कर्नाटक चुनाव मे हार प्रमुख कारण क्या थे कर्नाटक की हार पर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को आत्म चिंतन करने की क्यों ज़रूरत है ? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

कर्नाटक विधानसभा की सभी सीटों के रूझान आ गए हैं । चुनाव आयोग द्वारा जारी रूझानों में कर्नाटक में बीते 38 सालों का ट्रेंड बदलता नहीं दिख रहा । ट्रेड के अनुसार एक बार फिर राज्य में एक एक बार सरकार रही है ।  


रुझानों में कांग्रेस ने बड़ी बढ़त बनाते हुए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। कांग्रेस ने 123 सीटें जीत ली है और अभी 13 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं भाजपा 56 सीट जीत गई है और 8 सीटों पर आगे चल रही है।

भाजपा सरकार के कई कैबिनेट मंत्री पीछे चल रहे हैं। बेंगलुरु में भी भाजपा पिछड़ गई है। वहीं, जेडीएस केवल 22 सीटों पर आगे है। 


कर्नाटक चुनाव के परिणाम सामने आ चुके अब हार कारण समीक्षा करने की बहुत आवश्यक क्योंकि कर्नाटक में भाजपा अपने गढ़ की भी सीटें हारी है इसलिए इस हार के बाद कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं जिसका ज़बाब शीर्ष नेतृत्व और स्थानीय नेतृत्व को देना चाहिए । 


पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा क्यो हटाया गया ? 




कर्नाटक लोकप्रिय मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को बिना कारण के हटा देने का प्रयोग भाजपा के लिए भारी पड़ा क्योंकि बीएस येदियुरप्पा के स्तर का जनाधार वाला नेता कर्नाटक भाजपा में नहीं था जो उनकी कमी पूरी कर सके फिर केंद्रीय नेतृत्व यह आत्मघाती प्रयोग किया जिसके कारण पार्टी को अपने गढ़ की भी सीट हारनी पड़ी वर्तमान में भाजपा सेकंड लाइन लीडरशिप की कमी झूस रही है जिसका खामियाजा कई राज्यों में उठाना पड़ सकता है । 

भाजपा को इस तरह के आत्मघाती प्रयोग करने से बचना चाहिए जब तक राज्यों सेंकड लाइन की लीडरशिप तैयार नहीं हो जाए उसके लिए संगठनात्मक संरचना में बड़े बदलाव करना होगा लोकल लीडरशिप से खुली छूट देनी होगी कांग्रेस के आलाकमान कल्चर से भाजपा को बचना चाहिए क्योंकि कांग्रेस आज जो दुर्गति है उसके सबसे बड़ा कारण आलाकमान कल्चर ही वही कल्चर भाजपा आने लग गया है  

भाजपा को इस तरह के आत्मघाती प्रयोग करने से बचना चाहिए जब तक राज्यों सेंकड लाइन की लीडरशिप तैयार नहीं हो जाए उसके लिए संगठनात्मक संरचना में बड़े बदलाव करना होगा लोकल लीडरशिप से खुली छूट देनी होगी कांग्रेस के आलाकमान कल्चर से भाजपा को बचना चाहिए क्योंकि कांग्रेस आज जो दुर्गति है उसके सबसे बड़ा कारण आलाकमान कल्चर ही वही कल्चर भाजपा आने लग गया है   
जिसके कारण से मजबूत से मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप को बिना कारण दायित्व मुक्त कर देती जिसका राजनैतिक नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है किसी पार्टी के लम्बे दौर की राजनीति करनी है तो इस तरह की राजनीतिक बुराईयों से दूर रहना चाहिए नये लोगों को अवसर देने का प्रयास करना चाहिए जहां ज़रुरी नहीं है जहां संगठन कमजोर वहां पर संगठन विस्तार किए बिना आत्मघाती प्रयोग से बचना चाहिए।  
लिंगायत समुदाय की नाराज़गी भाजपा को पड़ी भारी  

