भारत मे दूध की प्रतिदिन की औसत खपत 64 करोड़ लीटर है और शुद्ध दूध का उत्पादन मात्र 14 करोड़ लीटर होता है।

मतलब की 14 करोड़ लीटर दूध हमे भैंस या गाय से प्राप्त होता है अर्थात बचा हुआ 50 करोड़ लीटर दूध बनाया जा रहा है विभिन्न  कम्पनियों के द्वारा।
आप जो पैकेट पैक दूध लेकर आते हैं बाजार से वह Pasturition की प्रक्रिया से गुजरता है जिसमे की उसके पोषक तत्व अर्थात प्रोटीन की मात्रा खत्म हो जाती है।
अब ध्यान दीजिए यदि किसी प्रोडक्ट में प्रोटीन की मात्रा कम है तो भारत की खाद्य संरक्षा विभाग Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) संस्था उसे मार्केट में लेकर नही जाने देगा।
इसलिए इस समस्या का एक उपाय पूंजीवादी कम्पनियों ने निकाला और उनके हाथ एक जादुई केमिकल लग गया जिसका नाम है मेलामाइन (C3H6N6) जिसमे की 70% से अधिक मात्रा में नाइट्रोजन होती है।
FSSAI में किसी भी खाद्य पदार्थ में पोषक तत्वों का मानक उसमे नाइट्रोजन का प्रतिशत माना गया है और मेलामाइन तो मानो नाइट्रोजन प्रोटीन का खजाना है अतः कम्पनियों ने दूध में मेलामाइन मिलाना सुरु कर दिया।
जिसके परिणाम ये हुआ कि दूध में नाइट्रोजन का प्रतिशत बढ़ गया यहां तक कि बनस्पति दूध और सोया मिल्क में भी मेलामाइन मिलाया जाने लगा जिससे कि उसमें मलाई की एक मोटी परत जम जाती है और हमे लगता है कि दूध बहुत ही अच्छा है जबकि वह दूध नही मात्र एक सफेद घोल होता है जो मानव शरीर मे जहर का काम करता है।
मेलामाइन जिसे की चीनी मिट्टी की प्लेट बनाने के काम मे लिया जाता है या फिर टाइल्स ओर डिस्पोजल आदि बनाने में प्रयोग किया जाता हैं।
इसी मेलामाइन को आपके खाने वाले दूध में मिला दिया गया जिसे की आप ओर आपके छोटे बच्चे बड़े मन से पीते हैं और सोचते हैं कि आप सुरक्षित रहेंगे पर असल मे वह दूध आपको नुकसान ही पहुंचा रहा होता है।
मेलामाइन पुरुषों के शरीर मे एस्ट्रोन बनाता है जो कि एक female enzyme है।
पुरुषों के शरीर मे एस्टेरॉन बनने का मतलब है टेस्टोस्टेरोन male enzyme में कमी आना और अंततः नपुंसकता बढ़ना मेलामाइन sperm count को कम करता है।
जिससे कि मर्दो के वीर्य की शक्ति क्षीण होने लगती है और उसका परिणाम होता है पुत्र/पुत्री का कमजोर होना। 
मेलामाइन मानव शरीर मे कई सारे रोग उतपन्न करता है जैसे कि पथरी,लिवर कमजोर करना ह्रदय रोग आदि।
कई  कम्पनिया अपने दुग्ध उत्पादों में जानवरो की चर्बी तक मिला देती है जिससे कि उत्पाद में चिकनाहट आये और उत्पाद में पोषक तत्वों की भरमार दिखे लेकिन अंत मे ये सब आपको नुकसान ही पहुँचा रहै होते हैं।
Fssai ने मेलामाइन की एक बहुत छोटी मात्रा खाद्य पदार्थो में डालने पर पावंदी नही लगाई है।
इसका एक पैमाना बनाया गया है कि इससे ज्यादा नही होना चाहिए मतलब की भारत मे 70% लोग थोड़ी थोड़ी मात्रा में जहर ले रहा है।
इससे बचने का एक ही उपाय है आप भैंस या फिर देशी गाय का दूध लेना सुरु करें और पैकेट बन्द दूध का प्रयोग खत्म कर दें।
इससे 3 फायदे होंगे।
1.आपको शुद्ध दूध मिलेगा।
2.गौ माता जो कि सड़कों पर घूम रही हैं कि देख रेख होने लगेगी क्योकि आपको उसकी दूध की जरूरत होगी।
3. किसान और गौपालक की आमदनी का स्त्रोत खुलेगा
 कम्पनियों को पैसा देकर जहर पीने से अच्छा है अपने किसान भाई को पैसा दो ओर अमृत पियो।

4. अगर कुछ भी नही कर सकते तो सूखे दूध से दूध तैयार कर लो क्योंकि अधिकतर पैकेटबंड दूध दही पनीर अब सूखे दूध और केमिकल्स से तैयार होता है । कम से कम आपको सस्ता पड़ेगा ,प्लास्टिक कम होगा और आप extra केमिकल्स से बच जायेंगे

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