बंगाली हिन्दू नरसंहार के क्रम में 22 मई को भीमनाली और मध्यपारा नरसंहार

22 मई को भीमनाली और मध्यपारा नरसंहार मे हजारो हिन्दुओ को मारने के बाद नम्बर आता है बुरुंगा का । बुरुंगा गाँव वर्तमान बांग्लादेश के सिलहट जिले में उस्मानीनगर के पास स्थित है ।
 
25 मार्च 1971 को #ऑपेरशन_सर्चलाइट पाकिस्तान की सेना ने अकेले शुरू किया था पर अब उनके साथ स्थानीय जिहादियों के काफी सन्गठन लग चुके थे, जिसमें रजाकार, अल बदके, अल शम्स और पीस पार्टी प्रमुख थी । इन संगठनों की भर्ती भी पाक सेना स्वयं ही करती थी सिर्फ नाम और शक्लें देखकर । 

दुनिया आज भी इस गलतफहमी में है कि मुजीबुर्रहमान ने बड़ी क्रांति की थी पाक सेना के खिलाफ, और भारत (असल मे रूस) की मदद से जंग जीत गया । पर वास्तव में कहानी बिल्कुल अलग थी । पाक सेना के साथ ज्यादा स्थानीय लोग थे क्रांति को दबाने में, और जाहिल मुजीब के साथ कम। स्थानीय जिहादी जनता को एक मोटिवेशन मिल गया था कि हिन्दुओ का कत्ल करो तो फायदा ही फायदा होगा - 

- हिन्दुओ की सम्पत्ति उनकी
- हिन्दुओ की स्त्रियां उनकी (#गोनिमोटर_माल)
- एक और जिहादी मुल्क 

इसी क्रम में पाक सेना पीस पार्टी में भर्ती करने 25 मई को बुरुंगा पहुँची । पाकिस्तानी सैनिकों के आगमन को लेकर बुरुंगा और आसपास के गांवों में तनाव बढ़ गया। शाम 4 बजे वे स्थानीय यूनियन के अध्यक्ष इंजद अली से मिले। बैठक के बाद, बुरुंगा और आसपास के अन्य गांवों में ढोल पीटकर घोषणा की गई कि 26 मई की सुबह एक शांति समिति का गठन किया जाएगा और बुरुंगा हाई स्कूल के मैदान से 'शांति कार्ड' वितरित किए जाएंगे।

डर के बावजूद, बुरुंगा और आसपास के गांवों के निवासी अगले दिन सुबह 8 बजे से बुरुंगा हाई स्कूल के मैदान में इकट्ठा होने लगे। स्कूल परिसर में एक हजार से अधिक लोग जमा हो गए। लगभग 9 बजे, सहयोगी अब्दुल अहद चौधरी और डॉ. अब्दुल खालिक कैप्टन नूर उद्दीन के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी सेना की टुकड़ी के साथ एक जीप में स्कूल के मैदान में पहुंचे। उन्होंने उपस्थिति का मिलान उनके पास मौजूद सूची से किया । 
इस बीच, एक अन्य समूह गाँव में घर-घर गया और पुरुषों को स्कूल के मैदान में इकट्ठा होने का आदेश दिया। 

सुबह करीब 10 बजे उन्होंने भीड़ को हिंदू और मुस्लिम में बांट दिया। हिंदुओं को कार्यालय कक्ष में ले जाया गया और मुसलमानों को स्कूल भवन के अंदर एक क्लासरूम में ले जाया गया। मुसलमानों को कलमा और पाकिस्तानी राष्ट्रगान सुनाया गया और फिर उनमें से अधिकांश को छोड़ दिया गया। शेष मुसलमानों हिंदुओं को को चार के जत्थे में रस्सियों से बांधने के लिए कहा गया। कुछ हिन्दू डर के मारे रोने लगे। इस बीच, बंदी हिंदुओं में से एक श्रीनिवास चक्रवर्ती एक खिड़की खोलने में कामयाब हो गया था। बंदियों में शामिल बुरुंगा हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक प्रीति रंजन चौधरी, एक हिंदू युवक रानू मालाकार के साथ खिड़की से बाहर कूद गए। पाकिस्तानी सेना ने उन पर गोलियां चलाईं, लेकिन वे भागने में सफल रहे।

लगभग दोपहर के समय, हिंदुओं को स्कूल की इमारत से बाहर मैदान में लाया गया और उनमें से नब्बे लोगों को तीन समूहों में खड़ा कर दिया गया। उन्हें कप्तान नूरुद्दीन के कहने पर तीन हल्की मशीनगनों से दागा गया । इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने शवों पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। सिलहट न्यायाधीशों की अदालत के एक प्रमुख और प्रभावशाली वकील राम रंजन भट्टाचार्य, जो भी पाकिस्तानी सेना द्वारा आयोजित किए जा रहे थे, को जाने दिया गया। जैसे ही वह अपनी कुर्सी से उठे, उन्हें पीछे से गोली मार दी गई। उनकी तत्क्षण मृत्यु हो गई। नरसंहार के बाद, अब्दुल अहद चौधरी और डॉ अब्दुल खालिक के नेतृत्व में आठ से दस सहयोगियों के एक समूह ने गांव को लूट लिया और महिलाओं के साथ बलात्कार किया। अगले दिन, पाकिस्तानी सेना फिर से बुरुंगा पहुंची। उन्होंने चेयरमैन इंजद अली की मदद से कुछ मजदूरों को काम पर रखा और हिंदू लाशों के जले और आधे जले अवशेषों को बुरुंगा हाई स्कूल के बगल में एक गड्ढे में गाड़ दिया।

मृतकों की संख्या पर कोई सहमति नहीं है, अनुमान 71 से 94 के बीच है। उत्तरजीवी श्रीनिवास चक्रवर्ती के अनुसार, 94 लोग मारे गए थे। हालाँकि, यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि नरसंहार में 78 हिंदू मारे गए थे।

#smriti_lest_we_forget

✒️ निखिलेश शांडिल्य

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