27 अप्रैल 1971 कालीगंज_नरसंहार - 400 हिन्दू


बंगाली_हिंदु_नरसंहार को चालू हुए 1 महीना पूरा हो चुका था । जगह जगह हिन्दू अपनी जान और महिलाओं की इज्जत बचाने के लिए इधर से उधर भाग रहा था । कभी इस शहर कभी उस शहर, कभी रेलवे स्टेशन तो कभी बस स्टैंड । इस भागदौड़ में सिर्फ एक चीज बदल रही थी और वो थी मृत्यु की जगह क्योकि हत्या और बलात्कार अब नियति बन गयी थी बंगाली हिन्दुओ की ।

इतिहास में हमको पढ़ाया गया कि पश्चिम पाकिस्तान की सेना ने क्रांति को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान की आम जनता को मारा परन्तु हकीकत बिल्कुल अलग थी । हकीकत ये थी कि बंगाली सभ्यता खड़ी हुई थी पाकिस्तान की इस्लामी हुकूमत के खिलाफ और उस बंगाली सभ्यता के ध्वजवाहक हिन्दू थे, न कि मजहबी बंगाली । बस यही कारण था कि पाक सेना, मुस्लिम लीग, रजाकर और स्थानीय मौलानाओं सबका लक्ष्य केवल बंगाली हिन्दू ही थे ।

इसी को लक्षित कर जनरल याहया खान ने कहां था "30 लाख बंगाली मार दो, बाकी सब इस्लामी हुकूमत को मानेंगे" 

जब पाक सेना ने नरसंहार शुरू किया तो बडी योजना से हिन्दू गाँवो को चिन्हित किया था। स्थानीय मज़हबियो ने बहुत सपोर्ट किया पाक सेना को और अपने हाथ साफ किये हिन्दुओ की सम्पति और महिलाओं पर ।

इसी क्रम में 26 अप्रैल को #करई_कादीपुर_नरसंहार किया गया । 26 अप्रैल 1971 को पाकिस्तानी सेना और रजाकारों द्वारा जॉयपुरहाट के निहत्थे हिंदू ग्रामीणों का जबरदस्त नरसंहार किया था । करई, कादीपुर और आसपास के अन्य गांवों में हुए नरसंहार में 370 हिंदू मारे गए थे। 

24 अप्रैल की रात को पाकिस्तानी सेना संथार से ट्रेन से पहुंची और उपमंडलीय कस्बे जॉयपुरहाट पर कब्जा कर लिया। 25 अप्रैल की सुबह से ही पाकिस्तानी सेना ने नागरिकों को मारना शुरू कर दिया और लूट और आगजनी में लगी रही।

जॉयपुरहाट के लोग गाँव की ओर भागने लगे। 26 अप्रैल को, सहयोगियों की सहायता से सेना ने करई और कादीपुर के हिंदू बहुल गांवों को निशाना बनाया। उन्होंने गांवों को घेर लिया और हिंदू पुरुषों को अपनी कैद में ले लिया। पुरुषों को एक पंक्ति में खड़ा किया गया और हल्की मशीनगनों का उपयोग करके फायरिंग की गई।

महिलाओं के साथ वही किया गया जिसके लिए मजहब प्रसिद्ध है और जो मजहब का उद्देश्य है । #गोनिमोटर_माल का नारा था उस वक्त बंगाली हिन्दू महिलाओं के लिए अर्थात "सार्वजनिक संपत्ति"

26 अप्रैल को हुई गोलीबारी की आवाज अभी थमी भी नही थी कि 27 अप्रैल, जब #कालीगंज_नरसंहार का नम्बर आ गया ।इसमें 400 से ज्यादा हिन्दुओ की हत्या की गई । ये वही हिन्दू थे जो 1947 की गलती को सुधारते हुए जान बचाने के लिए भारत की तरफ भाग रहे थे । विभिन्न जगह से आये हुए लगभग 1000 हिन्दू कालीगंज पहुँचे जिसमे से लगभग 400 पर पाक सेना और रजाकारों ने सुबह 10 बजे कालीगंज बाजार मे राइफलों से हमला कर दिया । सारी हत्याये दो समूहों में की गई । कुछ को बाजार में मारा गया तो बाकी को नहर के किनारे ले जाकर मारा ।

जनरल V K सिंह अपने एक संस्मरण में लिखते है कि आत्मसमर्पण करने वाले 90000 सैनिकों में से किसी को कोई पछतावा नही था । वो गर्व से कहते थे कि हमने बंगाली संस्कृति को साफ कर दिया पूर्वी पाकिस्तान से । एक ने तो यहाँ तक कहाँ कि हम ज्यादा गोलियां बर्बाद नही करते थे । एक गोली से 12 बंगालियों को मारने का औसत है मेरा । संगीनों से घायल कर घायल को जीवित अवस्था मे ही दबा देते थे । जब सारे पुरूष मर जाते थे तो उनकी स्त्रियां (#गोनिमोटर_माल )हम बाँट लेते थे ।

भारत ने बंगलादेश के तथाकथित मुक्ति आंदोलन मे सिर्फ हार ही पाई है न कि जीत ।

1. युद्ध मे खर्च, सैनिकों का नुकसान
2. 30 लाख बंगाली हिन्दुओ की हत्या
3. 2 करोड़ शरणार्थी
4. 90000 सैनिकों की आवाभगत का खर्च

और सबसे बड़ा नुकसान था ।

एक बड़े भूभाग से हिन्दू सभ्यता का अंत

कोई भी ढंग का नेतृत्व होता तो उस वक्त भारत फायदे के बारे में सोच सकता था पर तथाकथित दुर्गा तो शिमला की मेज पर सब हार बैठी शेखी शेखी में ।



अगर मुझे भूतकाल में जाकर एक खू_न की इजाजत मिल जाये तो जोगिंदर नाथ 47 न देखता ।

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