स्थाई हिंदू एकता कैसे संभव हो सकतीं हैं आइए जानें



मै एक बात बहुत समय से देख और पढ़ रहा हूं कुछ ऐसे विषय है जिनपर कभी सहमति नहीं बन सकतीं हैं उसमें एक सबसे महत्वपूर्ण विषय वर्ण और जाति व्यवस्था का इस विषय पर दोनों पक्षों के पास सॉलिड तर्क और तथ्य है लाखों वर्षों से हिंदू समाज में एक ऐसा वर्ग रहा है वह कभी ब्रह्माण परंपरा को स्वीकार नहीं किया है और सदा विरोधी रहा है इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलेंगे दोनों समूह में कभी सहमति नहीं बनी है । महाभारत के युद्ध उपरांत जो परिस्थितियां निर्मित हुई उसके कारण वर्ण और जाति व्यवस्था विकृति स्वरूप दिखाई देने लग गया था 19 सदी आते आते यह स्थिति हो गई वीर सावरकर जी को कहना पड़ा वर्ण और जाति व्यवस्था समाप्त किए बिना हिंदू एकता संभव नहीं है । उन्होंने हिन्दुत्व पुस्तक में एक बात भी कही थी हमारी एकता आधार एक राष्ट्र एक जाति एक संस्कृति हो ही सकता है । अर्थात सब लोग अपनी जातिगत पहचान को उपर रखकर अपनी हिंदू पहचान को प्रथामिकता देनी चाहिए । जातिगत भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण 19 वी सदी के मध्य में परिस्थिति इतनी विकट हो गयी की विभाजन के बड़ी हिंदू आबादी जोगिंदर नाथ मंदिर के साथ पाकिस्तान चली गई थी । इससे स्पष्ट होता जातिगत भेदभाव और शोषण किस स्तर में हो रहा है इस सत्य को हम नहीं झूठला सकते हैं क्योंकि कोई व्यक्ति अपना घर देश तभी छोड़ता है कि जब उसे जीवन यापन करना भी कठिन हो जाता है। इस सत्य से हम आप एक समाज के रूप मुंह नहीं छुपा सकते हैं सत्य सत्य सत्य ही रहेगा । इस बात पर समाज के रूप चिंतन करने की सख्त आवश्यकता है कि इतना समृद्धि उन्नत समाज जो आत्मा ब्रह्म की बात करने वाला समाज रहा है प्रत्येक जीव ब्रह्म का रूप देखने वाला समाज उस समाज में इस तरह की विकृतियां कैसे उत्पन्न होने लगीं जन्म आधार ऊंच नीच का भेद करने लग गया इसके क्या कारण रहे होंगे इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है । एक बात और सोचने वाली बात है कि महाभारत के बाद समाजिक ताना बाना इस तरह से विखर जान एक बड़ा प्रश्न खड़ा करता है ?कि हमारी महान ऋषि परंपरा ने इस विकृति पर प्रहार क्यो नही कर पाई?इन विकृतियों को बढ़ावा क्यो दिया गया? और इन विकृतियों को दूर करने का प्रयास उस वक्त क्यों नहीं किया गया ? जब यह विकृतियां समाज में सर उठा रही थी । उसके आलावा इतने जन जागरण एवं समाजिक समरसता के अभियान चलाने के पश्चात भी आज भी जन्म आधार गांवों में भेदभाव क्यों हो रहा है । आज भी गांवों में एससी वर्ग के लोग पानी छुआ पानी को कोई नहीं छूता है। जिस बर्तन में चाय पीते है उन्हें खुद धोना पड़ता जो उनके लिए किसी अपमान से कम नहीं है । किसी उच्च वर्ग घर में एससी वर्ग व्यक्ति जाता है तो उसे जमीन में बैठने को मजबूर होना पड़ता है । कोई कार्यक्रम उच्च वर्ग के लोगों के यहां होता है तो एससी वर्ग के लोग सबसे अन्तिम पंगत में बैठाया जाता है ये सब स्वयं अपने गांव में देखने वाला हूं अपने आंखों से जो देखा वही बता रहा हूं ये बात जरूर है कि धीरे धीरे समाज की मानसिकता बड़े स्तर पर परिवर्तन भी आ रहा है फिर भी परिवर्तन गति बहुत धीमी है इस निराशा भरे माहौल 1990 के आर्थिक उदारीकरण के बाद समाज के अचार विचार में बड़ा परिवर्तन दिखाई देने लग गया है जो सुखद पहलू है क्योंकि जो जातियां पहले अछूत समझी जाती थी वह मुख्यधारा आने लग गई उसके साथ शिक्षा के स्तर बढ़ने के बाद मल्टीनेशनल कंपनियां में लोग गांव से बाहर जाने लगे सभी जाति के लोग एक साथ कार्यशाला काम करने लगे और एक साथ शहरो मे रहने लगे खाना पीना एक साथ होने लगा तो जिसके कारण अब जन्म के आधार पर जातिगत भेदभाव कम हुआ कम होता जा रहा फिर भी 1990 के पहले वाली पीढ़ी के लोगों जन्मना श्रेष्ठता बोध अहंकार उनमें आज भी दिखाई देता है जिसे दूर करने की आवश्यकता है। इसलिए इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए सुधार प्रयास करते रहना चाहिए यह सुनिश्चित करना किसी के साथ जन्म आधार पर किसी तरह भेदभाव न हो न होने दे जो कर रहा हो अपना भी उसका प्रतिरोध करे और सबको अपना भाई मानकर समान व्यवहार करना चाहिए क्योंकि चाहे हिन्दू किसी जाति वर्ग हो हिंदू हैं जो आज भी किसी कारण से पिछड़े हैं उन्हें मुख्यधारा में लाना हम लोगों का परम कर्तव्य होना चाहिए । आज हम उनका हाथ भाई समझकर पकड़ेंगे तो कल अपना सर्वस्व सनातन धर्म संस्कृति के लिए न्योछावर करने को तैयार रहेंगे यही हिंदू एकता आधार स्तम्भ बनेंगी जिस पर हम मजबूत हिंदू एकता की इमारत तैयार कर सकते हैं । समय रहते अपनी कमियों विकृतियों को दूर करते गए तो परम वैभवशाली अखंड भारत बनाने स्वप्न को हम साकार कर पाएंगे ।


    जय श्री कृष्ण 
 दीपक कुमार द्विवेदी

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