बंगाली हिन्दू हिन्दू नरसंहार क्रम में ...20th मई 1971 चुकनगर नरसंहार 12000 हिन्दू



25 मार्च से चला ऑपेरशन_सर्चलाइट मई के मध्य तक आते आते अपने विकराल रूप में आ गया था । अधिकांश हिन्दुओ को समझ आ चुका था कि 23 साल बाद जम्हूरियत में चुनावों की नौंटकी करवाने वाले याह्या भी सिर्फ पँजाबी मुसलमानों की ही हुकूमत चाहता था, बंगालियों की नही । बंगालियों को बहुमत मिलने के बाद भी वो उन्हें सत्ता सौंपने को तैयार नही होता । 
और उन्हें ये भी थोड़ी देर ही सही पर समझ आ गया था कि रोज रोज अपने भाषणों में "माई पीपल माई पीपल" से बुलाने वाला मुजीबुर्रहमान भी अंत मे था तो वही मुसरामनी खून ।
उसके नारों ने सभी बंगालियों के खून में उबाल तो ला दिया था पर उसके इस प्रलोभन में सिर्फ #दिग्भ्रमित_समाज समाज ही आया । और ये नारा था .....
"अमार देश - तुमार देश, बंग्लादेश बंग्लादेश" 
"स्वाधीन करो-स्वाधीन करो, स्वाधीन करो ।

इस नारे के प्रभाव में हजारो हिन्दुओ ने मुक्ति आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया और ये साबित करना शुरू कर दिया कि अकेला जोगिंद्रनाथ मण्डल ही काफी नही था बर्बाद-ऐ-हिन्दू हेतु, हर शाख पर मूरख बैठा है । और आज भी ऐसे मूर्ख हिनुओ की कमी नही जो उस मुक्ति आंदोलन को अपना आंदोलन मानते है । एक ऐसी ही अतिउत्साही बंगा बहन मिल गयी थी एक मित्र की पोस्ट्स पर जिन्हें हवा भी नही थी कि 1971 में क्या हुआ था ।
खैर अब आगे बढ़ते है, जहाँ लगातार हत्याएं, बलात्कार जारी थे और मई के इस सप्ताह में सबसे खतरनाक हत्याकांड हो चुके थे पर 20 मई को चुकनगर में हुई 10-12000 लोगो की हत्या ने पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए । यहॉं पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि ये नरंसहार शुरू पाकिस्तान आर्मी ने किए थे जिनको मुजीबुर्रहमान पूरी तरह भड़का चुका था, कभी उनकी बिजली कटवाकर, कभी उनका पानी बंद करवाकर और कभी उन पर हमले करवाकर । 1971 के नरंसहार के लिए जितना याह्या खान दोषी है उससे कही ज्यादा बड़बोले मुजीब ।उसे ही अगला गाँधी और जिन्ना बनने का शौक चर्राया था जो जल्द ही 1974 तक पूरा हो गया ।

पाक सेना नरंसहार करते वक्त हमेशा 10-40 के बीच की महिलाओं को छोड़ देती थी और उन्हें जानवरो की तरह हाँककर शिविर में बांध दिया जाता था । जब सेना अगले पड़ाव की तरफ बढ़ती थी ज्यादा उम्र की स्त्रियों को स्थानीयो जिहादियों में बाँट देती थी । इस लालच में धीरे धीरे उनके साथ स्थानीय लोग जुड़ने लगे जो उंनको सूचना आदि देने लगे जिसके बदले में उनको #गोनिमोटर_माल (हिन्दुओ की स्त्री सावर्जनिक सम्पत्ति) मिलता था । जब पुरा गाँव साफ हो जाता था हिन्दुओ के जले हुए घरों और खेतों पर भी स्थानीय जिहादियों की टीम कब्जा कर लेती थी । #लक्ष्य_केन्द्रित_कौम अपनी योजनाओं के तहत कार्य कर रही थी और हिनु अभी भी उन्हें अपना मुक्ति आंदोलन का साथी समझ रहे थे ।

हत्याए और बलात्कार जारी थे और इसी बचने की नाकाम कोशिश करते हुए वो हिन्दुभूमि की तरफ भाग रहे थे । चुकनगर भारतीय सीमा से सटे खुलना के डुमुरिया में एक छोटा सा शहर है। युद्ध शुरू होने के बाद आसपास के ग्रामो और शहरों से लोग चुकनगर की तरफ आने लगे थे । उन्होंने भोदरा नदी को पार किया और सतखिरा रोड का उपयोग कर सीमा पार करने के लिए चुकनगर पहुंचे। 15 मई 1971 तक आस-पास के इलाकों से बड़ी संख्या में शरणार्थी चुकनगर में इकट्ठा हो गए थे जहाँ से उन्हें भारत पास नजर आ रहा था । पर जोगिंद्रनाथ की चाल में फँसे बंगाली हिन्दू कब तक खैर मनाते । 20 मई को लगभग 10:00 बजे, अर्ध-स्वचालित राइफलों और हल्की मशीन गनों से लैस 25-30 पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों का एक समूह करीब तीन ट्रकों पर भरकर आ गया। वे चुकनगर बाजार के बाएं कोने पर झौताला (तब पथखोला के नाम से जाना जाता था) नामक स्थान पर रुके। फिर उन्होंने पथखोला मैदान में गोलियां चलाईं और बाद में चुकनगर बाजार चले गए वो लगभग शाम 3 बजे तक फायरिंग करते रहे।

नरसंहार से बचने के बड़े पैमाने पर व्यर्थ प्रयास में नदी में कूदते ही कई लोग डूब गए। इस तरह गोलियों और डूबकर मरने वालों की सँख्या लगभग 12000 तक पहुँच गयी ।

✒️ निखिलेश शांडिल्य 


टिप्पणियाँ

  1. बहुत हृदय विदारक विस्तृत जानकारी मिली , लेकिन आज भी ये सब पढ़कर लग रहा है कि शायद अभी भी हमलोग ऐसी ही स्थिति में हैं कहीं कुछ नहीं बदला है ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें