अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए समाज और सरकार को मिलकर क्या करना चाहिए इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे ।

 

 भारतवर्ष (आर्यव्रत) संसार का प्राचीन देश है। यह देश ऋषियों, मुनियों, गुरुओं का देश माना जाता है। यही पहला देश है जहां मावन ने पहली बार जन्म लिया था। यही वह देश है जो विश्वगुरु कहलाया। अखंड भारत समय-समय पर खंडित होता चला गया। पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, श्रीलंका, म्यांमार, अफगानिस्तान, ईरान, तजाकिस्तान, बर्मा, इंडोनेशिया, ब्लूचिस्तान भारत के अभिन्न अंग रहे हैं। यहां तक कि मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, दक्षिणी वियतनाम, कंबोडिया आदि भी अखंड भारत के अंग रहे हैं।

भारत पर बाहरी आक्रमण 
आज से 2500 साल पहले हमारे देश पर विदेशियों ने आक्रमण किए। इसमें विशेष रूप से फ्रैंच, डच, कुशाण, शक हूण, यवन यूनानी और अंग्रेज आक्रमणकारियों ने भारत को खंडित किया। भारत के 24 विभाजन किए जिनसे भारत के पड़ोसी देश बने।  

अफगानिस्तान (उपगणस्थान) का विभाजन
अफगानिस्तान का विस्तविक नाम उपगणस्थान था। अफगानिस्तान का निर्माण कंधार और कम्बोज के कुछ भागों को मिला कर हुआ था। इस पूरे प्रदेश में हिंदू, शाही और पारसी राजवंशों का शासन रहा। बाद में बौद्ध धर्म का यहां प्रचार हुआ और राजा भी बौद्ध बने। अफगानिस्तान पर अनेक आक्रमण हुए।

अफगानिस्तान पर सिकंदर ने आक्रमण किया। उसके बाद 7वीं शताब्दी में अरब और तुर्क के मुसलमानों ने फिर दिल्ली के मुस्लिम शासकों ने आक्रमण करके अपनी सत्ता बनाई। इसके बाद ब्रिटिश इंडिया का शासन चला। 18 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने अफगानिस्तान को आजाद कर दिया। अफगानिस्तान भारत से अलग हो गया और स्वतंत्रता संग्राम से भी अलग हो गया।

नेपाल का विभाजन
नेपाल देवघर के नाम से जाना जाता है और अखंड भारत का भाग था। माता सीता का जन्म मिथिला नेपाल में हुआ था। भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल की लुबिनी में हुआ था। यहां पर 1560 पूर्व हिंदू आर्य लोगों का शासन रहा। चौथी शताब्दी में गुप्तवश की एक स्टेट में परिवर्तित हो गया। सातवीं शताब्दी में इस पर तिब्बत का अधिपत्य स्थापित हो गया। 11वीं शताब्दी में नेपाल में ठाकुर वंश, फिर मल्ल वंश आया। इसके बाद गोरखाओं का राज आया। जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तो अंग्रेजों ने सन् 1904 में सुगौली नामक स्थान पर राजाओं के नेता से संधि कर ली और नेपाल को आजाद देश घोषित कर दिया। परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से नेपाल अंग्रेजों के अधीन ही रहा। सन् 1923 में ब्रिटेन और नेपाल में फिर संधि हुई और नेपाल पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया।

सन् 1946 के दशक में नेपाल में लोकंतत्र आंदोलन की शुरूआत हुई और सन् 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ। इस तरह नेपाल में राजशाही शासन का अंत हुआ। नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था। वर्तमान में नेपाल में वामपंथी वर्चस्व होने के कारण धर्मनिरपेक्ष देश है।

तिब्बत (त्रिविष्टय) का विभाजन
अखंड भारत में तिब्बत का नाम त्रिविष्टय था। त्रिविष्टिय में रिशिका और तुषाण नामक राज्य हुआ करते थे। तिब्बत में पहले हिंदू धर्म बाद में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हुआ। आगे चल कर तिब्बत बौद्ध धर्म के लोगों का प्रमुख केंद्र बन गया। सन् 1207 में साक्यवंशियों का शासन प्रारंभ हुआ। 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता को बचाए रखा। सन् 1907 में ब्रिटिश इंडिया और चीन में बैठक हुई। तिब्बत को दो भागों में बांट दिया गया। तिब्बत का पूर्वी भाग चीन को और दक्षिणी भाग लामा के पास रहा। सन् 1954 को पंडित नेहरू जी ने तिब्बत को चीन का भाग मानकर बड़ी भूल की थी 

भूटान भारत का अभिन्न अंग था
भूटान भौगोलिक रूप से भारत से जुड़ा हुआ है। भूटान नाम की उत्पत्ति भी संस्कृत में हुई है। भूटान में वैदिक एवं बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग रहते हैं। सन 1906 में स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों ने सिक्किम और भूटान को अपे कब्जे में ले लिया था। इशके तीन साल बाद समझौता हुआ कि ब्रिटिश भूटान के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा लेकिन भूटान की विदेश नीति इंगलैंड द्वारा तय की जाएगी। जब भारत 1947 में आजाद हुआ, उसके दो साल बाद 1949 में भारत ने सारी जमीनें जो अंग्रेजों के पास थीं, भूटान को लौटा दीं और वचन भी दिया भारत केवल भूटान को ररक्षा और सामाजिक सुरक्षा देगा। 
ब्लूचिस्तान का इतिहास तथा विभाजन
ब्लूचिस्तान भारत की सोलाह स्टेटस में से एक था। यह गंधार स्टेट का भाग रहा है। 321 ईसा पूर्व यह चंद्रगुप्त मौर्य को साम्राज्य में शामिल था। इस पर 711 में मोहम्मद बिन कासिम, फिर महमूद गजनवी कब्जा किया। फिर अकबर के काल में मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया। 

अंग्रेजों के काल में अंग्रेजों ने इस पूरे इलाक का कब्जा कर लिया। सन् 1876 ई. में राबर्ठ सैडमेन को यहां का ब्रिटिश एजैंट नियुक्त किया गया। अंग्रेजों ने इस इलाके को 4 रियासतों में बांट दिया। कलात, मकराना, लसबेला और खारन शामिल थे। 20वीं सदी में ब्लूचों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया। सन् 1939 में मुस्लिम लीग का जन्म हुआ। दूसरी तरफ अंजुमन-ए-वतन का जन्म हुआ। खान अब्दुल गफ्फार खान के कारण अंजुमन-ए-वतन कांग्रेस में विलय हो गई।

11 अगस्त 1947 को ब्लूचिस्तान आजाद हो गया था। जिन्ना ने 27 मार्च 1948 को कलात को अपने कब्जे में ले लिया था। पाकिस्तान ने शेष तीनों प्रांतों मकराना, लसबेला तथा खारन को जबरन अपने कब्जे में ले लिया। जिसके लिए आजद भी ब्लूची अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। ब्लूचिस्तान को आजाद कराना चाहते हैं। 
म्यांमार (ब्रह्मदेश) और श्रीलंका का विभाजन
म्यांमार (ब्रह्मदेश) और श्रीलंका वैदिक एवं बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। ये दोनों देश भारत के अभिन्न अंग थे। म्यांमार का क्रमबद्ध इतिहास सन् 1044 ई. में मियन वंश से होता है जो मार्कीपोलो के यात्रा संस्मरण में भी उल्लिख्रित है। सन् 1287 में कुबला खां सन् 1754 ई. अलोंगपाया (अलोंपण) ने इस पर कब्जा किया। अंग्रेजों ने सन् 1926 से 1886 तक सम्पूर्ण ब्रह्मदेश पर अपना अधिकार जमा लिया। अंग्रेजों ने सन् 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। सन् 1965 में श्रीलंका को अलग राज्य घोषित किया। 

