महोबा_के_भक्त_आल्हा आल्हा कि ध्वजा नही आई हो माँ"

महोबा_के_भक्त_आल्हा 

"आल्हा कि ध्वजा नही आई हो माँ" मैहर में विराजी माता शारदा की स्तुति में यहाँ के भगत पीढ़ियों से यह गाते आ रहे हैं । भगत माता से कहते हैं ,माता तीनों लोक से ध्वजा आई है पर #महोबा वाले आल्हा की ध्वजा अब तक नही आई है। महोबा वाला आल्हा रास्ते मे होगा , महोबा यहाँ से ज्यादा दूर भी नही है , ध्वज को लेकर कभी भी आल्हा आपके दर्शन के लिए पहुँच सकता है। भगतों के इस गीत को बाद में कई गायकों ने भिन्न भिन्न रूप से गाया है

माता के भक्त आल्हा से संबंधित इस जीवंत घटना को भक्तों ने गीत के रूप में पिरो दिया है। महोबा वाले आल्हा व ऊदल माता शारदा के भक्त थें । विशेषतः आल्हा । मैहर के त्रिकुट पर्वत में विराजी माता शारदा के दर्शन के लिए आल्हा #महोबा से मैहर आते थें और जब भी आते तो अपने साथ माता के लिए ध्वजा भी लाते थें। माता शारदा के पुजारी ब्राह्मण जिनमें माता की विशेष कृपा थी और जिनका कार्य ही यह था कि भक्त #आल्हा का निवेदन माता से बताना । पुजारी कहते थें कि " माता तीनों लोकों से आपके लिए ध्वजा आई है पर आल्हा की ध्वजा अब तक नही आई है , महोबा यहाँ से ज्यादा दूर नही है, आल्हा रास्ते मे ही होंगे , ध्वज लेकर कभी भी आल्हा पहुँच सकते हैं । माता शारदा आल्हा व ऊदल के तलवार में विराजति थीं इसी का प्रभाव था कि यह एक को मारते थे तो बाकी के शत्रु भय के मारे मर जाते थें। 

माता शारदा का मंदिर बनने से पहले सभी पुजारी गुफा में रहते थें और माता की मूल प्रतिमा(श्रीविग्रह) भी गुफा के अंदर है। गुफा के अंदर स्वयं श्रीशारदा विराजति हैं । आल्हा को माता गुफा के अंदर ही दर्शन देती थीं। आल्हा तो ऐसे भक्त थें कि माता को प्रसन्न करने के लिये #शीश काट दिए थें । फिर जब माता का प्रेम आल्हा को प्राप्त हुआ तो आल्हा यहीं मंदिर के पास #अखाड़ा बनाकर रहने लगे। आल्हा महोबा से जब आते थें तो नाराज होकर माता के चौखट में बैठते थें, नाराज होने के कारण था कि माता ने अभी तक दर्शन नही दिया । भक्त का भगवान के प्रति नाराज होना भी भक्ति का #श्रृंगार है , नाराज और हताश होकर बैठे आल्हा को जब माता ने अपने चिन्मयस्वरूप का दर्शन दिया तो महोबा के आल्हा , मैहर के आल्हा हो चुके थें। माता श्रीशारदा के चिन्मय शरीर में आल्हा के प्रति जो प्रेम था , वह प्रेम माता के #स्तन से झरकर गिरता था । आल्हा भक्ति के प्रभाव से माता के नित्यशिशु बन चुके थें । भक्त का नित्यशिशु बनना ऐसी अवस्था है जिसमें माता स्तनपान कराती है और भक्त स्तनपान करता है। माँ का संपूर्ण प्रेम संतान के लिए स्तन से ही तो झरता है।  

वास्तविकता में आल्हा की मृत्यु हुई ही नही है। यह तो माता शारदा के आशीष से दीर्घजीवी हैं , आज भी मंदिर में प्रथम पूजा आल्हा ही करते हैं , पर यह सामान्य लोगो की दृष्टि में नही आतें। एक बार मंदिर में विग्रह के पास यहाँ के पुजारी और आल्हा में टक्कर हो गई थी। सामने कोई था नही पर ऐसा लगा था जैसे कोई पूजा करके वापस जा रहा हो और उससे टक्कर हो गई। तब से मंदिर के कपाट खुलने का समय भी बदल गया। 

भक्तों के लिए आल्हा आज भी प्रेरणादायक हैं जबकि तथाकथित वैज्ञानिक सोचों के लिए आल्हा का मंदिर में आना सिर्फ एक भ्रम व पाखंड हैं।

श्रीयुत सांकृत्यान 

जयश्रीराम

टिप्पणियाँ

  1. इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज, या प्रमाण यदि उपलब्ध हो तो हमे उसे संरक्षित करने की चेष्ठा करनी चाहिए।

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    1. स्तन से दुग्ध झरना का अर्थ है माता का भक्त(पुत्र) के प्रति वात्सल्य भाव ।

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  2. स्तन पान वाली घटना तो मैंने कभी नहीं सुनी। भक्ति तो जन–जन द्वारा प्रमाणित है। लोकसंस्कृति पर आलेखन अच्छा प्रयास है।

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