उतरी कर्नाटक की सात जिलों में कांग्रेस की जीत की बंपर जी भाजपा के उसके गढ़ में बड़े झटके रूप में देखा जा रहा है । क्षेत्र की 56 में से 40 सीटों पर भाजपा कब्जा था लेकिन मतगणना के बाद कई सीटों पर पीछे चल रही थी । 
बेलगावी, उत्तर कन्नड़, हावेरी, गडग, विजयपुरा, बागलोकोट और धारवाड़ में लिंगायत समुदाय की उपस्थिति अधिक है। यह समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा का समर्थक रहा है, लेकिन नतीजों से लगता है कि उसने इस बार कांग्रेस का समर्थन किया है।  

भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर भले ही हुबली-सेंट्रल धारवाड़ की इस सीट से हार गए, लेकिन जिस तरह से उन्हें भाजपा छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, वह लिंगायत समुदाय को अच्छा नहीं लगा। 


लिंगायतों के अखिल भारतीय वीरशैव समुदाय ने भी खुले तौर पर कांग्रेस को अपना समर्थन दिया और चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए यह मनोबल बढ़ाने वाला था। 


पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे। वह बेलगावी जिले में अथानी की अपनी पारंपरिक सीट से जीत गए हैं। सावदी लिंगायत समुदाय के एक शक्तिशाली नेता हैं और उन्हें भी पार्टी के बड़े नेताओं बी.एल. संतोष और बसवराज बोम्मई द्वारा भाजपा छोड़ने के लिए विवश किया गया।

इन दोनों बड़े नेताओं के भाजपा छोड़ने से वर्षो से भाजपा का गढ़ रहे उत्तर कर्नाटक में भगवा पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हुआ है। यह पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए कई सवाल खड़े करेगा 

 

नकारात्मक चुनाव कैंपेनिंग का प्रभाव नतीजों में दिखाई दे रहा है 


चुनाव प्रबंधन और बूथ मैनेजमेंट के लिए जाने जाने वाली भाजपा के कांग्रेस 40% प्रतिशत कमीशन के आरोप का जबाव देने असमर्थ रही कांग्रेस आरोप का भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के ऊपर चिपक गया कर्नाटक में भाजपा स्थानीय मुद्दों पर बात करने से बचती रही और राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव कैंपेन करने का प्रयास किया जिसके कारण भाजपा स्थानीय नेतृत्व आम मतदाता समूह से पूरी तरह से दूर होता गया जिसका प्नभाव परिणाम में परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है ।  



हिंदू हित जुड़े मुद्दों की अनदेखी क्या भाजपा को भारी पड़ी है ?


 
कर्नाटक चुनाव के परिणाम बाद राजनैतिक चर्चाओं बजार गर्म हो चला क्या भाजपा के कोर वोटर का केंद्रीय नेतृत्व और स्थानीय नेतृत्व से मोह भंग हो रहा है ? क्या हिंदू हित के हित के मुद्दों की अनदेखी भाजपा को भारी पड़ी रही है ? ऐसे ऐसे प्रश्न खड़े होने के कई कारण उसमें सबसे बड़ा कारण केन्द्रीय नेतृत्व की हिंदू हित मुद्दो पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाना शामिल हैं । क्योंकि भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थको कुछ नहीं चाहिए उन्हें सिर्फ सुरक्षा शांति और राष्ट्र संस्कृति उत्थान के लिए नीतियां बनाने की अपेक्षा भाजपा मतदाता समूह रखता है । भाजपा का मतदात समूह कभी बिजली पानी सड़क जैसे मुद्दों पर कभी मत नहीं देता उनकी प्राथमिकता और अपेक्षाएं बहुत ज़्यादा होती है उन अपेक्षाओं की जब पूर्ति होती दिखाई नहीं पड़ती तो वह घर बैठ जाता है या भाजपा को सबक सिखाने पर उतारू हो जाता है 

