समाजवादी व्यवस्था की जकड़ना भारत को लगातार पीछे कैसे ले जा रही है आइए जानें?


भारत देश की संस्कृति और सभ्यता हजारों वर्षों से चल आ रही है हमारे सनातन धर्म मूल तत्व में धर्म अर्थ काम मोक्ष्य है जिस धर्म अर्थ के बिना धर्म की कल्पना भी नहीं की गई है जहां पर हर घर में लक्ष्मी की पूजा होती है उस देश में लक्ष्मी रूपी पैसे का विरोध करने वाली समाजवादी आर्थिक नीति नेहरू जी ने  देश के उपर जबरदस्ती थोप दिया था जिसके कारण भारत का आर्थिक सामाजिक विकास जिस तेजी होना चाहिए उससे प्रभावित हुआ वो मानसिकता लगातार देश में चल रही है

1947 से 1990 तक भारत 1991 से 2022 तक भारत में क्या अंतर है 

भारत की स्वतंत्रता के बाद रूस के साम्यवादी व्यवस्था के 1951 में पंचवर्षीय योजना के रूप लागू किया है धीरे धीरे भारती अर्थव्यवस्था का सरकारीकरण शुरू किया गया और लाइसेंस कोटा राज्य स्थापित किया गया है सरकार के बिना अनुमति के कोई व्यक्ति न कुछ बना सकता था न बेच सकता था जिसके कारण बाजार प्रतिस्पर्धा खत्म होती गई है समाजवादी कम्युनिस्ट नेता औद्योगिक प्रतिष्ठानों हड़ताल करनें लगे वो हड़तालों शासन का समर्थन मिलता था कुछ वर्षों बंगाल उत्तर प्रदेश बिहार के बड़े शहरों लगे औद्योगिक प्रतिष्ठान बंद हों गए इन हड़तालों सबसे ज्यादा प्रभावित हुए पश्चिम बंगाल कोलकाता उत्तर प्रदेश कानपुर जो उस समय के भारत ग्रोथ इंजन हुआ करते थे वामपंथियों की  हड़तालो कारण कई भारतीय उद्यमी भारत छोड़ दिए कई उद्यमी कानपुर कोलकाता छोड़कर महाराष्ट्र चले गए इन सब दुष्कृत्यों  को समर्थन समाजिक न्याय के नाम पर कांग्रेस और कम्युनिस्टो और समाजवादी नेताओं ने दिया इसी कारण भारत को दुनिया सांप और सपेरे का देश कहा जाने लगा पश्चिमी अर्थशास्त्री इसे Hindu growth of economy कहकर मज़ाक उड़ाते थे इस बात पर कई कांग्रेसी वामी कहते हुए पाये जाते हैं इसी कालखंड मे तीन बड़े युद्ध और अकाल पड़ा था जिसके कारण भारत की आर्थिक ग्रोथ प्रभावित हुई इस संदर्भ में बात करते हुए ये लोग भूल जाते है उसी कालखंड में चीन और सिंगापुर ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी और जापान में  तो अमेरिका ने परमाणु बमं गिरा दिया था फिर भी ये सभी देशों कैसे भारत से तेज़ी विकास  कैसे कर रहे थे ? भारत ऐसा क्यों नहीं कर पाया ?  भारत के स्वतंत्र  होने के एक वर्ष बाद 1948 में चीन स्वतंत्र हुआ था उस समय इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन भारत से बहुत पीछे था । भारत के पास जिस स्तर का इन्फ्रास्ट्रक्चर था औद्योगिक इकाइयां थी उस समय इस स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर  में एशिया महाद्वीप के  किसी देश पास नहीं था ।   कैैैसेे  नेहरू वादियों ने उस अवसर को भी बर्बाद किया  उसके आंकड़े आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं ।
 वर्ष 1961 में भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट 3.72 फीसदी पर थी.

वर्ष 1962 में इसमें करीब 0.79 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 2.93 फीसदी पर पहुंच गयी.

हालांकि, 1963 में इसमें करीब 3.06 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और यह 5.99 फीसदी के स्तर तक आ गयी.