खंडित भारत को अखंड कैसे बनाएंगे 

हम इतिहास की गलतियों से सीखते हैं तो भारत को पुनः अखंड बनाया जा सकता है आज के कालखंड धन बल और सामरिक शक्ति के बल पर अखंड बनाना संभव नहीं है क्योंकि सनातन धर्म और भारतवर्ष के शत्रु है जो वो भी बहुत शक्तिशाली हैं उनसे लड़ना हैं तो वैचारिक युद्ध लड़ना पड़ेगा उसके लिए हमें आर्थिक समाजिक वैचारिक राजनैतिक सामरिक दृष्टि बहुत शक्तिशाली होना होगा तभी अखंड भारत स्वप्न साकार हो सकता है 
1 वैचारिक युद्ध   
हमारे शत्रु इतने शक्तिशाली हैं उन्हें कमजोर करना है तो वैचारिक युद्ध में पराजित करना होगा उसके लिए हमारे सनातनी समाज को वैचारिक रूप तैयार होना चाहिए वैचारिक रूप से कैसे तैयार हो सकते है इस पर हमे ध्यान केंद्रित करना होगा वैचारिक युद्ध के लिए तैयार होने के लिए भारत की मूल चेतना सनातन धर्म को समझना पड़ेगा क्योंकि दुनिया में एक ही धर्म बाकी सब मत पंथ संप्रदाय और मजहब है सनातन धर्म दुनिया एकमात्र धर्म जिसे धारण किया जा सकता है और सब व्यक्तिवादी और एक किताब पर आधारित है उनमें विमर्श किया कोई संभावना नहीं है जो उस किताब में लिखा गया है वहीं सही है उनके आलवा दूसरे को इस दुनिया रहने कोई अधिकार नहीं है फिर भी ये लोग सनातन धर्म का मजाक बनाते हैं इन्हें समझना है तो इनके मूल को समझना पड़ेगा दुनिया में जितने अब्राहिमक संप्रदाय सबका मूल इनका कालबोध हैं ये जब शुरू हुए और वर्तमान का समय तक कालखंड करना जो इनका इतिहास भी इन मजहबो के पतन का आधार पर बन सकता है ये लोग मानते मानव सभ्यता 6000 वर्ष पहले शुरू हुई उसके पहले दुनिया में मानव नहीं थे इस तरह तर्क देते ये हुए लोग सनातन संस्कृति को अवैज्ञानिक बताने का प्रयास करते हैं हम इनके झूठ का उजागर वैज्ञानिक आधार पर करने की वजह इन्हीं के बनाए आधार वैदिक सभ्यता को 15 हजार वर्ष की बताने लगते हैं जैसे कोई इन पर दबाव बना रहा हो हमारे उपनिषद् वेदो मानव सभ्यता के शुरुआत के साथ आज तक प्रमाणिक कालगणना मौजूद जिसे हम श्रृष्टि संवत कहते हैं उसके अनुसार श्रृष्टि की आयु 1 96 53 67 124 वर्ष चल रहा है इसके अलावा हमारे शास्त्रों कई वैज्ञानिक शोधों का जिक्र मिलता है उसे हम सिद्ध करके इनके द्वारा फैलाया झूठ प्रंपच मायाजाल ध्वास्त करके इन्हें खेल इन्हें पराजित कर सकते हैं जो इन्हें इन्हीं प्रंपच में इन्ही को पराजित कर पाए तो हमारी पहली बड़ी नैतिक विजय होगी फिर तभी बड़े पैमाने पर घर वापसी संभव हो पाएगी उसके बाद हम मनोवैज्ञानिक रूप से इन पर हावी हो सकते हैं वैचारिक युद्ध का दूसरा चरण नॉरेटिव बिल्डिंग का होगा इस चरण मे दुनिया मे विमर्श तैयार करने की शक्ति अपने पास लेनी होगी वो कार्य कैसे कर सकते हैं इसके लिए हमे एक मजबूत सनातनी तंत्र की आवश्यकता होती बिना इको सिस्टम तैयार किए इन लोगों लड़ना संभव नहीं है इसके लिए थिंक टैंक तैयार करना ज्यादा अच्छा होगा भारत में कम से कम 100 थिंक टैंक की जरूरत है जो भारत देश को आगे ले जाने की नीति पर काम करे और नीति बनाए जैसे समाजिक राजनैतिक आर्थिक ऐतिहासिक विषयों पर काम करे ,जब से भारत विदेशी आक्रमण शुरू हुए तो ये लोग सबसे पहले मंदिरों और गुरूकुल में शिक्षा देने वाले पुरोहितों पर हमले किए और लाखों ब्राह्मणो की हत्या की है फिर भी इस्लामिक आक्रांत भारतीय शिक्षा प्रणाली को नष्ट नहीं कर पाए फिर अंग्रेज आए उन्होंने ऐसे कुचक्र रचे की वैदिक गुरूकुल शिक्षा प्रणाली नष्ट हो जाए वो बहुत हद तक सफल हो गए क्योंकि उन्होंने कानून बनाकर वैदिक गुरूकुल प्रणाली को नष्ट करने में सफलता प्राप्त किया फिर आर्य समाज समेत कई संगठनों ने वैदिक शिक्षा प्रणाली नष्ट करने कोशिश खिलाफ दीवार रूप खड़े हो गए और उनकी कोशिशों को विफल करते रहे हैं फिर स्वतंत्रता के बाद मैकाले पुत्रों ने एक सिस्टम तहत वैदिक शिक्षा प्रणाली को नष्ट किया है स्वतंत्रता के बाद सरकार वैदिक शिक्षा प्रणाली बढ़ावा देना चाहिए उसके वजह संविधान में प्रावधान आर्टिकल 30 ए लगाकर वैदिक शिक्षा संस्थानों को सरकार द्वारा आर्थिक सहयोग न मिले इसके लिए आर्टिकल 30 ए लागू कर दिया उसके बाद मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में ले लिया जिसके कारण निजी क्षेत्र अपने वैदिक शिक्षा संस्थान न खोल पाए एक सिस्टम के तहत वैदिक शिक्षा प्रणाली तबाह और बर्बाद कर दिया गया और हिंदू समाज मंदिरों में जो चढ़ावा चढ़ाता है उस पैसे का प्रयोग हिंदू समाज के हित में नहीं होता है उसे अपने शिक्षण संस्थान और धर्म प्रचार कार्य हिंदू नहीं कर सकता है इसलिए अब वक्त आ गया है मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए और जो अभी 4 अगस्त को भारतीय शिक्षा बोर्ड गठन किया उसे मजबूत बनाने कार्य समाज को करना चाहिए उसके बाद भारत का इतिहास गलत लिखवाया गया इस्लामिक आक्रांताओ को महान बताया गया महान सनातन संस्कृति और सभ्यता को काल्पनिक और मनगढ़ंत बताया गया है जिससे आने वाली युवा पीढ़ी के मन में हीन भावना से ग्रस्त हो जाए वो सफल हो गए अब वक्त उसी झूठ को सही किया जाए इतिहास के पुनः लेखन की प्रक्रिया पुनः शुरू किया जाए भारत के प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित किए जाए और मंदिरों को सरकारी नियंत्रण मुक्त किए जिससे मंदिर अपने शिक्षण संस्थान खोल सके जिससे वैदिक शिक्षा प्रणाली पुनः शुरू हो सके और जो मंदिर सरकार नियंत्रण से मुक्त रहेंगे तो सनातन धर्म प्रचार के काम कर पाएंगे क्योंकि वर्तमान में मंदिरों का पैसा धर्म के कार्य में नहीं लगता उसके वजह वो अल्पसंख्यक कल्याण चला जाता है जिससे कारण सनातन धर्म को हो रही है क्योंकि धन अभाव में सनातनी विचारक सनातन धर्म के लिए कार्य नहीं कर पाते हैं जिसके कारण शत्रु  सनातन विरोधी विमर्श  बनाने सफल हो जाते है उनके बनाये गए विमर्श को तोड़ने के लिए एक मजबूत इको सिस्टम होना चाहिए क्योंकि बिना इको सिस्टम धर्म कार्य कर पाना संभव नहीं है इको सिस्टम के निर्माण के लिए हिंदू समाज को आगे आना चाहिए नहीं तो समास्या गंभीर होती जाएगी क्योंकि इको सिस्टम को सरकार नहीं बना सकती है समाज ही बना सकता है हिंदू समाज में अपने धर्म और संस्कृति और सभ्यता के समाज में चेतना जागृत होना अतिआवश्यक है बिना चेतना के समाज के रूप हम कुछ नहीं कर सकते हैं इसके लिए शत्रु बोध जागृति होना अतिआवश्यक है इसलिए राष्ट्र निर्माण और सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिए हमे संगठित और शक्तिशाली बनना होगा और अपने संकल्प सिद्ध करने का प्रयास करते रहना होगा एक दिन विजय जरूर प्राप्त होगी सत्यमेव जयते 

आर्थिक आत्मनिर्भरता के बिना अखंड भारत का स्वप्न साकार नहीं क्यो नही हो सकता ?