क्या भाजपा का कार्यकर्ता और समर्थक चुनावी हिन्दुत्व से पूरी तरह से उब चुके है ? क्योंकि भाजपा केंद्रीय और स्थानीय नेतृत्व चुनाव के समय हिंदू हितों की बड़ी बड़ी बाते करते है । सत्ता आने के बाद सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास और पसमांदा तृप्तिकरण की बातें करने लगते हिंदू हित मुद्दो पर कोई ठोस कदम नहीं उठाते हुए दिखाई नहीं देते भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक जब यह देखता जिन मुद्दों के लिए वोट किए उन मुद्दों पर 9 साल केन्द्र की सत्ता में बैठी भाजपा सरकार ने हिंदू  हित मुद्दो पर न कोई ठोस कदम उठाया न उठाते हुए दिखाई पड़ रहे सिर्फ सतही प्रयास किए जा रहे हैं । 


 
राष्ट्रीय राजधानी  क्षेत्र को कुछ मजहब विशेष के लोगों द्वारा बंधक बना लिया गया और दिल्ली को दंगे आग झोक दिए 303 सीटों वाली सरकार ने दंगाईयों के सामने दिल्ली पुलिस असह होकर आत्मसमर्पण मुद्रा में खड़े होने को मजबूर कर दिया  और सरकार ने दंगाईयों के  उपर कोई कार्यवाही करने हिम्मत नहीं दिखाई कोराना नहीं आता तो सीएए वापस लेना पड़ता शाहीन बाग आंदोलन खत्म नहीं होता । उसी तरह से आत्मसमर्पण किसान आंदोलन के समय किया तथाकथित किसानो लाल किले से तिरंगे को उतारकर पांथिक झंडा लगा दिया गयी केन्द्र सरकार अमित शाह जी पुलिस देखती रह गई । चुनाव जीतने के लिए कृषि कानून वापस ले लिए जो देश के किसानों के लिए बहुत हित कारी थे । जब भाजपा मतदाता समूह देखता होगा बंगाल में चुनाव के बाद सतारूढ़ दल टीएमसी गुंडों और मजहब विशेष के लोगों ने भाजपा कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के हमले किए फिर भी केन्द्रीय नेतृत्व के कान में जूं तक नहीं रेंगी इतनी बडा नरसंहार बंगाल में हुआ उस पर न प्रधानमंत्री जी ने कुछ कहा ग्रह मंत्री अमित शाह ने कुछ कहा न पार्टी के किसी अन्य नेता ने कुछ कहा जिसके कारण भाजपा आम समर्थक मन में यह आता होगा जिनके लिए हम रात दिन लड़ते हैं जब जरूरत होगी तो पार्टी भाग खड़ी होगी हमारी मदद भी नहीं करेगी इसलिए ऐसी पार्टी समर्थन करने से क्या लाभ होगा ।  
इस्लामिक देशों के दबाव में आकर अपनी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पार्टी से निकाल देती है नूपुर शर्मा के वक्तव्य के बाद मज़हब विशेष के लोग देश भर हिंसा तांडव करते हैं और नुपुर शर्मा के समर्थन करने पर देश भर हत्याएं होती है और शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साध लेता है । इसी तरह की दो घटनाएं कर्नाटक में हुई थी बंजरग दल के कार्यकर्ता हर्षा हिंदू एवं प्रवीण नेतारू की हत्या मजहब विषय के लोगों द्वारा कर दी जाती है उस पर भी शीर्ष नेतृत्व और स्थानीय नेतृत्व चुप्पी साध लेता है एक चोर तबरेज अंसारी की हत्या कर दी जाती है तो हमारे प्रधानमंत्री सदन में उसके लिए आंसू बहाते हैं और 9 साल में हजारों हिंदू युवाओं और हिंदू महिलाओं की मज़हब विशेष के लोगों द्वारा हत्या बलात्कार धर्म परिवर्तन करवाया जाता है उस पर हमारे प्रधानमंत्री कुछ नहीं कहते सारे आम गौ हत्या मजहबी और कांग्रेस के एक विधायक गौ हत्या करते हैं उस पर कुछ नहीं कहते एक अखलाक की दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से हत्या हो जाती है उस पर हमारे प्रधानमंत्री जी कहते गौ रक्षक गुंडे है जब यह दोहरापन भाजपा समर्थक और हम हिन्दू देखता होगा उसे कितना आहत करता होगा । 