वर्ष 1964 में भारत के जीडीपी ग्रोथ रेट में करीब 1.46 फीसदी यानी 7.45 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

वर्ष 1964 के दौरान भारत में भारी अकाल पड़ा था. इस अकाल की वजह से देश के लाखों लोगों की जानें चली गयी थीं. तब अमेरिका जैसे धनाढ्य देश भारत को आर्थिक सहायता के साथ ही पौष्टिक खाद्यान्न भी मुहैया कराते थे. इसी का नतीजा रहा कि वर्ष 1965 में सालाना 10.09 फीसदी की गिरावट के साथ भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 2.64 फीसदी पर पहुंच गई

वर्ष 1964 के अकाल का असर भारत के जीडीपी ग्रोथ पर केवल एक वित्त वर्ष तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि वर्ष 1966 में भी यह माइनस 0.06 फीसदी तक पहुंच गया.

मानसून अनकूल और कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में जब अकाल का दौर करीब-करीब खत्म हो गया और देश में सामान्य तरीके से वर्षा होने लगी, हरित क्रांति का प्रभाव दिखने लगा, तब वर्ष 1967 में भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट 7.83 फीसदी तक पहुंच गया.

वर्ष 1971 में अचानक भारत के जीडीपी ग्रोथ में गिरावट दर्ज की गयी और यह 1.64 फीसदी पर पहुंच गया.

वर्ष 1972 में भारत की जीडीपी में 0.55 गिरावट दर्ज की गई 

हालांकि, वर्ष 1973 में यह 3.30 फीसदी पर पहुंच गया.

वर्ष 1974 में यह फिर 1.19 फीसदी पर पहुंच गया.

जब देश में इमरजेंसी लागू की गयी थी, तब देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 9.15 फीसदी थी.

लेकिन, वर्ष 1976 में यह धड़ाम हो गयी और यह 1.66 फीसदी के स्तर तक गिर गई.

जानिए 1977 के बाद क्या रही देश की आर्थिक स्थिति

वर्ष 1977 : 7.25 फीसदी

वर्ष 1978 : 5.71 फीसदी

वर्ष 1979: 5.24 फीसदी

वर्ष 1980 : 6.74 फीसदी

वर्ष 1981 : 6.01 फीसदी

वर्ष 1982 : 3.48 फीसदी

वर्ष 1983 : 7.29 फीसदी

वर्ष 1984 : 3.82 फीसदी

वर्ष 1985 : 5.25 फीसदी

वर्ष 1986 : 4.78 फीसदी

वर्ष 1987 : 3.97 फीसदी

वर्ष 1987 : 3.97 फीसदी

वर्ष 1987 : 3.97 फीसदी

वर्ष 1988 : 9.63 फीसदी

वर्ष 1989 : 5.95 फीसदी

वर्ष 1990 : 5.53 फीसदी 
1947 से लेकर 1990 तक आर्थिक विकास का औसत 4.2 था इसी समाजवादी व्यवस्था कारण 1990 में भारत की अर्थव्यवस्था हालत इतनी खराब हो गई भारत 1990 में अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था क्योंकि भारत के पास 10 दिन आयत खर्च उठाने के पैसे नहीं थे इतनी खराब स्थिति विश्व बैंक ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं देश दिवालिया होने स्थिति पहुंच गया है जैसे वर्तमान में श्री लंका के हालत है फिर 1991 में मजबूरी में पी वी नरसिम्हा राव की सरकार ने बड़े आर्थिक सुधारों लागू किया भारत में उदारीकरण की शुरुआत हुई भारत की अर्थव्यवस्था प्रतिस्पर्धा बढी भारत बड़ी मल्टी नेशनल कम्पनियो आगमन हुआ लोगों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ने लगी फिर भी भारत जितना उदारीकरण लाभ मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला क्योंकि भारत से पहले चीन में 1979 में उदारीकरण की शुरुआत हुई है 1985 में चीन की अर्थव्यवस्था भारत के बराबर थी 36 साल में चीन 18 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बन गया है और भारत 75 साल में 3 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बन पाया फिर उदारीकरण के बाद भारत अर्थव्यवस्था तेजी बढ़ी ये तेजी और रहती जो कांग्रेस की 2004 से 2014 सरकार न आती क्योंकि उस सरकार ने फिर से उसी नेहरुवादी व्यवस्था पर चलने प्रयास किया है फिर भी मैं 1991 से 2022 तक आर्थिक ग्रोथ आकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूं जिसमें समाजवादी व्यवस्था और उदारीकरण बाद अर्थव्यवस्था में बदलाव फर्क समझ आएगा 
 वर्ष 1991 : 1.06 फीसदी