 प्राचीन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में दुनिया सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होती थी उस समय भारत का योगदान दुनिया की जीडीपी में भारत 50% हुआ करता था । उस काल भारत को  सोने की चिड़िया कहा जाता था भारत का विश्व व्यापार में योगदान 50% ज्यादा हुआ करता था उसके बाद चीन योगदान 30 % हुआ करता था अन्य का 20% हुआ करता था , उसके बाद कालचक्र की गति ने ऐसी घुमी जो समाज इतना उन्नत हुआ करता था ऐसा क्या हुआ कि वो समाज पतन ओर चल पड़ा है हिंदू समाज के पतन के प्रमुख कारण राजनैतिक सामाजिक संस्कृतिक कारण थे क्योंकि जब विदेशी आक्रांता भारत में नहीं आए थे उस वक्त भारत की जीडीपी योगदान 50% था जो इस्लामिक आक्रताओ के आने बाद घटकर 23% हो गया जब अंग्रेज आए उसके बाद जब भारत को स्वतंत्रता मिली उस वक्त भारत का योगदान दुनिया की जीडीपी मात्र 3% रह गया एक शोध पता चला अंग्रेज भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटकर ब्रिटेन ले गए अब सोच लिजिए भारत को किस तरह विदेशी आक्रांताओं ने लुटा है आज भी हम अपने शत्रुओं का गुणगान कर रहे हैं वो विकसित हम आज पिछड़े इस विषय पर समाज के रूप आत्म चिंतन करने की प्रयास नहीं किया ऐसा क्या हुआ कि कभी हमारा दुनिया की जीडीपी का 50% हिस्सा हुआ करता था आज हम 2% कैसे हो गए ।  दुनिया एक नियम काम करता है जिसके पास अर्थ होता है दुनिया पर राज करता है । जिसके पास अर्थ नहीं होता उसकी की कोई क़ीमत नहीं होती उस देश पास संसाधन भी रहे फिर  संसाधन होने के बावजूद अर्थ न होने कारण उस संसाधन का वह देश प्रयोग करने के लिए तकनीक भी उस देश के पास नहीं होती है । उदाहरण के लिए वेनुजाएला एक देश जो कभी बहुत समृद्ध हुआ करता था फिर उसे देश जनता को समाजवादी वामपंथियों पार्टियों ने कहा हम आपको घर बैठे खिलाएंगे हमें वोट दिजिए कुछ वर्षों बाद वेनुजाएला दिवालिया हो गया है वेनुजाएला भीख मांगने लगा ऐसा ही भारतीय समाज के साथ के नेहरू गांधी परिवार ने किया उन्होंने जबरदस्ती समाजवादी व्यवस्था को भारत के उपर थोप दी जिसके कारण भारत को जिस तेजी से विकास करना चाहिए वो नहीं कर पाया उसके बाद 1991 पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उदारीकरण की शुरुआत की उसके बाद भारत 30 साल में दुनिया 5 वी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है हमने आर्थिक तेजी लागू करते जो सुधार 1991 में लागू हुए थे वो सुधार 1969 आसपास लागू होते हम आज बहुत अच्छी स्थिति में होते हमे 75 साल लग गए 3.18 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में इस गति चलते रहेंगे तो अगले 70 साल बाद हम 6 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन पाएंगे हमें अर्थव्यवस्था की बढ़ने की गति को अगले 15 से 20 साल में 6 गुना करना होगा क्योंकि हम 75 वर्ष मे 3 .18 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बने हैं जो गति बढ़ा पाए तो 2040 तक भारत की जीडीपी का साइज़ 16 ट्रिलियन डॉलर की हो जाना चाहिए ये कार्य बहुत कठिन है अंसभव नहीं क्योंकि चीन 1985 तक भारत के बराबर था इसलिए जब चीन 35 वर्ष अपनी अर्थव्यवस्था का साइज 8 गुना कर सकता है भारत के पास संभावनाएं बहुत ज्यादा है क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत के पास सस्ते श्रमिक हैं जिस ऊर्जा का उपयोग भारत कर सकता है जब चीन 35 साल में अपनी अर्थव्यवस्था साइज 8 गुना कर सकता है हमारे पास बहुत कुछ है हम कार्य 15 में वर्ष में ही कर सकते हैं इसके लिए समाज सरकारो में दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए क्योंकि इसके लिए बड़े आर्थिक सुधारों को लागू करना पड़ेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नीतियों लागू करना होगा और स्किल्ड मैनपॉवर तैयार करना पड़ेगा युवाओं तकनीकी शिक्षा दिलाने का प्रयास करना चाहिए उसके साथ अनुसंधान और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और डेटा सांइस और स्किल्ड मैनपॉवर तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी आज के समय भारत के लोग पास जानकारी नहीं है जिस क्षेत्र उन्हें लाभ मिल सकता किस क्षेत्र में उन्हें हानि होगी उदाहरण के लिए किसान जब आलू बोता सभी किसान बोने लगते जिससे पैदावार अधिक होती है अर्थव्यवस्था मांगा और आपूर्ति सिद्धान्त पर काम करती जब आलू पैदावार अधिक होती है तो आलू कीमत कम हो जाती इसके कारण किसान नुकसान उठाना पड़ता इससे समझ न आए एक उदाहरण देना चाहता है आज समय युवा जब इंटर पास करते हैं वो प्रतियोगी परीक्षा तैयारी करने लगते हैं और बीए और बीएससी बीकॉम जैसे कोर्स करते हैं उन कोर्सो मार्केट में कोई वेल्यू नहीं होती है क्योंकि प्रतिस्पर्धा ज्यादा है सीट काम है और कोई सरकार सबको सरकारी नहीं दे सकतीं हैं नौकरी देने के लिए 
कुछ नियम और  शर्तें है सरकार कुल जनसंख्या 1% ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती है भारत की वर्तमान जनसंख्या 141 करोड़ उसका 1% सिर्फ  3 करोड़ होता है । वर्तमान भारत में 29राज्य 7 केंद्र शासित प्रदेश उसमें   केंद्र और राज्य सरकार को  मिला दें फिर  भी वर्तमान में 3 करोड़ कर्मचारी काम कर रहे हैं वर्तमान में 29 लाख पोस्ट खाली होने की बात कही जाती है यह भी प्रमाणित डेटा नहीं है है   अब सोच लिजिए 138 करोड़ लोगों  को सरकारी नौकरी देना असंभव है जब सबको सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती हैं फिर हमारे देश को लोग और राजनैतिक पार्टिया सबको सरकारी देने की बात करती है । इतनी बड़ी जनसंख्या को सरकारी नौकरी देने के लिए संसाधन कहा से आएगा जब भारत निजी निवेश नहीं आएगा  भारत समेत दुनिया भर में बिना निजी निवेश के बेरोजगारी की समास्या समाधान नहीं हो सकती वर्तमान समय में भारत में सबसे ज्यादा नौकरी निजी क्षेत्र और सेवा क्षेत्र और ट्रांसपोर्ट क्षेत्र देता है भारत में वर्तमान 50 करोड़ लोग नौकरी करते हैं जो मैन पावर स्किल्ड हो जाए दुनिया भर  की बड़ी कंपनीया भारत निवेश करेगी और भारत में नई टेक्नोलॉजी भी लाएगी जिससे भारत दुनिया का विनिर्माण क्षेत्र का हब के रूप उभर सकता जैसे विनिर्माण क्षेत्र में ग्रोथ होंगी भारत निर्यात बढ़ेगा भारत में विदेशी मुद्रा आएगी बेरोजगारी भी कम होगी भारत के लोगों प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी यह तभी संभव हो पाएगा सनातनी  आर्थिक व्यवस्था को को अपनाएंगे और अर्थव्यवस्था का विकेंद्रीकरण करेंगे उ उद्यमशीलता बढ़ावा  देंगे  अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए आम लोगों प्रेरित करेंगे आत्मनिर्भर ग्रामो को बनाने का प्रयास करेंगे लघु और  कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिले उसके लिए नीति बनाएंगे  आज तो टेक्नोलॉजी का युग इसलिए इस कार्य के लिए  डेटा साइंस और AI का  प्रयोग हमारी सरकारें कर सकती हैं । फ़ड की कमी हो तो  PPP model के तहत काम करना चाहिए  क्योंकि बिना अनुसंधान और नई टेक्नोलॉजी के डेवलपमेंट में निवेश करे बिना कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता मै  सरकार को  एक सुझाव देना चाहता हूं कि  निजी क्षेत्र के साथ PPP model के तहत अपनी जीडीपी 6% अनुसंधान और नई टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट में निवेश करना चाहिए क्योंकि भारत को टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और अनुसंधान क्षेत्र अग्रणी भूमिका निभाने वाले  देश के रूप में तैयार नहीं कर पाए हमारी आने वाली पीढ़ी हमें क्षमा नही करेंगी  हमविश्व का नेतृत्व करना चाहते हैं तो हमें अनुसंधान और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट में पानी तरह पैसा बहाना चाहिए इसलिए अनुसंधान क्षेत्र अग्रणी देशों शुमार हुए बिना भारत कभी विश्व गुरु नहीं बन सकता है ।  हमारी  वर्तमान में शोध और अनुसंधान क्षेत्र में स्थित बहुत अच्छी नहीं क्योंकि यहां पर अनुसंधान के लिए माहौल ही  नहीं है जो शासन स्तर पर प्रयास नगण्य क्योंकि कोई युवा पढ़ाई करता है उसे किसी विषय अनुसंधान करना चहता है तो उसे न सरकार से सहयोग मिलता न निजी क्षेत्र से सहयोग मिलता फिर उसे मजबूरी भारत छोड़ना पड़ता है भारत के पास दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक क्षमता वाली युवा पीढ़ी जितना IQ लेबल भारतीयों का युवाओं उतना किसी देश के लोगों नहीं है  फिर भी अपने बौद्धिक संसाधन प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं जिस  देश प्रतिवर्ष सबसे छात्र IIT IIM एम्स संस्थान पढ़कर निकलते  एवं  साथ में दुनिया श्रेष्ठ गणितज्ञ भारत के होते श्रेष्ठ भौतिकविद भारत के होते हैं जिस देश के पास दुनिया सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक बल युवा पीढ़ी है फिर  वह देश अनुसंधान क्षेत्र बहुत क्यों पीछे हैं ? इस पर हमारे सिस्टम विचार करना चाहिए समाधान निकालना चाहिए  ऐसा चलता रहा तो भारत की स्थिति बहुत खराब होने जा रही क्योंकि ये युग  शोध और अनुसंधान और नई टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट का है उसमें डेटा साइंस की अहम भूमिका है डेटा साइंस का इस्तेमाल करने के बहुत सारे फायदे हैं भारत को आर्थिक महाशक्ति बनना है तो तीन क्षेत्र काम करना होगा अनुसंधान स्कील्ड मैपिंग और स्किल्ड डेवलपमेंट और ये सारे काम बिना डेटा सांइस के नहीं हो सकते हैं उसके साथ समाजवादी मानसिकता से मुक्ति के लिए शासन को एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना चाहिए जिससे लोगों की मानसिकता में बदलाव आए लोगों में स्वरोजगार और स्टार्टअप कल्चर प्रति रूझान बढ़े लोगों मन में देश प्रति योगदान देने की भावना बढ़े सरकार और समाज को निजी क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिए नये अवसर देना चाहिए जिससे निजी क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने में अपना योगदान दे सकें और भारत के विकास में भारतीय समाज की भी भागीदारी बढ़नी चाहिए तभी भारत फिर से सोने की चिड़िया पुनः बन पाएगा !

