सिंथेटिक शैम्पू और साबुन बाल और त्वचा के लिए क्यों घातक है ? और हमे क्यों घर बने आयुर्वेदिक फेसपैक का प्रयोग करना चाहिए ? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख

उस जमाने में स्त्रियों के बालों को घना, लम्बा और काला रखने की जिम्मेदारी 'मुल्तानी मिट्टी' की ही थी। यही उस जमाने का 'फेसपैक' थी और यही बाल धोने का जरिया। मुल्तानी मिट्टी का साथ देने के लिए थे आंवला, रीठा और शिकाकाई। रीठे में पाए जाने वाले 'सैपोनिन्स' पानी में घुलकर झाग पैदा करते थे और यही झाग बालों में जमी हुई गंदगी को निकाल देता था। 

शिकाकाई झाग तो नहीं देता मगर यह 'क्लिंजर' का काम बहुत बढ़िया करता था। शिकाकाई को प्रयोग करने के लिए शिकाकाई के पत्तों, फलियों और छाल को सुखाकर कूटकर उसका पाउडर बनाया जाता था तथा पाउडर को भगोने से जो पेस्ट बनता था वही उस जमाने का 'कंडीशनर' था। 'डेंड्रफ' को खत्म करना भी इसी की ड्यूटी थी। 

आंवले का काम था बालों की जड़ों को पोषण प्रदान करना। आंवले में होता है विटामिन सी और विटामिन सी का काम है बालों को फ्री रेडिकल्स से बचाना और उनको टूटने ना देना। विटामिन सी की कमी होने पर बाल ड्राई हो जाते हैं और दोमुँहे भी हो जाते हैं। 

तो बस ये रीठा, आँवला और शिकाकाई की तिकड़ी बालों को बूढ़ा ना होने देती थी बस हमेशा 'बाल' बनाए रखती थी। 

फिर बही विकास की ब्यार ....

बाजार में नहाने के भांति-भांति के साबुन आने लगे। शुरू शुरू में तो नहाने और बाल धोने का काम एक ही साबुन से लिया जाता रहा और फिर साबुनों के आकाश में एक साबुन चमका जिसका नाम था 'केशनिखार'। खूब रंग जमाया सालों साल केशनिखार ने। 

फिर पश्चिम की हवा आई और उसने केशनिखार के वर्चस्व को तोड़ दिया। लोगों के मन में भर दिया कि बालों को मखमली बनाने के लिए चाहिए खास 'शैम्पू'। 

किसी का नाम 'सनसिल्क' था तो किसी का 'डव'। किसी ने अपने को 'क्लिनिक प्लस' बताया तो एक नाम तो ऐसा आया जिसे हम आज तक ना पढ़ पाए। कोई 'ट्रेसम्म केराटिन शैम्पू' था शायद। 

नाम कुछ भी हो 'बेस' सबका एक ही था... ज्यादातर मामलों में 'सोडियम लॉरिल सल्फेट' या फिर 'सोडियम लॉरेथ सल्फेट'। 

काम था इसका झक सफेद झाग पैदा करना। कुछ और केमिकल भी डाले गए जैसे पान वाला पान लगाते समय भांति-भांति के डिब्बों से निकालकर पान में कुछ-कुछ डालता जाता है और उससे सादा पान, मीठा पान या फिर बनारसी पान बन जाता है। वैसे ही शैम्पू भी बन गए कोई ड्राई बालों के लिए, कोई एंटीडैंड्रफ तो कोई हेयर फाल कंट्रोल, कोई लाइवली क्लीन तो कोई टोटल डैमेज केअर। भांति-भांति की खुशबू लिए हुए। 

बालों का ख्याल बच्चों की तरह रखा जाने लगा। बालों को सदियों तक जिस रीठा, आँवला और शिकाकाई के अत्याचारों का 'विक्टिम' बताया गया था। उन बालों को 'बाल' केटेगरी में लाते हुए उनके लिए अब विशेष शैम्पू बाजार में उपलब्ध थे।

इन सिंथेटिक शैम्पूओं के गुणों का बढ़-चढ़कर बखान तो सभी ने किया मगर किसी ने भी यह नहीं बताया कि ये जो सोडियम लॉरिल सल्फेट है यह कार्सिनोजेनिक है। इसके कारण कुछ ऐसे म्यूटेशन हो जाते हैं जो कैंसर पैदा कर सकते हैं। इसी लिए पश्चिमी देशों में तो 'नो पू डे' तक मनाया जाने लगा। 

दुनिया इन्हीं जहर बुझे सिंथेटिक शैम्पूओं के दम पर झूम रही थी कि घनी काली दाढ़ी वाले बाबा का अवतरण हुआ और उसने पेट गोल गोल घुमाते हुए समझाया कि अपना वह सदियों पुराना रीठा, आँवला और शिकाकाई वाला Home Made शैम्पू ही बेहतर है बालों के लिए। जो शैम्पू भी है, कंडीशनर भी और क्लिंजर भी है। 

एक तरफ जहां सिंथेटिक केमिकल युक्त शैम्पू कैंसर पैदा कर सकते हैं वहीं 'सोप नट' बोले तो रीठा में पाए जाने वाले सैपोनिन्स कैंसर ठीक करने की क्षमता रखते हैं। बाबा की शिक्षाओं का असर हुआ और' घर में बने आयुर्वेदिक शैम्पूओं' का एक बार फिर से दबदबा हो गया।


क्या आप जानते हैं कि शैंपू की खोज भारत में हुई थी । पर यह पर वह शैंपू आजकल मिलने वाला Chemical Based Shampoo या आयुर्वेद के नाम पर धोखा देते हुए तथाकथित 99% Chemical Based हर्बल शैंपू नहीं थे । अगर आप किसी भी हर्बल शैंपू की बोतल उठा कर देखोगे ,तो आप पाएंगे कि आंवला ,रीठा ,शिकाकाई के नाम पर बिकने वाले हर्बल शैंपू में केवल दिखावे के लिए आंवला, रीठा, शिकाकाई आदि मिलाए जाते हैं ।इनमें से किसी भी हर्बल शैंपू की एक किलो की बोतल में केवल और केवल कुछ ग्राम आंवला शिकाकाई और रीठा मिलाया जाता है ।ताकि आप की आंखों में धूल झोंकी जा सके ।

इन घटिया रसायनिक हर्बल शैंपू के स्थान पर आप आसानी से घर में आयुर्वेदिक शैंपू बना सकते हैं। उसके लिए आपको चाहिए सिर्फ 100 ग्राम आंवला, 200 ग्राम रीठा, 300 ग्राम शिकाकाई। इनको अलग अलग करके पीस लेना है । ध्यान रहे आंवला, रीठा और शिकाकाई साबुत ही लेने हैं ।अगर आप बाजार से इसे पिसे हुए आंवला रीठा और शिकाकाई लोगे ,तो उनमें पक्का मिलावट होगी । अब इन तीनों पिसे हुए आंवला रीठा और शिकाकाई को मिलाकर रख लेना है । अब अब इस मिश्रण में से जितना शैंपू आपको 1 सप्ताह के लिए चाहिए उतना मिश्रण लेकर पर्याप्त मात्रा में पानी में भिगोकर रख लेना। 1 दिन भिगोने के बाद इस Home madee Shampoo को छान सकते है ।

जब आप यह शैंपू प्रयोग करेंगे तो आप पाएंगे कि आपके बाल जो पहले पूंजीवादी रासायनिक और हर्बल शैंपू से शुष्क हो गए थे ,इस Home made मिलवाट रहित आयुर्वेदिक शैंपू से घने और चमकदार हो गए हैं।

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