वर्ष 1992 : 5.48 फीसदी

वर्ष 1993 : 4.75 फीसदी

वर्ष 1994 : 6.66 फीसदी

वर्ष 1995 : 7.57 फीसदी

वर्ष 1996 : 7.55 फीसदी

वर्ष 1997 : 4.05 फीसदी

वर्ष 1998 : 6.18 फीसदी

वर्ष 1999 : 8.85 फीसदी

वर्ष 2000 : 3.84 फीसदी

वर्ष 2001 : 4.82 फीसदी

वर्ष 2002 : 3.80 फीसदी

वर्ष 2003 : 7.86 फीसदी

वर्ष 2004 : 7.92 फीसदी

वर्ष 2005 : 7.92 फीसदी

वर्ष 2006 : 8.06 फीसदी

वर्ष 2007 : 7.66 फीसदी

वर्ष 2008 : 3.09 फीसदी

वर्ष 2009 : 7.86 फीसदी

वर्ष 2010 : 8.50 फीसदी

वर्ष 2011 : 5.24 फीसदी

वर्ष 2012 : 5.46 फीसदी

वर्ष 2013 : 6.39 फीसदी

वर्ष 2014 : 7.41 फीसदी

वर्ष 2015 : 8.00 फीसदी

वर्ष 2016 : 8.26 फीसदी

वर्ष 2017 : 7.04 फीसदी

वर्ष 2018 : 6.12 फीसदी

वर्ष 2019 : 5.02 फीसदी 
वर्ष 2020 -7.3 फीसदी थी
वर्ष 2021 8.9 फीसदी थी 
उदारीकरण के बाद भारत की आर्थिक विकास दर औसत 6.2 है 
आर्थिक सुधार की दिशा में १९९१ से अब तक उठाये गये कुछ प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

(१) औद्योगिक लाइसेंस प्रथा की समाप्ति,
(२) आयात शुल्क में कमी लाना तथा मात्रात्‍म तरीकों को चरणबद्ध तरीके से हटाना,
(३) बाजार की शक्तियों द्वारा विनिमय दर का निर्धारण (सरकार द्वारा नहीं),
(४) वित्तीय क्षेत्र में सुधार,
(५) पूँजी बाजार का उदारीकरण,
(६) सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रवेश,
(७) निजीकरण,
(८) उत्पाद शुल्क में कमी,
(९) आयकर तथा निगम कर में कमी,
(१०) सेवा कर की शुरूआत,
(११) शहरी सुधार,
(१२) सरकार में कर्मचारियों की संख्या कम करना,
(१३) पेंशन क्षेत्र में सुधार,
(१४) मूल्य संवर्धित कर (वैट) आरम्भ करना,
(१५) रियारतों (सबसिडी) में कमी,
(१६) राजकोषीय‍ उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्धन (FRBM) अधिनियम २००३ को पारित कराना। 
उदारीकरण जो नरसिम्हा राव की सरकार न करती भारत की अर्थव्यवस्था तबाह बर्बाद हो चुकी होती जैसे सोवियत संघ विखंडन हुआ था वैसे भारत का भी विखंडन होता है

समाजवादी व्यवस्था का हमारे समाज के मन मस्तिष्क में क्या प्रभाव पड़ा इसके दुष्परिणाम क्या हुए 