 चुनाव के समय में जय जय बंजरगबली याद आ जाते हैं चुनाव के बाद हिंदू मारता रहे कटता रहे शीर्ष नेतृत्व कोई मतलब नहीं है क्योंकि हिंदू की मजबूरी है भाजपा को वोट देना इसलिए हिन्दूओ के लिए कुछ नहीं करेंगे फिर हिंदू वोट देगा । भाजपा के नेताओं के इस रवैए से आम हिन्दू बहुत  व्यथित  हैं इसलिए  भाजपा केंद्रीय नेतृत्व अपने रवैए बदलाव  लाने  की जरूरत है । जो एक बार हिंदू समाज का विश्वास भाजपा से उठ गया हिंदू मर भी जाएगा तो भाजपा वोट नहीं देगा इसलिए  हिंदू हित के लिए ठोस कदम  उठाए नहीं  तो आने वाले विधानसभा चुनावों में और लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुत मुश्किल होने जा रही है । 


 राजनीति में सबकुछ स्थाई कभी नहीं रहता है ऊंट कब करवट बदल लेगा यह पता भी  नहीं चलेगा कुता पाल ले बिल्ली पाल ले यह भ्रम न पालें हिंदू विकल्प हीन है हिंदू मे उसी आचार्य चाणक्य रक्त प्रवाहित हो रहा है । आचार्य चाणक्य वही है जो एक साधारण से बालक को भारत का सम्राट बनाकर दम लेते है ।  इसलिए हिंदू समाज की धैर्य की परीक्षा संघ भाजपा न ले तो  उनके लिए बेहतर रहेगा  । इसलिए हिंदू समाज का प्रहरी बनकर काम करें लेकिन ठेकेदार बनने का प्रयास न करें ।

 हिंदू सनातन धर्म अनादि काल से है अनादि काल काल तक रहेगा सरकारे आएगी जाएगी हिंदू समाज अपनी लड़ाई लड़ना स्वय लड़ने की क्षमता रखता है जब संघ नहीं था भाजपा भी नहीं थी  हिंदू समाज ने इस्लामिक आक्रांताओं से भी लड़ा और उनको भी पराजित किया अंग्रेजों को भी  भारत छोड़ने पर विवश कर दिया  इसलिए हमारे संगठनों हिंदू समाज पुरूषार्थ शंका नहीं करना चाहिए समाज ने उन्हें एक प्रहरी भूमिका दी है उसे निष्ठापूर्वक निभाएं जो हिंदू समाज ठेकेदार बनने का प्रयास करेंगे तो कही के नहीं रहेंगे  । 

भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के पास अभी समय अपनी हार कारणों की समीक्षा करें और बड़े स्तर संगठन में बदलाव करें युवा पीढ़ी को अवसर देने का प्रयास करे सेकंड लाइन लीडरशिप राज्यों में तैयार करे मुस्लिम वोट पाने का मोह छो़ड़े और घर वापसी के लिए योजना बनाकर काम करे और चुनावी  हिंदू बनने का प्रयास नहीं करे चुनावी  हिंदू बनने का प्रयास करेंगे तो जिस तरह से हिंदू समाज ने अपने सिर आंखों पर बैठाया था  समाज उतरने क्षण भर की देरी नहीं लगाएगा इसलिए एक कहावत बहुत प्रचलित सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी इसलिए भाजपा केंद्रीय नेतृत्व एवं स्थानीय नेतृत्व वैचारिक रूप स्पष्ट होना चाहिए पार्टी अन्दर जो विकृतियां दिखाई दे रही है उन विकृतियों को आत्म चिंतन करके जल्द से दूर करे परम वैभवशाली अखंड भारत बनाने के स्वप्न को साकार करने के लिए तन मन धन से समर्पित होकर कार्य करें 





जय श्री कृष्ण 
दीपक कुमार द्विवेदी
प्रधान संपादक
जय सनातन भारत 

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