आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि तरक्की आखिर है किस बला का नाम ?

तरक्की 
आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि तरक्की आखिर है किस बला का नाम ? तरक्की कहते किसे हैं ?क्या सड़क बनने को तरक्की कहते हैं ?क्या आप फ्लाईओवर ,पुल बनने को तरक्की कहते हैं ?क्या बड़ी बड़ी गाड़ियों को तरक्की कहते हैं?क्या बड़ी-बड़ी इमारतों और बड़े बड़े शहरों पर बनने को विकास कहा जाएगा ?अगर यह सब तरक्की है तो आम आदमी पहले से दुखी क्यों है? पहले तो यह सब नहीं था परंतु लोग इतने सुखी और खुश क्यों थे ?क्या यह तो नहीं की तरक्की की आड़ में कुछ और गोरख धंधा चल रहा है ?आइए सबसे पहले हम जान लेते हैं कि असल में तरक्की  क्या होती है ।तरक्की को हम विभिन्न पैमानों पर नाप सकते हैं।

स्वास्थ्य

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सबसे पहले हम देखेंगे कि स्वास्थ्य के मामले में क्या हम तरक्की में हैं या गिरावट में? क्या आज के लोगों की सेहत आज से 50 वर्ष पहले के लोगों से अच्छी है?  क्या आज कल के लोग अपने से 50 पहले वर्ष पहले के लोगों की तुलना में कम बीमार है ?अगर हम इस पैमाने पर देखेंगे तो पाएंगे कि आज लोग अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक बीमार है ।उनकी सेहत दिन-प्रतिदिन गिर रही है ।आजकल के नौजवान को 30 वर्ष की आयु में ही  ब्लड प्रेशर ,यूरिक एसिड ,अस्थमा, अधिक गंभीर रोग  हो रहें हैं ।जबकि हमारे पूर्वजों को यह सब बीमारियां नहीं होती थी ।वह आज के नौजवानों की अपेक्षा बहुत ही अधिक स्वस्थ थे। इस तरह हम देखते हैं कि स्वास्थ्य के पैमाने पर कोई भी तरक्की नहीं हुई है बल्कि स्वास्थ्य के पैमाने पर गिरावट ही हुई है।पर्यावरण

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क्या आज का पर्यावरण हमारे पूर्वजों के पर्यावरण से अधिक शुद्ध है? क्या प्रदूषण पहले से कम  दूषित हुआ है ?क्या आजकल हवा पहले से अधिक शुद्ध है? जल पहले से अधिक शुद्ध है?

आजकल इतनी तरक्की हो गई है कि हमें पानी भी फिल्टर करके पीना पड़ता है। और बड़े शहर जिनमें की बहुत ज्यादा तरक्की हो गई है वहां पर हवा भी  बाजार से खरीदनी खरीदनी पड़ रही है ‌।बड़े शहरों में जहां पर तरक्की बहुत ही ज्यादा हो गई है , वहां पर एयर प्यूरीफायर बिकने लग गए हैं। धीरे धीरे जब यह तरक्की और अधिक हो जाएगी तो छोटे शहरों में भी हवा बिकने लग जाएगी । विकास अधिक हो जाने से नदियों ,समुद्रों आदि में  जल जीव अब सांस भी नहीं ले पा रहे हैं ।धीरे-धीरे जब यह तरक्की सारे विश्व में फैल जाएगी तो सारे समुद्री प्राणियों का अंत हो जाएगा।

जैव विविधता

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जैसे जैसे तरक्की ज्यादा अधिक हो रही है ,वैसे-वैसे पशु पक्षियों के लिए रहने के लिए जंगल आदि समाप्त किए जा रहे हैं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में जीव जंतुओं का क्या काम ?  प्रकृति तो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की जर खरीद गुलाम है। पहले आसमान में विभिन्न प्रकार के पक्षी सुबह शाम दिख जाते थे। अब यह पक्षी सिर्फ कंप्यूटर में ही दिखते हैं ।अब कुछ गिने-चुने पक्षी जैसे कि तो तोते ,कबूतर  आदि कभी कभार   दिख जाते हैं?धीरे-धीरे जब विकास की अधिकता हो जाएगी, तो यह भी दिखना बंद हो जाएंगे ।हमारे बचपन में हमने विभिन्न तरीके की तितलियां देखी है ,जाने वह  कहां चली गई ? तितलियों की तरक्की क्यों नहीं हुई । बेचारे गधे जो कि , जिनसे हम बहुत ही ज्यादा नफरत करते थे,तरक्की का सबसे बड़ा शिकार बन गए हैं। मधुमक्खियों के छत्ते के लिए दो पेड़ भी तरक्की ने नहीं छोड़े । मोर जोकि हमारा राष्ट्रीय पक्षी है ।उनको अंडे देने के लिए जंगल आदि तरक्की के नाम पर काट दिए गए ।धीरे-धीरे या विकास हम इंसानों को भी खा जाएगा

