हर हिंदु को यह बात हृदयंगम कर लेना चाहिए कि वह मुस्लिमों की निगाह में काफिर है ,मुशरिक है ।

हर हिंदु को यह बात हृदयंगम कर लेना चाहिए कि वह मुस्लिमों की निगाह में  काफिर है ,मुशरिक है  और कुरान शरीफ के अनुसार उसका दमन या कत्लेआम मुसलमानों के लिए शबाब है । इस्लाम की अल तकिया नीति का शिकार नहीं होना है । इस नीति के तहत मुसलमान झूठी कसमें खा सकते हैं , झूठे तर्क दे सकते हैं ,ताकि तुम्हें यकीन में लेकर तुम पर घात करने का मौका उन्हें मिल जाए ।

                     कुछ मौलाना सफाई दे रहे हैं कि एक ईश्वर में विश्वास करने वाले काफिर नहीं हो सकते । यह झूठ है जिसे  प्रयोग करने की छूट अल तकिया नीति के तहत मुसलमानों को दी गई है। अल तकिया के तहत मुसलमान झूठ बोलकर काफिरों को दिग्भ्रमित कर सकते हैं।  
         इस्लाम के खुदा  सिर्फ वे  हैं जिनके फरमान कुरान शरीफ  की आयतों के रूप में दर्ज हैं । इन फरमानों को नहीं मानना ही कुफ्र है ।

                        इस्लाम का अल्लाह वही नहीं है जो हिंदुओं का ब्रह्म और ईसाइयों का गॉड है। यदि एक होते तो उनके फरमान भी एक होते ।अल्लाह कयामत में विश्वास करने का फरमान जारी करता है ।क्या ब्रह्म भी ऐसा फरमान जारी करता है ? इस्लाम के अनुसार तो कुरान की आयतों पर यकीन किए बिना उस एकल ब्रह्म पर यकीन का कोई अर्थ ही नहीं है ।

                          मुसलमान कहेंगे कि यदि यह मानते हो कि ईश्वर एक ही है ,वही खुदा है ,वही God है,तो फिर तुम्हें कुरान मजीद की आयतों पर यकीन करने में क्या दिक्कत है ।।अब यदि तुम कुरान की आयतों पर यकीन करोगे ,तो उनका अनुसरण करोगे ही  । तात्पर्य यह कि तुम्हें  मुसलमान बनना ही होगा ।
                              वैसे, हिंदु तो  एकेश्वरवादी ही नहीं हैं ,मूर्त्ति पूजक भी हैं ।  मुसलमान हिंदुओं को काफिर नहीं मानें ,इसके लिए उन्हें मूर्त्ति पूजा  बंद करनी होगी और तब तो  सारे मंदिर तोड़ने होंगे  ।क्या ऐसा करेंगे वे ?नहीं न।फिर तो वे काफिर कहलायेंगे ही और कुरान की  सूरते तौबा की आयतें उनपर लागू होंगी ही ।

                              इसतरह  काफिर के दाग से बचने के लिए ईमान लाना  ही होगा यानी मुहम्मद पैगम्बर ,कुरान मजीद ,नमाज ,जकात आदि को अपनाकर अपने पूर्व के यकीन से तौबा करना ही होगा ।
                                खैर, हिंदुओं के लिए भी मुसलमान शूद्र हैं  ।शूद्र शब्द काफिर का ही पर्याय है ।शूद्र के साथ शत्रुवत व्यवहार के निर्देश हैं । हिंदु धर्मग्रंथों में शूद्र संज्ञा गैर हिंदुओं की ही थी और मुसलमान  तो शूद्र की परिभाषा में सटीक बैठते हैं ।बिहार के  हिंदु घरों में मुसलमानों के खाने के  लिए अलग बर्त्तन रखे जाते थे , क्योंकि उन्हें अछूत माना जाता था । 

                          मुगल शासकों ने शातिराना अंदाज में शूद्र शब्द को हिंदु जातियों की तरफ मोड़ दिया ।दुर्भाग्यवश दलित और पिछड़े अपने को शूद्र मानने लगे हैं । बादशाह अकबर के समय स्थापित मंदिरों में  भी दलितों के प्रवेश वर्जित कर दिए गए थे । इलाही दीन के अंतर्गत गांव गांव में फैले पुजारियों ने  भी  शूद्र शब्द को मुसलमानों से मोड़कर हिंदु जातियों की ओर करने में मदद की । इसतरह एकता की डोर से बंधा पूरा समाज छिन्न भिन्न हो गया ।लेकिन सच यही है कि हिंदुओं के शूद्र मुसलमान ही हैं । शायद पूर्व में बौद्धों को भी शूद्र माना जाता था ,लेकिन बुद्ध को अवतार घोषित कर  बौद्धों के शूद्रत्व पर विराम लगा दिया गया। 
  
                           जय श्रीकृष्ण

टिप्पणियाँ