रेज आक्रमणकारियों ने छिन्नभिन्न कर दिया। जिससे जो भारत कभी विश्व अर्थव्यवस्था में 25% का योगदान करता था 2% पर गिर गया।

आवश्यकता है समाज के सभी वर्णों को पुनः एक होकर सनातन वर्ण व्यवस्था के अनुरूप कार्य करने का और भारत को एकबार फिर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए कृतसंकल्प होने का।

जय सनातन धर्म🙏🚩

जय महाकाल 🙏🔱🚩

साभार 

प्रेम झा 


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