समारिक शक्ति बने बिना अखंड भारत का संकल्प को पूर्ण कर पाना कठिन क्यों है ? 

हम वैचारिक रूप से आर्थिक रूप से वर्तमान समय मे शक्तिशाली भी हो गए समारिक रुप से कमजोर रहे तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं इसलिए हमें समारिक रूप बहुत मजबूत बनना पड़ेगा इसके लिए रक्षा क्षेत्र बड़े सुधारों की आवश्यकता है रक्षा उपकरणों मे विदेशी निर्भरता हमें अगले 10 वर्षों मे खत्म करनी होगी तभी हम भविष्य के युद्धों के लिए तैयार हो सकते है हमारा रक्षा क्षेत्र मजबूत हुआ हमारी सेनाएं के आधुनिक हथियार रहे तो हम हर कठिन परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहेंगे क्योंकि दुनिया नियम है जो शक्तिशाली होता है उसी की बात दुनिया सुनती है राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी कविता क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, 
विनीत, सरल हो।जैसे जो सर्प दांत से रहित हो,विष से रहित हो, और सरल हो अर्थात पालतू हो, अगर वह किसी व्यक्ति को माफ कर दे अथवा किसी को ना काटे तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है,क्योंकि उसके दांत ही नहीं है उसके पास ज़हर ही नहीं है।

जबकि यदि कोई सर्प दांत वाला हो, जहर वाला हो और वह यदि किसी व्यक्ति विशेष की गुस्ताखी को माफ कर दे तब उसकी माफी को वास्तविक क्षमादान मानना चाहिए क्योंकि उसमें प्रतिकार करने की क्षमता है तब भी वह क्षमा दान कर रहा 
 है इसलिए कहा जाता है आपके पास शक्ति नही है तो आपके बौद्धिक आर्थिक संपन्नता जितनी भी हो आप कुछ नहीं कर सकते है इसलिए जबतक भारत समारिक रूप से महाशक्ति नही बनता है तबतक अखंड भारत का सपना सपना ही रहेगा इसलिए अखंड भारत का सपने को साकार करना है तो समारिक शक्ति बनना ही पड़ेगा और समारिक शक्ति बने उसके साथ आंतरिक सुरक्षा मजबूत बनाने के लिए सरकार समाज को अपनी भूमिका तय करनी होगी नही तो समारिक शक्ति बन गए फिर भी आंतरिक सुरक्षा मजबूत नहीं हुई तो सोवियत संघ तरह भारत विभाजन हो सकता है क्योंकि भारत में एक 14 सौ वर्ष पुरानी जंगली कौम रहती है दूसरे वामपंथी और क्षेत्रीय दल क्षेत्रवाद भाषावाद की भावना भड़कर भारत के प्रति अलगाववाद भावना भरते हैं इसलिए भारत को इन चुनौतियों निपटाने के लिए एक मजबूत आंतरिक सुरक्षा के लिए नीति तैयार करनी चाहिए उसके लिए समाज सैन्य प्रशिक्षण देना पड़े तो देना चाहिए इसलिए जब तक हम समारिक शक्ति नहीं बनेगे तो  हम न आंतरिक  चुनौतियां समना कर पाएंगे न बाहरी शक्तियों लड़ सकते हैं इसलिए हमें  हमे बाह्में सुरक्षा मजबूत करने के साथ आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए बिना शांति और स्थिरता के न  भौतिक विकास संभव  न समाजिक और आर्थिक उत्थान संभव है इसलिए हमें आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो हम आंतरिक सुरक्षा मजबूत कर लिए तो हमें सामरिक महाशक्ति बनने से दुनिया की महाशक्ति नहीं रोक सकती है । 
जिस दिन भारत राजनैतिक समाजिक आर्थिक वैचारिक समारिक महाशक्ति बन जाएगा और आंतरिक सुरक्षा मजबूत कर लिए तो उस दिन भारत फिर से अखंड हो जाएगा । 


