क्या कलेजियम सिस्टम लोकतंत्र के अनुरूप है??


संसद को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट को नियंत्रित करे| 
इसमें जनता का प्रतिनिधित्व नहीं है, न्यायपालिका एकलौती संस्था है जिसमी भारत की जनता 'हम भारत के लोग' का प्रतिनिधित्व नहीं है|

आसान शब्दो में देश की इकलौती अलोकतांत्रिक संस्था  जो मनमानी करती है| कोई मतलब नहीं है भारत के जन की भावनाओं और अपेक्षाओं से| 

एक कलेजियम है, वह जजो की नियुक्ति करता है| तो प्रश्न उठता है कि क्या कलेजियम में कोई भारत की जनता का प्रतिनिधित्व कर्ता है?? अगर नहीं है तो यह कैसे कह सकते है कि वह भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है| जब आप लोकतंत्र की बात करते हैं तो मूल बात होती है, जन का, जन के लिए, जन के द्वारा शासन| पर क्या कलेजियम उस जन का प्रतिनिधित्व करता है?? 
नहीं, कलेजियम न्यायपालिका द्वारा मनमाने ढंग से ठूंसा गया है| अभी कुछ लोग कहेंगे कि आप न्यायपालिका की मंशा पर प्रश्न उठा रहें हैं, ऐसा नहीं है सर, एक आम नागरिक होने के नाते, प्रश्न तो खड़ा कर सकते है न| 
कलेजियम में कोई भी ऐसा नहीं है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधि हो| या तो हो सकता है कलेजियम स्वयं को ही भारत समझ रहा हो और कलेजियम के सदस्यों को भारत की जनता, तो अलग बात है| 

जज साहब लोगो की माने तो उन्होने सम्मान अर्जित किया है, पर वो किस सम्मान की बात कर रहे हैं मीम कंटेंट बन कर रह जाने की| या हो सकता रात्रि में स्वप्नो में वह मंगल गृह के किसी एलियन से सम्मान पा जाते हैं|

यह एक लोकतांत्रिक देश के लिए दुर्भाग्य की बात है कि सर्वोच्च संस्था, न्यायपालिका मीम कंटेंट बनकर रह गयी है| सर अहंकार किसी का नहीं टिकता, सम्मान तब है जब देश की जनता बिना दबाव के सम्मान करे, कंटेम्प्ट के डर से लोग बहुत कम ही लिखते बोलते हैं आपके बारे में एक बार कंटेम्प्ट हटाकर देखिए, सम्मान अपमान में बदल जाएगा| 

अहंकार से उठिए!! सत्य को ट्रोलिंग कहकर नकारने से बचने की आवश्यकता है|

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