अंतरराष्ट्रीय फैमिली

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पहले जब भारत में विकास कम था तो भारत में सारे लोग परिवार व्यवस्था में रहते थे ।धीरे धीरे जैसे-जैसे विकास हो रहा है ,वैसे वैसे परिवार व्यवस्था खत्म हो रही है। आजकल परिवार भी अंतरराष्ट्रीय हो गए हैं कहीं-कहीं तो मां भारत में रहती है,पिता अमेरिका में, बेटा कनाडा में ,बेटी ऑस्ट्रेलिया में 9 से 5 की जॉब करती हैं ।रात को कभी कभी व्हाट्सएप पर मुफ्त में बात कर लेते हैं और इस बात का जश्न मनाते हैं कि देखो कितनी तरक्की हो गई । धीरे धीरे और भी ज्यादा तरक्की हो जाएगी तो परिवार का एक सदस्य मंगल ग्रह पर ,एक धरती पर ,एक चंद्रमा पर रहने लग जाएगा। पहले हमने तलाक नाम का शब्द नहीं सुना था अब जब तक किसी व्यक्ति के 4-5 तलाक ना हो जाएं। उसको मॉडर्न मानते ही नहीं ।विवाह तो आप पुरातन पंथी हो गई है ।आजकल तो लिव इन रिलेशनशिप का जमाना  है

करैक्टर

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जैसे-जैसे विकास हो रहा है भारत ने बलात्कार चोरी डकैती ठगी अपहरण लूट आदि में झंडे गाड़ दिए हैं। आजकल सगे भाई को सगे भाई पर यकीन नहीं है जैसे-जैसे और विकास होगा भारतीयों का करैक्टर समाप्त हो जाएगा 

Food

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धीरे धीरे जैसे विकास हो रहा है Quality of food  और Variety of food दोनों कम हो रहे हैं।

हमारे पूर्वजों को विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे कि घर की बनी हुई गजक, रेवड़ी , पुलाव मटर पनीर गुलाब जामुन आदि खाने को मिलती थी। जैसे-जैसे भारत तरक्की कर रहा है इन घटिया चीजों की जगह आजकल पश्चिम की बनी हुई बढ़िया चीजें जैसे पिज़्ज़ा बर्गर हॉट डॉग आदि ने ले ली है ।पहले हमारे अविकसित पूर्वज दोपहर में ठंडाई ,बदाम शेक , अभी से अपनी प्यास बुझा लेते थे। आजकल आजकल कोका कोला और पेप्सी विकसित होने की निशानी समझी जाती है । कुछ वर्ष पहले हमारे घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे कि मक्की की रोटी, सरसों का साग ,भरवा करेले , विभिन्न तरीके के अचार मुरब्बे ,विभिन्न तरीके की रोटियां मूली की रोटी आलू की रोटी आदि बनती थी ।धीरे धीरे जैसे-जैसे हम विकास की ओर अग्रसर है हमारे घरों में आप जो थोड़ी बहुत थोड़ा बहुत खाना बनता है ।वह भी बंद हो जाएगा और जल्द हम अमेरिका की तरह तरक्की कर जाएंगे और अपना खाना भी बाहर से मंगा कर खाने लगेंगे

आर्थिक तरक्की

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कई लोग कहते हैं की  राजीव जी आजकल आर्थिक तरक्की बहुत हो गई है। मैं उनसे पूछता हूं कि भैया  कैसे आर्थिक तरक्की हो गई है ,आजकल हर एक व्यक्ति पर कर्ज है ।जबकि हमारे पूर्वजों पर कोई भी कर्ज नहीं था ।उनके पास सोना आदि हमेशा सुरक्षित पड़ा रहता था ,जो किसी भी आपात स्थिति में काम आता था आजकल तो विवाह कराने के लिए भी  loan लेना पड़ता हैं ।1992 में ₹18 का 1 डॉलर आता था अब धीरे धीरे जैसे-जैसे भारत विकास की ओर अग्रसर हो रहा है तो यह 1  डॉलर 18 रूपये से बढ़ कर  ₹70 का हो गया है ।धीरे-धीरे जब विकास और ज्यादा हो जाएगा तो पाकिस्तान की तरह हमारा रुपए भी  150 रुपए का 1डालर हो जाएगा ।जब  आर्थिक विकास अपनी हद पार कर जाएगा तो भारत वेनजुएला भी बन सकता है।

मित्रों यह एक कटाक्ष है,विकास पर ।जिन पूलों सड़कों मोबाइलों कंप्यूटर आदि को आप तक की समझ बैठे हैं भारत वह विकास नहीं है यह तो एक सुविधाएं हैं। विकास तो मानसिक , शारीरिक, बौद्धिक होता है ।आज हर एक व्यक्ति अवसाद का शिकार है। यह कैसा विकास है ,कि हम खुली हवा में सांस नहीं ले सकते। हमारा जल दूषित हो गया है, पर्यावरण नष्ट हो गया  फैमिली सिस्टम खत्म हो गया ,क्या विकास इसको कहते हैं। यह विकास नहीं विनाश है । पूंजीवादी Information warfare ,TV, समाचार पत्रों ने विनाश को विकास का नाम दे दिया है।अगर हम सच में अपना विकास चाहते हैं तो उसके लिए हमें सनातन मॉडल अपनाना पड़ेगा। यह सनातन मॉडल इस बात को निश्चित करता है , धन और संसाधनों की समान बांट हो, पर्यावरण दूषित ना हो ,जीव जंतु ,जंगल ,पेड़ पौधे समुद्र नदियां आदि समाप्त ना हो ।क्या है यह सनातन मॉडल। क्या यह सनातन माडल  संभव है ?क्या इस सनातन मॉडल से हम अमीर बन सकते हैं? वह भी  बिना अपना फैमिली सिस्टम ,पर्यावरण ,आदि की बलि देकर ।तो मैं आपसे कहना चाहता हूं हां यह बिल्कुल ही संभव है। सनातन मॉडल के कारण ही सन १७०० तक भारत विश्व का सबसे अमीर देश बना रहा

वह भी लगातार 10000 सालों तक।

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