अपने  इस लेख का  समापन 1909 में  महर्षि अरबिंदो द्वारा उत्तरपाड़ा  भाषण के साथ कर रहा हूं जिसमें उन्होनें  कहा था राष्ट्र धर्म का अर्थ सनातन धर्म है । 

जेल में विवेकानंद की आध्यात्मिक भूमिका
जब मुझे आपकी सभा की वार्षिक बैठक में आपसे बात करने के लिए कहा गया था, तो मेरा इरादा आज के लिए चुने गए विषय, हिंदू धर्म के विषय के बारे में कुछ शब्द कहने का था। अब मैं नहीं जानता कि मैं उस इरादे को पूरा कर पाऊंगा या नहीं; क्योंकि जब मैं यहां बैठा था, तो मेरे दिमाग में एक शब्द आया कि मुझे आपसे बात करनी है, एक शब्द जो मुझे पूरे भारतीय राष्ट्र से बोलना है। यह जेल में सबसे पहले खुद से बोली गई थी और मैं इसे अपने लोगों को बोलने के लिए जेल से बाहर आया हूं।

पिछले एक साल से अधिक समय हो गया था जब मैं यहां आया था। जब मैं आया तो मैं अकेला नहीं था; राष्ट्रवाद के सबसे ताकतवर पैगम्बरों में से एक बिपिन पाल) मेरे पास बैठे थे। यह वह था जो तब उस एकांत से बाहर आया था जिसमें भगवान ने उसे भेजा था, ताकि उसकी कोठरी के मौन और एकांत में वह उस शब्द को सुन सके जो उसे कहना था। यह वह था कि आप सैकड़ों की संख्या में स्वागत करने आए थे। अब वह बहुत दूर है, हमसे हजारों मील दूर है। जिन अन्य लोगों को मैं अपने साथ काम करते देखने का आदी था, वे अनुपस्थित हैं। देश में आई आंधी ने उन्हें दूर-दूर तक बिखेर दिया है। इस बार मैं ही हूँ जिसने एक साल एकांत में बिताया है, और अब जब मैं बाहर आता हूँ तो मुझे सब कुछ बदला हुआ लगता है। जो हमेशा मेरे पास बैठता था और मेरे काम में शामिल होता था वह बर्मा में एक कैदी है; दूसरा उत्तर में हिरासत में सड़ रहा है। जब मैं बाहर आया तो मैंने चारों ओर देखा, मैंने चारों ओर उन लोगों को देखा जिनके लिए मैं सलाह और प्रेरणा देखने का आदी था। मुझे वे नहीं मिले। इससे कहीं अधिक था। जब मैं जेल गया तो पूरा देश बंदे मातरम् के नारों से जीवित था, एक राष्ट्र की आशा से जीवित था, उन लाखों लोगों की आशा से जो हाल ही में अधोगति से उठे थे। जब मैं जेल से बाहर आया तो मैंने उस चीख को सुना, लेकिन इसके बजाय एक सन्नाटा था। देश में सन्नाटा छा गया था और लोग हतप्रभ लग रहे थे; क्योंकि भविष्य के दर्शन से परिपूर्ण परमेश्वर का उज्ज्वल स्वर्ग जो हमारे सामने था, ऐसा लगता था कि ऊपर एक सीसे का आकाश है जिससे मानव गरज और बिजली की बारिश होती है। किसी भी आदमी को यह नहीं पता था कि किस तरह से आगे बढ़ना है, और हर तरफ से सवाल आया, "हम आगे क्या करें? हम क्या कर सकते हैं?" मुझे भी नहीं पता था कि किस तरफ बढ़ना है, मुझे भी नहीं पता था कि आगे क्या करना है। लेकिन एक बात मैं जानता था, कि चूंकि यह ईश्वर की सर्वशक्तिमान शक्ति थी जिसने उस पुकार को, उस आशा को जगाया था, इसलिए यह वही शक्ति थी जिसने उस मौन को भेजा था। वह जो चीखने-चिल्लाने और चलने-फिरने में था, वह भी ठहराव और खामोशी में था। उसने इसे हम पर भेजा है, ताकि राष्ट्र एक पल के लिए पीछे हटे और खुद को देखे और उसकी इच्छा को जान सके। मैं उस चुप्पी से निराश नहीं हुआ हूं क्योंकि मुझे अपनी जेल में चुप्पी से परिचित कराया गया था और क्योंकि मुझे पता था कि यह ठहराव और मौन में था कि मैंने खुद को अपने कारावास के लंबे वर्ष के माध्यम से यह सबक सीखा था। जब बिपिन चंद्र पाल जेल से बाहर आए तो वे एक संदेश लेकर आए थे, और वह एक प्रेरित संदेश था। मुझे उनका यहां दिया गया भाषण याद है। यह एक ऐसा भाषण था जो इतना राजनीतिक नहीं था जितना कि इसके असर और इरादे में धार्मिक था। उन्होंने जेल में अपने बोध की, हम सब के भीतर ईश्वर की, राष्ट्र के भीतर ईश्वर की, और अपने बाद के भाषणों में भी उन्होंने आंदोलन में सामान्य से बड़ी ताकत और उसके सामने सामान्य से बड़े उद्देश्य की बात की। अब मैं भी तुमसे फिर मिलूंगा, मैं भी जेल से बाहर आऊंगा, और फिर उत्तरपारा के आप ही सबसे पहले मेरा स्वागत करते हैं, राजनीतिक बैठक में नहीं बल्कि हमारे धर्म की रक्षा के लिए समाज की बैठक में। बक्सर जेल में बिपिन चंद्र पाल को जो संदेश मिला, वह भगवान ने मुझे अलीपुर में दिया। वह ज्ञान जो उसने मेरे बारह महीनों के कारावास के दौरान प्रतिदिन मुझे दिया था और यह वही है जो उसने मुझे आज्ञा दी है कि अब मैं बाहर आ गया हूँ, तुमसे बात करूँ।

मुझे पता था कि मैं बाहर आऊंगा। नजरबंदी का वर्ष केवल एक वर्ष के अलगाव और प्रशिक्षण के लिए था। ईश्वर के उद्देश्य के लिए जितना आवश्यक था, उससे अधिक समय तक कोई मुझे जेल में कैसे रख सकता है? उसने मुझे बोलने के लिए एक शब्द और करने के लिए एक काम दिया था, और जब तक वह शब्द नहीं बोला गया था, मैं जानता था कि कोई भी मानव शक्ति मुझे चुप नहीं करा सकती थी, जब तक कि वह काम नहीं किया गया था, कोई भी मानव शक्ति भगवान के यंत्र को रोक नहीं सकती थी, चाहे वह यंत्र कितना ही कमजोर क्यों न हो या हालांकि छोटा। अब जब कि मैं बाहर आ गया हूं, इन चंद मिनटों में भी मुझे एक बात सुझाई गई है, जिसे बोलने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। मेरे मन में जो था, उसने फेंक दिया और मैं जो बोल रहा हूं, वह आवेग और मजबूरी में बोल रहा हूं।

