शॉर्ट विडोयोज रियल फैक्ट

            
           इंस्टाग्राम के रिल्स और यूट्यूब के रिल्स देखने के बाद जो चींजे समझ आयी, आज उसी की समीक्षा करूँगी:-
जब भारत में शॉर्ट वीडियोज के प्लेटफॉर्म लॉन्च हुए तब इन प्लेटफॉर्म पर शांतिदूतों का एकतरफा कब्ज़ा देखा जा सकता था। लगभग 66% टिक-टाकीये इसी शांतिदूत समुदाय से आते थे। और इस प्लेटफॉर्म पर जहाँ "गङ्गा-जमज़मी तहजीब" अनवरत बहती थी, वही शांति के प्रमुख आचार्यों(मौलानाओं) के गुणगान में हरेक तीसरी वीडियोज होती ही थी। 
बात इतने पर ही समाप्त कहाँ हुई, चाइल्ड एव्यूज और ऐसे घृणित कार्यों की बाढ़ सी आ गयी इस प्लेटफॉर्म पर।
जैसा कि यह सब कॉमन है, शांतिदूत(सुअर) जहाँ भी रहते हैं, असीम शांति(बदबू) होती ही है।

राष्ट्रवादी धड़ा को बार-बार अपने विमर्श में इस बात को उठाना पड़ता था कि, हम सब शॉर्ट वीडियोज के प्लेटफॉर्म पर पिछड़ते जा रहे हैं। और शांतिदूतों द्वारा इसका पर्याप्त लाभ 72 हूरों की चाहत के लिए उठाया जा रहा है।
उस समय ऐसे किसी भी शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं था।
टिकटोक की प्रसिद्धि के कारण फेसबुक ने भी इंस्टाग्राम नाम से एक अलग प्लेटफॉर्म पर शॉर्ट वीडियोज का ऑप्सन लॉन्च किया।
वही भारत सरकार ने ऐसे प्लेटफॉर्म को बंद करने का निर्णय लिया, जो भारतीय नियंत्रण को स्वीकारने से मना करते थे।

यह एक इतना भयानक वार था जो शांतिदूतों का बना-बनाया प्लेटफॉर्म उनके हाथ से छीन लिया। 

अब उनके सामने एकमात्र विकल्प था, इस प्लेटफॉर्म का प्रयोग करने का कि वे #VPN प्रयोग करें।
उस समय एक सामान्य "VPN" नेटवर्क की कीमत लगभग 1600 से अधिक की थी। और हमारे शांतिदूत ठहरे पंचरपुत्र। अम्बानी की कृपा से 53 देशों से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त था, अन्यथा कहाँ इतनी कुव्वत थी, जो अपने अब्बा जान से जुड़ पाते। तिनपर ई मोदिया ज़ालिम 1600 रूपया का एक अउर खर्चा बढ़ा दिया।
जहाँ 931 रुपइया कुले खर्च एक शांतिदूत का, वहाँ ई 1600 कहाँ से आता?

और इंस्टाग्राम पर भारतीय खुपिया एजेंसी की नज़र पहले से ही थी। अर्थात बप्पा जान से जुड़े नहीं कि सफाई में विलम्ब होगा नहीं।

इस बात से परेशान होकर, हमारे प्रिय शांतिदूत समुदाय के लोग सरकार समर्थित किसी भी प्लेटफॉर्म पर पहले की भाँति अपना जलवा दिखाने से बचते नज़र आने लगे।
क्योंकि यहाँ उन्हें रातों-रात स्टार बनाने वाली टीम भी नहीं थी। जो वामपंथी विचारधारा के विद्वानों की तरह सृजित की गई थी। अर्थात,

किसी भी शांतिदूत टिक टाकिये को सभी मिलकर उसे फॉलो करें, और उसके विडोयोज को लाइक करें, जिससे उसके व्यूज सबसे हाई हों, और वह बिना खर्च के ही टिकटोक का स्टार बन जाये।
परन्तु उनकी एक इसके पीछे हिडेन पॉलिसी भी रहती है, वह शांतिदूत प्रसिद्ध होगा, जो उनके एजेण्डे को चलाएगा।

नए प्लेटफॉर्म पर आना, और बाकायदा ग्रुपिंग करना, जिसे चाहो उसे प्रसिद्ध कर दो, यह पॉवर हासिल करना वह भी तब, जब खुपिया तन्त्र के दृष्टि में हो। अत्यंत कठिन कार्य था।
इसलिए 

आरम्भिक इंस्टाग्राम और भारतीय शॉर्ट वीडियोज प्लेटफॉर्म पर यह कॉमन रूप से देखने को मिलने लगा कि,

"एक शॉर्ट वीडियोज स्टार" तब बड़ी आसानी से प्रसिद्ध हो जाता था, जब वह #अश्लीलता को धारण करे, या राष्ट्रविरोधी विडोयोज बनाये या संस्कृति के विरुद्ध कोई विडोयोज बनाये।
ऐसा क्यों होता था? 

इसके पीछे मूल कारण यही शांतिदूत समुदाय के शांतिप्रिय लोग थे।
जो यह विचारणा पैदा कर देना चाहते थे कि, शॉर्ट वीडियोज में प्रसिद्धि नग्नता और धर्म विरुद्ध वर्तना से अत्यंत सहज ही प्राप्त हो जाती है।

वही इसका एक और लाभ भी शांतिप्रिय समुदाय को मिल रहा था जिसका वे अपने मन्तव्य में प्रयोग करते थे, अर्थात हिन्दू समुदाय में यह भावना भरना की "हिन्दू लड़कियाँ हैं ही ऐसी, इसलिए उनका पतन हो रहा।" अर्थात
किसी भी छद्म के लिए #हिन्दू_समुदाय प्रतिक्रियावादी न बने।

यह स्थिति तब थी, जब हिंदूवादी धड़ा इन शॉर्ट वीडियोज के प्लेटफॉर्म पर आने से परहेज करता था।
परन्तु जैसे-जैसे इनकी लोकप्रियता बढ़ी, शांतिदूतों की निर्णायक स्थिति में भी गिरावट आने लगी।
और यह गिरावट इस स्तर तक आ चुकी है कि,
अब किसी भी स्टार को प्रसिद्धि चाहकर भी नहीं दे या दिला सकता था।

परिणामस्वरूप 
                वर्त्तमान में भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता को समर्थित शॉर्ट वीडियोज जहाँ सर्वाधिक देखे जा रहे, वही ऐसे स्टार भी प्रसिद्धि पा रहे, जो अपनी संस्कृति और अपने सभ्यता को स्वीकारते हैं।

आज "चाइल्ड एव्यूज" जैसी वीडियोज और नग्नता से भरपूर वीडियोज पूरी तरह से नकारे जाने लगे।
वास्तव में यह सब इतनी आसानी से नहीं हुआ।
यह सब हुआ हमारी वर्त्तमान सरकार की सक्षम नीतियों और उसकी सूझबूझ से।

जो #संख्या के इस खेल को न केवल भलीविधि समझा, बल्कि उस पर व्यापक रूप से प्रहार भी किया।
आज भारतीय IT एक्ट के तहत ही किसी भी प्लेटफॉर्म पर किसी अन्य देश के नागरिकों की संख्या और उनकी एक्टिविटी को संचालित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
जिससे किसी भी प्लेटफॉर्म पर किसी बाह्य शक्ति द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप न हो। 

बाह्य शक्तियों के हस्तक्षेप को बाधित हो जाने के बाद से ही 
इन शॉर्ट वीडियोज के प्लेटफॉर्म से जहाँ #अश्लीलता का विलोपन होता जा रहा, वही #गङ्गा_जमज़मी तहजीब का दिखाई देना भी नगण्य हो चुका है।

परन्तु दुर्भाग्य यह है कि, 
                    अभी भी हमारे छद्म राष्ट्रवादी(वामी) भइया लोगों को वही 19 वाली हरियाली ही दिखाई पड़ रही। 
अब बेचारों के लिए मैं क्या कहूँ, "सावन के अंधे को हरियाली ही नज़र आती है"।

जय श्री कृष्ण
भारद्वाज नमिता 

टिप्पणियाँ