भारतीय अर्थव्यवस्था समाजवादी बनाने के लिए भारत के लोग मन मस्तिष्क में समाजवाद घुसाने के लिए सरकारी नौकरी पर निर्भरता बढ़ाई गई है उसके लिए निजी क्षेत्र पी पी कर गाली दी गई निजी क्षेत्र और निजी कंपनियों को चोर घोषित कर दिया गया शासन को पूंजीपतियों के शोषण से न्याय दिलाने वाला बताया गया है इसके लिए फिल्मो का सहारा लिया गया 60 के दशक से लेकर 80 दशक जीतनी फिल्म आती थी उन  सभी फिल्मों में साहूकार चोर बताया जाता था और गरीब मजदूर किसानों पर  शोषण करने वाला बताया जाता है इस विषय पर वामपंथियों कई उपन्यास भी लिखे धीरे धीरे लोगों मन मस्तिष्क साहूकार चोर होता यह बात बैठा दी गई सरकारी नौकरी प्रतिष्ठा प्राप्त करने का साधन हो गई जिसका लड़का सरकारी नौकरी हो जाता है उसे दहेज मिलता था इस तरह की मानसिकता समाज बना दी गई सरकारी नौकरी करने वाला व्यक्ति अपने को सरकारी दामाद मानने लगा और चाहे जनता जितना भी शोषण करे उसका कुछ नहीं हो सकता है हर व्यक्ति सरकारी अधिकारी बनने का स्वप्न देखने लगा  सरकारी नौकरी पाने के लिए कठोर परिश्रम करने लगा क्योंकि उसे समाज रौब मिलता था और उसे उपरी कमाई भी मिलती थी धीरे धीरे समाज का नैतिक पतन होता गया है जैसे उदारीकरण हुआ सरकारी नौकरी अवसर कम होने लगे तो समाजवादी मानसिकता पीड़ित लोगोंं ने  बेरोजगारी हंगामा शुरू कर दिया है क्योंकि ये लोग  सरकारी नौकरी ही रोजगार का साधन हो मानने लग गए थे ।  सरकारी नौकरी के सबकुछ मानने के लिए  मानसिकता बनाई गई जिसके कारण युवाओं स्कील्ड डेवलपमेंट नहीं हो पाया है युवा उन डिग्रियों ओर बढ़े जिससे सरकारी बाबू बन सके लोग स्कील्ड डेवलपमेंट कोर्स पर कोई ध्यान नहीं दिया हमारी सरकारें वोटबैंक के लिए इन लोगों के लिए कुछ सरकारी वैकेंसी निकाल देती थी लोग पैसे देकर जमीन बेचकर नौकरी प्राप्त करने लग गए लालू यादव और ओमप्रकाश चौटाला समाजवादी नेताओं लाखों युवाओं पैसे लेकर नौकरी दी लोग सहज पैसे देने तैयार थे समाजवादी मानसिकता कारण सरकारी नौकरी प्रतिष्ठा प्राप्त करने और उपरी कमाई मध्यम हो गई जब फिर भी जब पानी सर निकालने लगा तो हमारी सरकारों पेंशन देना मुश्किल होने लगा क्योंकि अर्थव्यवस्था साइज बढ़ने लग गई है अब सरकारो  को विश्व बैंक  वित्तीय अनुशासन आना पड़ गया है वित्तीय घाटा कम करने नौबत आ गई फिर अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने  पेंशन सुधारो ओर अहम कदम बढ़ाया 2004 में NPS लागू कर दी क्योंकि non productive work force को पेंशन देना किसी सरकार  केे लिए असंभव होता गया NPS की व्यवस्था सभी राज्यों सरकारो लागू कर दिया फिर भी समाजवादी मानसिकता पीड़ित लोगों OPS लागू करने मांग शुरू कर दी है उसे समाजवादी वामपंथियों ने फिर से हाथो हाथ ले लिया है क्योंकि समाजवादियों एकमात्र लक्ष्य भारत अर्थव्यवस्था किस प्रकार तबाह बर्बाद किया जाए जिससे भारत टुकड़े करने आसानी हो जाए । 


बहुत लोग यह कहते हैं समाजवादी आर्थिक नीति बहुत अच्छी है इससे समाजिक समानता स्थापित की जा सकती हैं। मुझे ये लोग कभी क्यो नही बताते जब से समाजवादी आर्थिक सिद्धांत अस्तित्व में आया है तब से आज तक दुनिया के 100 उपर देश दिवालिया हो चुके दुनिया कोई समाजवादी कम्युनिटी देश दुनिया के टॉप 50 में भी नहीं है । इस बात कई लोग सहमत नहीं होंगे कहेंगे चीन कम्युनिस्ट समाजवादी देश  है वह लोग यह भूल जाते हैं चीन नाम मात्र का कम्युनिस्ट साम्यवादी देश है चीन की पूरी तरह आर्थिक नीति पूंजीवादी है अब सोच लिजिए जब कम्युनिस्ट चीन में साम्यवादी आर्थिक नीतियां लागू नहीं है फिर भारत में एक परिवार ने सत्ता के लिए देश में जहरीली समाजवादी आर्थिक नीतियों आम लोगों नशो तक पहुंचाने का प्रयास क्यों किया गया ?  जिसका परिणाम आज भी भारतीय समाज भोग रहा है क्योंकि समाजवादी आर्थिक नीतियां उद्यमशीलता की विरोधी है जिसका परिणाम स्वरूप गरीबी बेरोजगारी भुखमरी जैसी समास्याएं उत्पन्न होती समानता स्थापित करने के नाम संसाधनों अत्यधिक दोहन किया जाता है जिसके कारण   कुछ वर्षों में देश दिवालिया हो जाते हैं। इसलिए हम लोग को समाजवादी मानसिकता मुक्त होने का प्रयास करना है । 



दीपक कुमार द्विवेदी 
भारत माता की जय 
dwivedideepak9479@gmail.com
संपर्क सूत्र 7974814641

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