खालिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले किसी भी सिक्ख का केंद्रिय बलों द्वारा जान से मारने की एक भी घटना ख़ालिस्तान के लिए ही फ़ायदेमंद साबित होगी।

खालिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले किसी भी सिक्ख का केंद्रिय बलों द्वारा जान से मारने की एक भी घटना ख़ालिस्तान के लिए ही फ़ायदेमंद साबित होगी।


किसान आंदोलन के समय खालिस्तानियों ने सिक्ख समाज में अपने प्रति सहानुभूति पैदा की और प्रयास किया कि केंद्र सरकार किसी तरह उनके आंदोलन से परेशान होकर ऐसी कार्यवायी करे जिससे वह केंद्र सरकार को हिंदू सरकार घोषित कर उसे सिक्खों के ख़िलाफ़ घोषित कर सके, पर नरेंद्र मोदी ने ऐसा नहीं किया। थक हारकर इन लोगों ने अति करने की दृष्टि से लालक़िले के ऊपर हमला बोला और पुलिस वालों को खाई में धकेलना शुरू किया पर इन्हें वह 25-30 लाशें नहीं मिलीं जो इनके आंदोलन को बल देने के लिए चाहिए था। फिर इन लोगों ने एक दलित सिक्ख की ज़िंदा हाथ पाँव काटकर हत्या कर डाली, लंगर खिलाने के लिए प्रसिद्ध मत के लोगों ने उस दलित को पानी के लिए तराशते हुए ज़िंदा काट कर मार डाला। पर सरकार ने तब भी इन्हें वह लाशें नहीं दीं। अंत में इन्होंने गुरुद्वारों में हिंदुओं को मारना शुरू किया। एक रोटी के चोरी के आरोप में अपने दान का बखान करने वालों के एक समूह ने अंकित नामक एक मानसिक विक्षिप्त बालक की हत्या कर डाली पर सरकार ने तब भी इनको वह तीस सिक्ख लाशें नहीं दीं। उसके बाद वहीं नंगा नाच जारी रहा और जगह जगह मंदिरों पर हमला किया, एक हिंदू नेता की हत्या की, पुलिस पर हमले किया, सरकारी संपत्ति नष्ट की लेकिन फिर भी लाशें नहीं मिली। इनका नया बाप उभरकर एक टैक्सी ड्राइवर आया। वह भी आज ग़ायब हो गया पर महत्व की बात यह है कि एक भी लाश नहीं मिली। 

ख़ालिस्तान आंदोलन की सारी नींव इस पर टिकी है कि हिंदू अलग हैं और सिक्ख अलग। दिल्ली की सरकार हिंदू सरकार है और वह पंजाब के सिक्खों को अपने से अलग मानती है और उन्हें सताती है। उन्हें वह सताने का नैरेटिव चलाना है तो समाज में सबूत देना पड़ेगा कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है और यह रहा उसका अन्याय का सबूत। बड़े मुश्किल से इन्होंने किसान आंदोलन को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सहयोग से सिक्ख विरोधी मुद्दा बना दिया। एक आर्थिक मुद्दा जल्द ही धार्मिक मुद्दा बन गया और जातिवादी बेशर्म नेताओं और पार्टियो ने भी देश की क़ीमत पर इसको समर्थन दे दिया। मोदी जी ने यह भाप लिया और गुरुपर्व पर ही कृषि क़ानून वापस ले लिया। आगे दोनों गुरुपुत्रों के जन्म दिवस को सरकारी कलेण्डर में डाल दिया। ख़ालिस्तानियों ने मोदी को भड़काने के जितने प्रयास किए सब के सब असफल। आप कितने दिन यह झूठा राग गायेंगे कि मोदी और शाह सिक्खों को समाप्त करना चाहते हैं। 

सिक्ख कोई इस्लामिक समाज नहीं है। वह हिंदू धर्म के भीतर का एक मत है जैसे वैदिक परंपरा, श्रमण परम्परा, आजीवक परम्परा, वैसे ही सिक्ख परम्परा। इस समाज को मृत्यु के बाद जन्नत और हूरें नहीं मिलने वाली, अतः यह समाज लगातार बेवजह कॉन्फ़्लिक्ट में नहीं रह सकता। यह प्रसन्न रहने वाला, उत्सवधर्मी समाज है। जब ख़ालिस्तानी झूठा डर फैलाते फैलाते थक जाएँगे तो आज नहीं तो कल यह समाज बाक़ी समाज के साथ पूरी तरह फिर से मिल जाएगा। 

केंद्र सरकार का अब तक कदम इतना संयमित है कि ख़ुद ख़ालिस्तान को फ़ंडिंग करने वाले परेशान हैं। आप कल्पना करिए कि किसान आंदोलन के समय सरकार के ख़िलाफ़ भड़काने के लिए विदेश से कितना धन भेजा गया होगा, पर परिणाम शून्य रहा। सरकार द्वारा प्रतिक्रिया के बाद उधर से जो प्रतिक्रिया आती उसके शिकार स्थानीय हिंदू होते पर अब तक सरकार ने जो संयम दिखाया है उस कारण स्थिति पूरी तरह नियंत्रित है। 

इंदिरा गांधी को अपने सेलेबस का आख़िरी अध्याय मानने वाले अभी तक मोदी और शाह को समझ नहीं पाए हैं और ऐसी दूर दूर तक कोई आशा नहीं है की इनको आगे भी समझ आये। दीप संधू दुर्घटना में मारा गया, सिद्धू मूसेवाला गैंगवार में निबट गया। अमृतपाल भी दुर्घटना का शिकार हो सकता है। वैसे पाकिस्तान में भारत के प्रमुख दुश्मनों में शामिल कई आतंकवादी पिछले महीने दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं। 

ख़ालिस्तानी चाहते हैं कि कुछ ऐसी लाशें मिलें जिसका ज़िम्मेदार केंद्र हो, उन्हें समय समय पर लाशें मिल तो रहीं हैं पर उनमें कहीं दूर दूर तक केंद्र मिल नहीं रहा। मोदी ऐसे ही अजीत, अबूझ और अभय नहीं हैं।

साभार 

लोकसंस्कृति विज्ञानी 
डॉ भूपेंद्र सिंह जी 

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