हम बहुदेव ही नहीं बल्कि सर्वदेव में विश्वास करते हैं ..सृष्टि में जो कुछ दिख रहा है या नहीं दिख रहा है वह सर्वप्रकाशक सर्वात्मा का विलास ही है ..
और यही सर्वभाव हमें
मछली
कछुआ
वाराह
नरसिंह
वामन
परसुराम
राम
कृष्ण में ईश्वर की बुद्धि करता है ..
हमारा ईश्वर
पत्थर के रूप में नर्मदाशंकर है या शालिग्राम है
या पहाड़ के रूप में कामतानाथ गोवर्धन या कैलाश है
हमारा ईश्वर सरोवर भी है
हमारा ईश्वर नदी भी है
हमारा ईश्वर पीपल बरगद भी है
हम अधिदेव अधिभूत और आध्यात्म को एक साथ रखते हैं क्योंकि इनको अलग अलग करने वाले अंततः सनातन धर्म के विखंडन का ही कारण बनें ..
हमें पता है कि बैकुंठ को राम जन्म का सुख न मिला और गोलोक को राधा कृष्ण के जन्म का ..ब्रज अयोध्या भी ईश्वर के ही स्वरूप हैं ।
ब्रज का अर्थ ही होता है ब्रह्म रज …
विवर्ती या परिणामी अभिन्न निमित्तोंपादान कारण ही हमारे ईश्वर की परिभाषा है और वह साक्षात अपरोक्ष अनुभव का विषय है ।
एक सर्वांग दृष्टि विकसित करिये और किताबी मत बनिये ..
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