जब मुझे गिरफ्तार किया गया और लाल बाजार हाजत ले जाया गया तो मैं थोड़ी देर के लिए विश्वास में हिल गया, क्योंकि मैं उनके इरादे के दिल में नहीं देख सका। इसलिए मैं एक पल के लिए लड़खड़ाया और अपने दिल में उन्हें पुकारा, "यह मुझे क्या हो गया है? मुझे विश्वास था कि मेरे पास अपने देश के लोगों के लिए काम करने का एक मिशन था और जब तक वह काम नहीं हुआ, मुझे आपकी सुरक्षा। फिर मैं यहां और इस तरह के आरोप में क्यों हूं?" एक दिन बीत गया और दूसरा दिन और तीसरा दिन, जब मेरे भीतर से एक आवाज आई, "रुको और देखो।" फिर मैं शांत हुआ और इंतजार किया, मुझे लाल बाजार से अलीपुर ले जाया गया और एक महीने के लिए पुरुषों से अलग एकांत कोठरी में रखा गया। वहाँ मैंने दिन-रात अपने भीतर ईश्वर की वाणी की प्रतीक्षा की, यह जानने के लिए कि उसे मुझसे क्या कहना है, यह जानने के लिए कि मुझे क्या करना है। इस एकांतवास में मुझे सबसे पहली अनुभूति हुई, पहला सबक मिला। तब मुझे याद आया कि मेरी गिरफ़्तारी से एक महीने या उससे भी पहले, मेरे पास सभी गतिविधियों को अलग करने, एकांत में जाने और अपने आप को देखने के लिए एक कॉल आया था, ताकि मैं उसके साथ घनिष्ठ संवाद में प्रवेश कर सकूँ। मैं कमजोर था और कॉल एक्सेप्ट नहीं कर सकता था। मेरा काम मुझे बहुत प्रिय था और मेरे दिल के गर्व में मैंने सोचा था कि अगर मैं वहां नहीं होता, तो यह पीड़ित होगा या यहां तक ​​कि विफल हो जाएगा और बंद हो जाएगा; इसलिए मैं इसे नहीं छोड़ूंगा। मुझे ऐसा लगा कि उसने फिर मुझ से बातें कीं, और कहा, जिन बन्धनोंको तोड़ने की शक्ति तुझ में न थी, उन्हें मैं ने तेरे लिथे तोड़ डाला है। क्योंकि यह मेरी इच्छा नहीं है और न ही कभी मेरी मंशा थी कि यह जारी रहे। मेरे पास तुम्हारे करने के लिए एक और काम था और वह इसलिए है कि मैं तुम्हें यहां लाया हूं, तुम्हें वह सिखाने के लिए जो तुम अपने लिए नहीं सीख सके और तुम्हें मेरे काम के लिए प्रशिक्षित कर सके। फिर उन्होंने गीता को मेरे हाथों में रख दिया। उनकी ताकत मुझमें प्रवेश किया और मैं गीता की साधना करने में सक्षम हो गया। मुझे न केवल बौद्धिक रूप से समझना था बल्कि यह भी समझना था कि श्री कृष्ण अर्जुन से क्या मांग करते हैं और वे उन लोगों से क्या मांग करते हैं जो उनके काम करने की इच्छा रखते हैं, विकर्षण से मुक्त होने के लिए और इच्छा, फल की मांग के बिना उसके लिए काम करना, आत्म-इच्छा का त्याग करना और उसके हाथों में एक निष्क्रिय और विश्वासयोग्य साधन बनना, उच्च और निम्न, मित्र और प्रतिद्वंद्वी के लिए समान हृदय रखना, सफलता और असफलता, फिर भी अपने कार्य को लापरवाही से नहीं करना। मुझे पता चला कि हिंदू धर्म का क्या मतलब है। हम अक्सर हिंदू धर्म, सनातन धर्म की बात करते हैं, लेकिन हममें से बहुत कम लोग वास्तव में जानते हैं कि वह धर्म क्या है। अन्य धर्म प्रमुख रूप से आस्था और पेशे के धर्म हैं, लेकिन सनातन धर्म ही जीवन है; यह एक ऐसी चीज है जिस पर इतना विश्वास नहीं किया जा सकता जितना कि जिया जाता है। यह वह धर्म है जो प्राचीन काल से इस प्रायद्वीप के एकांत में मानवता के उद्धार के लिए संजोया गया था। इसी धर्म को देने के लिए ही भारत का उत्थान हो रहा है। वह दूसरे देशों की तरह अपने लिए या जब वह मजबूत होती है तो कमजोरों को रौंदने के लिए नहीं उठती। वह दुनिया भर में उसे सौंपे गए शाश्वत प्रकाश को बहाने के लिए उठ रही है।

इसलिए अगली बात उन्होंने मुझे बताई, - उन्होंने मुझे हिंदू धर्म के केंद्रीय सत्य का एहसास कराया। उन्होंने मेरे जेलरों का दिल मेरी ओर मोड़ दिया और उन्होंने जेल के इंचार्ज अंग्रेज से कहा, "वह अपनी कैद में तड़प रहा है, उसे कम से कम सुबह और शाम को आधा घंटा अपनी कोठरी से बाहर घूमने दो।" तो यह व्यवस्थित किया गया था, और यह तब हुआ जब मैं चल रहा था कि उनकी शक्ति फिर से मुझमें प्रवेश कर गई। मैंने उस जेल को देखा जिसने मुझे पुरुषों से अलग कर दिया था और यह अब उसकी ऊंची दीवारों से नहीं था कि मैं कैद था; नहीं, वासुदेव ने मुझे घेर रखा था। मैं अपने सेल के सामने पेड़ की शाखाओं के नीचे चला गया लेकिन वह पेड़ नहीं था, मुझे पता था कि यह वासुदेव है, यह श्रीकृष्ण ही थे जिन्हें मैंने वहाँ खड़े हुए और अपनी छाया मेरे ऊपर लिए हुए देखा। मैंने अपनी कोठरी की सलाखों को देखा, वही झंझरी जो एक दरवाजे के लिए काम करती थी और फिर मैंने वासुदेव को देखा। यह नारायण थे जो मेरी रखवाली कर रहे थे और मेरे ऊपर संतरी खड़े थे। या मैं उन मोटे कम्बलों पर लेट गया जो मुझे एक शय्या के लिए दिए गए थे और मैंने अपने चारों ओर श्रीकृष्ण की भुजाओं, अपने मित्र और प्रेमी की भुजाओं को महसूस किया। उन्होंने मुझे जो गहरी दृष्टि दी, उसका यह पहला प्रयोग था। मैंने जेल के बंदियों, चोरों, हत्यारों, लुटेरों को देखा, और जब मैंने उनकी ओर देखा तो मैंने वासुदेव को देखा, वे नारायण ही थे जिन्हें मैंने इन अंधेरी आत्माओं और दुरूपयोगी शरीरों में पाया। इन चोर-डकैतों में कई ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी हमदर्दी, अपनी मेहरबानी, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों पर मानवता विजयी होती है। मैंने उनमें से एक को विशेष रूप से देखा, जो मुझे एक संत लगता था, मेरे देश का एक किसान जो पढ़ना-लिखना नहीं जानता था, एक कथित डकैत जिसे दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, उनमें से एक जिसे हम अपनी नजर में नीचे देखते हैं छोटालोक के रूप में वर्ग का फरीसिकल गौरव। एक बार फिर उसने मुझसे बात की और कहा, "देखो, वे लोग जिनके बीच मैंने तुम्हें अपना थोड़ा सा काम करने के लिए भेजा है। यह उस राष्ट्र का स्वभाव है जिसे मैं खड़ा कर रहा हूँ और जिस कारण से मैं उन्हें उठा रहा हूँ।" एक कथित डकैत को दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई, उनमें से एक जिसे हम छोटालोक के रूप में वर्ग के अपने फरीसियों के गौरव में देखते हैं। एक बार फिर उसने मुझसे बात की और कहा, "देखो, वे लोग जिनके बीच मैंने तुम्हें अपना थोड़ा सा काम करने के लिए भेजा है। यह उस राष्ट्र का स्वभाव है जिसे मैं खड़ा कर रहा हूँ और जिस कारण से मैं उन्हें उठा रहा हूँ।" एक कथित डकैत को दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई, उनमें से एक जिसे हम छोटालोक के रूप में वर्ग के अपने फरीसियों के गौरव में देखते हैं। एक बार फिर उसने मुझसे बात की और कहा, "देखो, वे लोग जिनके बीच मैंने तुम्हें अपना थोड़ा सा काम करने के लिए भेजा है। यह उस राष्ट्र का स्वभाव है जिसे मैं खड़ा कर रहा हूँ और जिस कारण से मैं उन्हें उठा रहा हूँ।"

