हनुमान चालीसा पर विवाद क्यों किया जा रहा है ?

संकर सुवन केसरी नंदन/संकर स्वयं केसरी नंदन। 

पूरे विवाद के मूल में पूछ है। 

किंतु श्री हनुमानजी की तो पूंछ है 

और हम सबके पास पूछ... 

पूंछ से जीवन में सम्यकता आती है, नियन्त्रण, पूंछ धैर्यपूर्वक स्थिर रहने में सहायक है। पूंछ में कोई अहंकार, लोभ, काम आदि कोई विकार भी नहीं है। हां, कपि की अवश्य थोड़ी ममता है पूंछ पर किंतु रामकाज के लिए कपिवर श्री हनुमान जी पूंछ पर आग लगाने को भी सहर्ष तत्पर हो जाते हैं। 

किंतु पूछ.. स्थिर नहीं रहने देती, न विचारों को न चित्त को। पूछ में अहंकार भी है, लोभ भी, काम भी और ममता भी। पूछ झुकना नहीं जानती। इसी पूछ के कारण व्यक्ति हमेशा दूसरों से अपेक्षा में ही जीता है, चाहता है सब जगह उसकी पूछ हो, उसके ज्ञान की पूछ हो और न हो तो अहंकार उत्प्लावित होकर सतह पर आ जाता है। तब ईर्ष्या, निंदा, क्रोध, क्षोभ सब उभर आते हैं। और हां पूंछ की तरह पूछ को भी जलना पड़ता है। 
पूंछ जलती है राम काज के लिए, राम भक्ति की अग्नि से 
परन्तु पूछ जलती है अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या की अग्नि में। 

अब देखिए न.. श्री हनुमान चालीसा में पाठभेद मिले हैं, वर्षों से हैं, अनेक प्रदेशों-राज्यों में अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग कालखंड में श्री हनुमान चालीसा लिखी हैं अथवा प्रकाशित की हैं। तो स्वाभाविक है पाठभेद का मिलना। किंतु आज विवाद खड़ा हुआ है अथवा किया गया है। क्यों? क्योंकि इससे पूर्व पाठभेद शालीनता से स्वीकार कर लिये गए, अपनी-अपनी गुरू/पीठ परम्परा से श्रद्धानुसार लोग भक्तिभाव से पाठ करते रहे किंतु आज स्यात युगधर्म के बलवान होने से अपने ही पाठ को, अपने मत को ही सही सिद्ध करने की होड़ लगी है। जबकी प्रचलित हनुमान चालीसा के पक्ष में ही बहुमत तथ्य हैं तथापि अपने मत को सही सिद्ध करने के लिए दुराग्रह की हद तक जिद ही विवाद का मूल कारण है। इस दुराग्रह के मूल में है... वही पूछ! 
अरे! पूछ छोड़िए और प्रयास करिए कि कम से कम श्रीहनुमान जी की पूंछ ही हाथ आ जाय और उनकी पूंछ का एक झाड़ा लग जाय हमारी मलिन बुद्धि पर। 

अब एक हालिया उदाहरण और देखिए इस पूछ के दुराग्रह का.... श्रीअयोध्या जी में श्रीराम मन्दिर का शिलान्यास समारोह प्रारम्भ होने जा रहा था। पूंछ वाले और पूछ वाले सब स्पष्ट दिखाई देने लगे थे। 
पूंछ वाले प्रसन्न थे, भावुक थे, समर्पण, शरणागति के भाव में डूब गए थे और 
पूछ वाले.....हाय हमें निमन्त्रण न मिला, हाय हम तो डालेंगे मिट्टी, हाय अभी कोरोना है, अर्थव्यवस्था तबाह है, रोजगार नहीं है, नौकरियां चली गई चिल्ला रहे थे। 
ये पूछ वाले स्वप्न में भी ईश्वरीय अनुग्रह प्राप्त नहीं कर सकते। 

और हां पूंछ होगी तो जन्म-जन्मान्तर तक प्रभु श्री राम की भक्ति प्राप्त होती रहेगी जैसी श्री हनुमंत लाल जी को मिली है और केवल पूछ पकड़ी होगी तो ऐसे ही क्रोध, अहंकार को ढोते रहोगे, कुढ़ते रहोगे, ईर्ष्या की अग्नि में जलते रहोगे।। 
अब आपको तय करना है कि पूंछ को पकड़ना है या पूछ को।। 

"संकर सुवन केसरी नंदन"
"हर ते भै हनुमान"
"वानराकार विग्रह पुरारी"
जय जय श्री हनुमंत लाल। 
जय जय श्रीराम 


                 साभार 
Naman Krishna Bhagwat Kinker

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