जीत सदैव धर्म की ही होती है …

जीत सदैव धर्म की ही होती है …

कौरव पक्ष में भी धर्म था उसका नाम विदुर था । पर धर्म को कौरव पक्ष ने सेवक बनाकर रखा था । धर्म की बात नहीं सुनी जाती थी । जब धर्मराज विदुर ने राजा धृतराष्ट्र को सलाह दी कि तुम्हारे पुत्र दुर्योधन इत्यादि कलियुग के रूप हैं अतः युधिष्ठिर को उनका अंश दे दो ..

दुर्योधन कर्ण इत्यादि ने विदुर को तुरंत राज्य से निकाल दिया और कहा कि केवल स्वाँस लेता हुआ यह राज्य से बाहर चला जाये ..

और इस प्रकार कौरव पक्ष ने धर्म का प्रतिकार किया …

दूसरी ओर पांडव पक्ष में भी धर्म था । परन्तु पांडव पक्ष में धर्म को राजा बनाकर रखा हुआ था । युधिष्ठिर से भूल होने पर भी पांडवों ने अन्तिम निर्णय उनके पर डाल दिया ।

और धर्म क्या करता है । धर्म , ईश्वर की शरण लेता है । युधिष्ठिर हर सलाह हर कार्य कृष्ण की सलाह से करते रहे और यहाँ तक कि महाभारत के युद्ध में उन्होंने अनन्त विजय नामक शंख बजाया जिसका अर्थ होता है यदि हमें युद्ध में विजय मिलेगी तो उसका श्रेय केवल और केवल श्रीकृष्ण को मिलना चाहिये ।

मित्रों जिन लोगों को धर्मराज युधिष्ठिर में दोष बुद्धि करनी हो वह समझ लें कि वे धर्म में दोष दृष्टि उत्पन्न कर रहे । युधिष्ठिर को जुआंरी कहकर अपमानित करना कहीं से भी न्याय संगत नहीं है । 

ईश्वर भी जब कौरव पक्ष में बातचीत करने जाता है तो धर्म के घर ( विदुर के घर ) पर ही ठहरता है ।

आपका हमारा सबका पक्ष, धर्म के पक्ष में होना चाहिये…
ईश्वर हमारे संबल सदैव बने रहें । ईश्वर से विमुख होकर हम केवल अपना अधोपतन ही करेंगे ।

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