जब निचली अदालत में मामला खुला और हमें मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया तो मेरे बाद भी वही अंतर्दृष्टि थी। उसने मुझसे कहा, "जब तुम्हें जेल में डाल दिया गया था, तो क्या तुम्हारा दिल पसीज नहीं गया था और क्या तुमने मुझे पुकारा नहीं था, तुम्हारी सुरक्षा कहाँ है? अब मजिस्ट्रेट को देखो, अब अभियोजन पक्ष के वकील को देखो।" मैंने देखा और यह मजिस्ट्रेट नहीं था जिसे मैंने देखा था, यह वासुदेव थे, यह नारायण थे जो वहां बेंच पर बैठे थे। मैंने अभियोजन पक्ष के वकील को देखा और वह अभियोजन पक्ष का वकील नहीं था जो मैंने देखा; यह श्री कृष्ण थे जो वहाँ बैठे थे, यह मेरे प्रेमी और मित्र थे जो वहाँ बैठे थे और मुस्कुरा रहे थे। "अब तुम डरते हो?" उन्होंने कहा, "मैं सभी मनुष्यों में हूं और मैं उनके कार्यों और उनके शब्दों पर शासन करता हूं। मेरी सुरक्षा अब भी तुम्हारे साथ है और तुम डरोगे नहीं। यह मुक़द्दमा जो तेरे विरुद्ध लाया गया है, इसे मेरे हाथ में छोड़ दे। यह आपके लिए नहीं है। मैं तुम्हें यहाँ मुकदमे के लिए नहीं बल्कि किसी और चीज़ के लिए लाया हूँ। केस मेरे काम का एक जरिया है और कुछ नहीं।" बाद में जब सेशन कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ, तो मैंने अपने वकील के लिए कई निर्देश लिखना शुरू किया कि मेरे खिलाफ सबूतों में क्या झूठ है और गवाह किन बिंदुओं पर हैं। जिरह हो सकती है। फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी। मेरे बचाव के लिए जो व्यवस्था की गई थी, उसे अचानक बदल दिया गया और एक अन्य वकील मेरी रक्षा के लिए वहां खड़ा हो गया। वह अप्रत्याशित रूप से आया, - मेरा एक दोस्त, लेकिन मैं नहीं आया पता है वह आ रहा था। तुम सबने उस आदमी का नाम सुना है जिसने अपने से सारे विचार दूर कर दिए और अपनी सारी साधना को त्याग दिया, जो महीनों तक दिन-रात आधी रात तक जागा और मुझे बचाने के लिए अपने स्वास्थ्य को तोड़ डाला, - श्रीजुत चित्तरंजन दास। जब मैंने उसे देखा, तो मैं संतुष्ट हो गया, लेकिन फिर भी मैंने निर्देश लिखना आवश्यक समझा। तब वह सब मुझसे दूर रखा गया था और मेरे भीतर से संदेश आया था, "यह वह आदमी है जो आपको अपने पैरों के चारों ओर लगाए गए फंदे से बचाएगा। उन कागजों को अलग रख दें। यह आप नहीं हैं जो उसे निर्देश देंगे। मैं निर्देश दूंगा उसका।" उस समय से मैंने मामले के बारे में अपने वकील से एक शब्द भी नहीं बोला या एक भी निर्देश नहीं दिया, और अगर कभी मुझसे कोई सवाल पूछा गया, तो मैंने हमेशा पाया कि मेरे जवाब से मामले में मदद नहीं मिली। मैंने इसे उस पर छोड़ दिया था और उसने इसे पूरी तरह से अपने हाथों में ले लिया, जिसका परिणाम आप जानते हैं। मैं हमेशा से जानता था कि वह मेरे लिए क्या मायने रखता है, क्योंकि मैंने इसे बार-बार सुना, हमेशा मैंने अपने भीतर की आवाज सुनी; "मैं मार्गदर्शन कर रहा हूं, इसलिए डरो मत। अपने काम की ओर मुड़ो, जिसके लिए मैं तुम्हें जेल लाया हूं और जब तुम बाहर आओ, तो याद रखना कि कभी डरना नहीं, कभी संकोच नहीं करना। याद रखना कि यह मैं कर रहा हूं, तुम नहीं और न ही मैं।" कोई भी अन्य। इसलिए जो भी बादल आ सकते हैं, जो भी खतरे और कष्ट, जो भी कठिनाइयां, जो भी असंभवताएं हैं, कुछ भी असंभव नहीं है, कुछ भी मुश्किल नहीं है। मैं राष्ट्र और उसके उत्थान में हूं और मैं वासुदेव हूं, मैं नारायण हूं, और मैं जो चाहता हूं, होगा, न कि दूसरे क्या करेंगे।

अलीपुर सेल जेपीजी 18K
इस बीच उसने मुझे एकांत से बाहर निकाला था और मुझे उन लोगों के बीच रखा था जिन पर मेरे साथ आरोप लगाया गया था। आपने आज मेरे आत्म-बलिदान और मेरे देश के प्रति समर्पण के बारे में बहुत कुछ बताया है। जब से मैं जेल से बाहर आया हूं तब से मैंने इस तरह के भाषण सुने हैं, लेकिन मैं इसे शर्मिंदगी के साथ, कुछ दर्द के साथ सुनता हूं. क्‍योंकि मैं अपनी दुर्बलता जानता हूं, मैं अपके दोषों और पीछे हटने का शिकार हूं। मैं पहले उनके लिए अंधा नहीं था और जब वे सभी एकांत में मेरे खिलाफ उठे तो मैंने उन्हें पूरी तरह से महसूस किया। मैं उन्हें जानता था कि मैं आदमी कमजोर, दोषपूर्ण और अपूर्ण साधन वाला आदमी था, तभी मजबूत हुआ जब एक उच्च शक्ति ने मुझमें प्रवेश किया। तब मैंने अपने आप को इन नौजवानों के बीच पाया और उनमें से बहुतों में मैंने अदम्य साहस पाया, आत्म-संहार की शक्ति जिसकी तुलना में मैं कुछ भी नहीं था। मैंने एक-दो को देखा जो न केवल बल और चरित्र में मुझसे श्रेष्ठ थे,-बहुत से थे,-बल्कि उस बौद्धिक क्षमता के वादे में भी, जिस पर मुझे गर्व था। उसने मुझसे कहा, "यह युवा पीढ़ी है, नई और शक्तिशाली राष्ट्र है जो मेरी आज्ञा से उत्पन्न हो रही है। वे तुमसे बड़े हैं। तुम्हें क्या डरना है? यदि तुम एक तरफ खड़े रहते या सो जाते, तो भी काम होता। यदि आप कल एक तरफ फेंक दिए गए थे, तो ये युवा पुरुष हैं जो आपके काम को ले लेंगे और इसे पहले से कहीं ज्यादा ताकत से करेंगे। आपको इस राष्ट्र को एक शब्द बोलने के लिए केवल इतना बल मिला है जो इसे बढ़ाने में मदद करेगा "
फिर अचानक एक बात हुई और एक क्षण में मुझे एकांत कोठरी के एकांत में ले जाया गया। उस समय मेरे साथ क्या हुआ था, यह कहने के लिए मैं बाध्य नहीं हूँ, लेकिन केवल उसी दिन उसने मुझे अपने चमत्कार दिखाए और मुझे हिंदू धर्म की पूरी सच्चाई का एहसास कराया। मुझे पहले कई शंकाएँ थीं। मैं इंग्लैंड में विदेशी विचारों और पूरी तरह से विदेशी माहौल में पला-बढ़ा हूं। हिंदू धर्म में कई चीजों के बारे में मुझे एक बार यह विश्वास हो गया था कि वे कल्पनाएँ थीं, कि इसमें बहुत कुछ स्वप्न था, बहुत कुछ भ्रम और माया थी। लेकिन अब दिन-ब-दिन मुझे मन में एहसास हुआ, मुझे दिल में एहसास हुआ, मुझे शरीर में हिंदू धर्म की सच्चाइयों का एहसास हुआ। वे मेरे लिए जीवित अनुभव बन गए, और वे चीजें मेरे सामने खुल गईं जिन्हें कोई भौतिक विज्ञान नहीं समझा सकता। जब मैंने पहली बार उनसे संपर्क किया, तो यह पूरी तरह से ज्ञानी की भावना में नहीं था। मैं बहुत पहले बड़ौदा में स्वदेशी शुरू होने से कुछ साल पहले उनके पास आया था और मुझे सार्वजनिक क्षेत्र में खींचा गया था।

