बंगाली हिन्दू नरंसहार के क्रम में : 18th मई चार भद्रासन नरसंहार


 ऑपेरशन सर्चलाइट चले हुए लगभग 2 महीने होने को थे और लगभग 10 लाख से ज्यादा बंगाली हिन्दू मारे जा चुके थे । हजारो महिलाओं का बलात्कार लगातार जारी थे । सुंदर लड़कीं सबसे पहले पाक सेना के अधिकारी के शिविर में रक्खी जाती थी, उसके बाद अल बद्र के गार्ड्स का नम्बर आता था । लड़कियों को शिविर में तब तक रक्खा जाता था जब तक नया समूह शिविर में नही आ जाता था । तब तक शिविर में सभी लड़कियों को नग्न और भूखा रक्खा जाता था ताकि वो साड़ी का फंदा बनाकर फाँसी न लगा ले । सबसे बाद में वो लडकिया स्थानीय जिहादियों को मिलती थी जिसे वो उसे घर ले जाकर उसके भाई, पति और बाप की कब्र के उपर बने घर मे ही रखता था । वो जिहादी, उसको उसी खेत मे मजदूर बना देता था जिसकी वो महीने भर पहले तक मालकिन होती थी और वो जिहादी उसके यहॉं नौकरी करता था ।

इसी क्रम में मई के मध्य में, अली अहसान मोहम्मद मुजाहिद , पूर्वी पाकिस्तान इस्लामी छत्र संघ के सचिव और अल बद्र के एक कमांडर ने एक हम्माद मौलाना के साथ आठ से दस गैर-बंगाली मुसलमानों के एक समूह के साथ-साथ पाकिस्तानी कब्जे वाले दल का नेतृत्व किया। सबने मिलकर चार भद्रासन में हिंदू बहुल गांवों पर हमला किया । मई के मध्य में एक सुबह करीब 6 बजे हमलावरों ने बैद्यडांगी, मझीडांगी और बलडांगी के तीन गांवों को तीन तरफ से घेर लिया. उन्होंने 300-350 हिंदू घरों और लगभग 50 से 60 निहत्थे हिंदू पुरुषों को लूट लिया और आग लगा दी और महिलाओं के साथ बलात्कार किया ।

19th मई सेंदिया नरसंहार (127 हिन्दू)

घटना के दिन सुबह लगभग 9 बजे पाकिस्तानी सेना की एक टुकड़ी टेकरहाट सैन्य शिविर से निकली और वर्तमान में गोपालगंज जिले के अंतर्गत आने वाले भेंनाबाड़ी में उतरी । उन्होंने चार चमटा में गोलीबारी और आगजनी शुरू कर दी और मदारीपुर जिले के अंतर्गत कादंबरी संघ के माध्यम से आगे बढ़े और उल्लाबाड़ी में एक नरसंहार की। वहां से वे सेंधिया की ओर बढ़े, और रास्ते में अंधाधुंध फायरिंग और आगजनी की।

शाम करीब चार बजे पाकिस्तानी सेना अपने साथियों के साथ सेंदिया गांव पहुंची. गोलियों की आवाज सुनकर पास के खलिया, पलिता और छतियानबाड़ी गांवों के हिंदुओं ने सेंदिया में गन्ने के खेतों में शरण ली। जब पाकिस्तानी सेना ने सेंदिया में प्रवेश किया, तो वह लगभग सुनसान था। पाकिस्तानी सैनिकों और उनके स्थानीय सहयोगियों ने गांव को लूट लिया और आग लगा दी। एक बुजुर्ग महिला उस आग में जिंदा जल गई। शेष ग्रामीणों को बंदी बना लिया गया, उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई और उन्हें गांव में छह अलग-अलग स्थानों पर मौत के घाट उतार दिया गया। 

बंगाली हिन्दू इतने अभागे रहे है कि जब सेना की टुकड़ी रवाना होने वाली थी, एक बकरी के रोने की आवाज ने सेना का ध्यान को गन्ने के खेतों की औऱ कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने अपने अर्ध-स्वचालित हथियारों से खेतो की तरफ अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें सौ से अधिक बंगाली हिंदुओं की मौके पर ही मौत हो गई। छह दिन बाद पांच और व्यक्ति मारे गए। बाद में, बचे लोगों ने छह सामूहिक कब्रों में शवों को दफना दिया।

नरसंहार के बाद अधिकांश हिंदू भारत भाग गए उनकी संपत्तियों को रजाकारों और उनके समर्थकों (स्थानीय जिहादियों) ने हड़प लिया । धीरे-धीरे इस क्षेत्र में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए। बाद में बैद्यडांगी गांव नदी के कटाव के कारण लुप्त हो गया और लुप्त हो गयी बंगाली संस्कृति उस क्षेत्र में ।

हालांकि, कुछ मूर्ख आज भी 1971 को जीत ही समझते है जबकि ये वर्ष बंगला भूमि के लाल रंग होने का साल था वो भी 35 लाख हिन्दुओ के कत्ल से और 5 लाख बलात्कारों से ।


✒️ निखिलेश शांडिल्य

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