केरल स्टोरी … अन्वय और व्यतिरेक
जो ट्रेलर है वही एक गम्भीर सच्चाई दिखा रहा है ..
एक लड़की ( टटुयी) कह रही है कि तुम्हारा ईश्वर सर्वशक्तिमान कैसे हो सकता है जो कि अपनी स्त्री के वियोग में रोने लगता है ?
किताबी केवल एक विधि से सृष्टि को देखते हैं और केवल किताबी ही नहीं पश्चिम के सभी आधुनिक और प्राचीन विद्वान । अरस्तू प्लेटों इत्यादि में भी व्यतिरेक विधि से संसार को या वस्तुओं को देखने की समझ नहीं थी ..
जो आधुनिक लेखक भारत में पश्चिमी जगत से प्रभावित हैं ( मैं फेसबुकियों लेखकों की नहीं स्थापित लेखकों की बात कर रहा हूँ ) उन्हें भी व्यतिरेक दृष्टि नहीं है ..
किताबियों ने ईश्वर को सातवें आसमान की वस्तु बना रखी है अतः उनमें व्यतिरेक दृष्टि उत्पन्न ही नहीं हो सकती ..
व्यतिरेक दृष्टि को संक्षेप में समझिये ..
किसी के भी मन में कामना ( कुछ पाने की इच्छा ) उठेगी ..
वह उसे प्राप्त करने का प्रयास करेगा
यदि प्राप्त नहीं हुआ तो उसे क्रोध आयेगा
क्रोध आने पर वह तोड़ फोड़ कर सकता है
तोड़ फोड़ करने के बाद उसे डर लग सकता है ( याद करें बाबा का बुलडोज़र)
डर लगने पर भागना पड़ता है
भागने पर पकड़ा जा सकता है
पकड़े जाने पर बांधा जा सकता है ..
इसी बात को और गंभीर ढंग से समझाने के लिये कि
कामना क्रोध भय पलायन बंधन , ईश्वर भी स्वीकार करता है तो मनुष्यों कि क्या बात ?
याद करें कथा कि
भगवान , माँ यशोदा का दूध पीना चाहते थे ( कामना )
मैय्या का दूध नहीं मिला तो ग़ुस्सा आया ( क्रोध )
ग़ुस्सा आया तो मक्खन की मटकी तोड़ दी और मटकी तोड़ कर डर गये ( भय )
मैय्या ने पकड़ने के लिये दौड़ाया तो भगे ( पलायन )
और पकड़े गये तो ऊखल में बंधे ( बंधन )
यह कथा व्यतिरेक ढंग से मनुष्य को वासना क्रोध भय पलायन बंधन से मुक्त होकर ईश्वर को एकमात्र कामना वस्तु बनाने की प्रेरणा देती है ..
गिटिपिट पश्चिमी संस्कृति एकदम खोखली है क्योंकि उसके चिंतन का ढंग केवल अन्वय है ।
आइये हम सब मिलकर किताबियों के विरूद्ध जागरण को और बढ़ाए और केरल फ़िल्म को हिट करके जनमानस को जागृत करें ।
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