जब मैं उस समय भगवान के पास पहुंचा, तो मुझे शायद ही उन पर जीवित विश्वास था। नास्तिक मुझमें था, नास्तिक मुझमें था, संशयवादी मुझमें था और मुझे पूरा यकीन नहीं था कि ईश्वर है भी। मुझे उनकी उपस्थिति महसूस नहीं हुई। फिर भी कुछ ने मुझे वेदों के सत्य, गीता के सत्य, हिंदू धर्म के सत्य की ओर खींचा। मैंने महसूस किया कि इस योग में कहीं न कहीं एक शक्तिशाली सत्य होना चाहिए, वेदांत पर आधारित इस धर्म में एक शक्तिशाली सत्य। इसलिए जब मैं योग की ओर मुड़ा और इसका अभ्यास करने का संकल्प लिया और यह पता लगाया कि क्या मेरा विचार सही था, तो मैंने इसे इस भावना से और इस प्रार्थना के साथ किया, "यदि आप हैं, तो आप मेरे दिल को जानते हैं। आप जानते हैं कि मैं करता हूं।" मुक्ति मत मांगो, मैं ऐसा कुछ नहीं मांगता जो दूसरे मांगते हैं। मैं केवल इस राष्ट्र के उत्थान के लिए शक्ति मांगता हूं, मैं केवल उन लोगों के लिए रहने और काम करने की अनुमति मांगता हूं जिन्हें मैं प्यार करता हूं और जिनके लिए मैं प्रार्थना करता हूं कि मैं अपना जीवन समर्पित कर सकूं। कुछ हद तक मेरे पास था, लेकिन मैं जो सबसे ज्यादा चाहता था उसमें मैं संतुष्ट नहीं था। फिर जेल के एकांत में, एकांत कोठरी में मैंने इसे फिर से मांगा। मैंने कहा, "मुझे अपना आदेश दो। मुझे नहीं पता कि क्या काम करना है या कैसे करना है। मुझे एक संदेश दो। योग के संवाद में दो संदेश आए। पहले संदेश में कहा गया, "मैंने तुम्हें एक काम दिया है और वह है इस राष्ट्र के उत्थान में मदद करना। जल्द ही वह समय आएगा जब आपको जेल से बाहर जाना होगा; क्योंकि यह मेरी इच्छा नहीं है कि इस बार या तो आपको दोषी ठहराया जाए या आप समय व्यतीत करें, जैसा कि दूसरों को करना है, अपने देश के लिए पीड़ित होना चाहिए। मैंने आपको काम करने के लिए बुलाया है और यही वह आदेश है जिसके लिए आपने मांगा है। मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि आगे बढ़ो और अपना काम करो।" दूसरा संदेश आया और उसने कहा, "इस एकांतवास के वर्ष में तुम्हें कुछ दिखाया गया है, जिसके बारे में तुम्हें संदेह था और यह हिंदू धर्म की सच्चाई है।" धर्म। यह वह धर्म है जिसे मैं दुनिया के सामने खड़ा कर रहा हूं, इसी को मैंने ऋषियों, संतों और अवतारों के माध्यम से पूर्ण और विकसित किया है, और अब यह राष्ट्रों के बीच मेरा काम करने जा रहा है। मैं अपना वचन आगे भेजने के लिए इस राष्ट्र को उठा रहा हूं। यही सनातन धर्म है, यही सनातन धर्म है जिसे तुम वास्तव में पहले नहीं जानते थे, लेकिन जिसे मैंने अब तुम्हारे सामने प्रकट किया है। आप में अज्ञेयवादी और संशयवादी का उत्तर दिया गया है, क्योंकि मैंने आपको भौतिक और व्यक्तिपरक, भीतर और बाहर सबूत दिए हैं, जिन्होंने आपको संतुष्ट किया है। जब आप बाहर जाएं तो अपने राष्ट्र को हमेशा यह शब्द बोलें कि वे सनातन धर्म के लिए उठते हैं, वे अपने लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए उठते हैं। मैं उन्हें विश्व की सेवा के लिए स्वतंत्रता दे रहा हूं। इसलिए जब यह कहा जाता है कि भारत का उदय होगा, तो सनातन धर्म ही महान होगा। जब यह कहा जाता है कि भारत का विस्तार और विस्तार होगा, तो यह सनातन धर्म है जो दुनिया भर में फैलेगा और फैलेगा। यह धर्म के लिए है और धर्म के द्वारा ही भारत का अस्तित्व है। धर्म की बड़ाई करना मतलब देश की बड़ाई करना। मैंने आपको दिखाया है कि मैं हर जगह और सभी लोगों में और सभी चीजों में हूं, कि मैं इस आंदोलन में हूं और मैं न केवल उन लोगों में काम कर रहा हूं जो देश के लिए प्रयास कर रहे हैं बल्कि मैं उन लोगों में भी काम कर रहा हूं जो उनका विरोध करते हैं और खड़े हैं उनका रास्ता। मैं हर किसी में कार्य कर रहा हूं और मनुष्य चाहे जो कुछ भी सोचें या करें, वे मेरे उद्देश्य में सहायता के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। वे भी मेरा कार्य कर रहे हैं, वे मेरे शत्रु नहीं मेरे यंत्र हैं। अपने सभी कार्यों में आप यह जाने बिना आगे बढ़ रहे हैं कि आप किस रास्ते पर जा रहे हैं। आप एक काम करना चाहते हैं और आप दूसरा करते हैं। आप एक परिणाम का लक्ष्य रखते हैं और आपके प्रयास उस परिणाम का समर्थन करते हैं जो अलग या विपरीत है। यह शक्ति है जो निकलकर लोगों में प्रवेश कर गई है। मैं बहुत पहले से इस विद्रोह की तैयारी कर रहा था और अब समय आ गया है और मैं ही इसे पूरा करने का नेतृत्व करूंगा।"
 हमे अखंड भारत स्वप्न  को साकार करना है तो महर्षि अरविन्द विचारों आधार पर ही चलना चाहिए तभी अखंड भारत स्वप्न  साकार हो सकता है हम सबको जातिगत पहचान से उपर उठकर राष्ट्रीय पहचान को प्रथामिकता देनी चाहिए हम सबके लिए राष्ट्रीय पहचान आधार सिर्फ सनातन धर्म होना चाहिए क्योंकि  राष्ट्र धर्म सनातन है । हमे अखंड भारत स्वप्न को पुनः साकार करना है तो हम  सब सनातनियों एक संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी अपने वैचारिक मतभेदो को समाप्त  करके  एक राष्ट्र  एक धर्म  एक संस्कृति संकल्प साकार करने के प्रत्यनशील  होकर कार्य  करेंगे इसके लिए हमें जो त्याग और समर्पण करना पड़े हम हमेशा तैयार रहेंगे हम अपने लक्ष्यों से किसी परिस्थितियों में पीछे नहीं हटेंगे हिमालय की तरह अटल रहेंगे हम सबके जीवन एकमात्र उद्देश्य है कि हम सब एक दिन अखंड भारत में मिलेंगे चाहे उसके लिए अपनी कितनी भी पीढ़ी खपा देनी पड़े फिर भी  हम  तैयार रहेंगे चाहे हमारे विरूद्ध पूरा संसार भी खड़ा हो जाए फिर भी हम सब सनातनी मिलकर अखंड भारत के स्वप्न को सरकार करेंगे  । 






भारत माता की जय 
दीपक कुमार द्विवेदी 


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें