स्पेन ने कैसे मुसलमानों के आक्रान्ता चरित्र को विध्वस्त किया तथा अपने देश के इस्लामीकरण का उन्मूलन किया ?

            जिस कालखण्ड में अरब मुसलमानों ने हिंदुस्थान पर आक्रमण किए थे, उसी कालखण्ड में उन्होंने 'स्पेन' देश को भी पदाक्रांत कर वहां "ओनिएड" नामक खलीफा के आधिपत्य में एक प्रबल मुस्लिम राजसत्ता स्थापित की थी, अर्थात यूरोप के अन्य भागों की भांति स्पेन के ईसाई निवासियों पर भी धार्मिक आक्रमण कर मुसलमान भीषण अत्याचार करने लगे। उन्होंने अनगिनत ईसाई स्त्री-पुरुषों को भ्रष्ट किया या उनका निर्मम वध किया।

            कुछ शतकों के पश्चात मुसलमानों में आपस में ही युद्ध होने लगे। तब यूरोप के फ्रान्स आदि शक्तिशाली ईसाई राष्ट्र की सहायता से तथा 'पोप' के प्रबल प्रोत्साहन से मुसलमानों के राजनीतिक और धार्मिक उत्पीड़न तथा अत्याचारों से त्रस्त स्पेन की ईसाई जनता ने अपने एक पुराने राजवंश के नेतृत्व में मुस्लिम राजसत्ता के विरुद्ध प्रबल विद्रोह किया। अनेक वर्षों तक अनेक युद्ध करने के उपरांत ईस्वी सन की पन्द्रहवीं सदी में स्पेनिश ईसाइयों ने मुस्लिम राजसत्ता का सम्पूर्ण नाश किया। हिंदुस्थान की भाँति स्पेन में भी मुसलमानों की यद्यपि राजसत्ता नष्ट हुई थी, तथापि उनके द्वारा भ्रष्ट किए गए अगणित ईसाइयों पर तथा उनके निवासवाले भू-क्षेत्र पर स्थापित "इस्लामी धर्मसत्ता' उसी प्रकार अबाधित रही। यही नहीं, वह आगे चलकर स्पेनिश राष्ट्र के दो टुकड़े कर डालेगी, इतनी विस्फोटक और भयावह थी। जिन्हें यह संकट आँखों के सामने स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था और जो मुसलमानों द्वारा किये गए धार्मिक अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के अवसर सदैव ढूँढते ही रहते थे, उन स्पेनिश ईसाइयों ने मुस्लिम राजसत्ता की भांति उनकी उपर्युक्त "इस्लामी धर्मसत्ता" का भी सर्वनाश करने का दृढ़ निश्चय किया।

             उन स्पेनिश ईसाइयों के पांवों में हिंदुओं की भांति रोटीबंदी, बेटीबंदी, शुद्धिबंदी आदि धर्माचारों की बेड़ियाँ नहीं पड़ी थी।

             इसीलिए मुसलमानों द्वारा बलपूर्वक भ्रष्ट किए गए उनके मूल ईसाई लोगों को बपतिस्मा देकर शुद्ध कर पुनः ईसाई बनाने का कार्य राजनीतिक युद्धों में विजयी स्पेनिश लोगों के लिए तत्काल पूर्ण करना अत्यन्त सरल था। वहाँ बाधा थी केवल मुस्लिम राजसत्ता और शस्त्रबल की। उसका सम्पूर्ण विनाश करते ही स्पेनिश ईसाइयों ने पूरे स्पेन देश से "इस्लाम धर्म" का पूर्ण उच्छेद करने के लिए विशाल अभियान छेड़ा। मुसलमानों द्वारा भ्रष्ट किए गए सहस्रों ईसाइयों को पुनः बपतिस्मा देने के लिए अखण्ड सत्र प्रारम्भ हुए। जब मुसलमानों ने यत्र-तत्र सशत्र संघर्ष कर इसका विरोध किया, तब स्पेन और भी अधिक क्रुद्ध हुआ। वहाँ की ईसाई राजसत्ता और जनता ने प्रकट रूप से प्रतिज्ञा की कि अब भविष्य में स्पेन में मुस्लिम धर्म के किसी भी व्यक्ति अथवा मस्जिद नामक किसी भी इमारत का अस्तित्व नहीं रहना चाहिए।

          स्वतन्त्र स्पेन के राज्य-शासन ने एक अवधि निश्चित कर पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि उस अवधि के भीतर स्पेन के सारे मुसलमान स्त्री-पुरुष या तो ईसाई धर्म को स्वेच्छा से स्वीकार कर लें या इस देश को सदा के लिए छोड़कर बाहर चले जाएँ। जो मुसलमान निश्चित अवधि में ईसाई भी नहीं बनेंगे और देश भी छोड़कर नहीं जाएंगे, उन सब मुस्लिम स्त्री-पुरुषों का शिरच्छेद निरपवाद रूप से कर दिया जाएगा।

               बर्बर मुस्लिम आक्रांताओं को उन्हीं की रणनीति व घृणित कट्टर धार्मिक नीति या कहिए हूबहू राजनीतिक साम्राज्यवादी प्रतिशोधात्मक कार्यक्रम के बलबूते स्पेनिश ईसाइयों ने अपने राष्ट्र को मुस्लिमविहीन करके विश्व इतिहास में एक अभूतपूर्व अध्याय जोड़ा था।

स्पेन ने जो किया हूबहू अरब-तुर्क बर्बर मुस्लिम गैर इस्लामिक प्रजा के साथ यही करते थे।

विवेक अग्निहोत्री जी "कश्मीर फाइल्स" में 1990 का जो सच दिखा पाये हैं, उसमें इन नीचात्माओं ने मस्जिदों से क्या घोषणाएं की थी ? कश्मीरी हिन्दुओं के रक्त की नदियां कैसे बहाई थी और किस प्रकार एक आधुनिक संवैधानिक लोकतांत्रिक राष्ट्र को नपुंसक बनाते हुए वही सब किया जो 622 ईस्वी से लेकर अब तक करते आये थे !

इस पर शर्म नहीं आती तथाकथित उदार सेकुलर जमात को। स्पेनिश ईसाइयों ने अपने देश को मुसलमानविहीन किया तो इस पर नेहरू जैसे नासमझ औसत दर्जे के इतिहासकार विचारक अपनी पुस्तक "गलिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री" में एक विलाप अध्याय ही लिखते हैं, स्पेन को हजारों गालियां देते दिखते हैं लेकिन मातृभूमि के बंटवारे को सम्पन्न करानेवाले नेहरू, गांधी इसके सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना को पांच लाइन लिखकर कोसते भी नहीं !!


कुमार शिव जी 

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