महापंडित का होना कितना खतरनाक और आत्मघात से भरा कदम रहा है हम हिन्दुओं के लिए :

         राहुल सांकृत्यायन की चर्चित ऐतिहासिक पुस्तक "अकबर" सबको एक बार पलटनी चाहिए।
इसे पढ़कर आत्महीन हिन्दू बौद्धिकों, चिन्तकों, सर्जकों के भावबोध, अंतर्दृष्टि का पता चलता है कि वे कितने बेवकूफ हो सकते हैं।
एक महापंडित कितना बड़ा गधा हो सकता है, सिर्फ पुस्तक की भूमिका पढ़कर कोई जान समझ लेगा !

कैसा अश्लील और आत्ममुग्ध वह नेहरुवियन एरा रहा है जिसमें बुद्धिशौच में प्रवीण लोग सबसे बडे़ ज्ञानी, सबसे बडे़ पंडित माने गए....

इन लोगों ने हिन्दू धर्म और सनातन जीवन धारा को जितनी क्षति पहुंचाई है, उतना तो पचासों औरंगजेब नहीं पहुंचा सकते....

पुस्तक किताब महल प्रकाशन से निकली है।

पुस्तक अकबर को भारत का अवतारी पुरुष घोषित करती है।

महापंडित लिखते हैं -----

            [ "अकबर का रास्ता आज बहुत हद तक हमारा रास्ता बन गया है।

अकबर सोलहवीं सदी नहीं, बल्कि 20 वीं सदी का हमारे देश का सांस्कृतिक पैगम्बर है।

पर, आज भी इसे समझने वाले हमारे देश में कितने आदमी है ?

कितने यह मानने के लिए तैयार हैं, कि अशोक और गांधी के बीच में उनकी जोड़ी का एक ही पुरुष हमारे देश में पैदा हुआ, वह अकबर था ?

अकबर को इससे निराश होने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि उसका ही रास्ता एकमात्र रास्ता था, जिसके द्वारा हमारा देश आगे बढ़ सकता था। आज से 400 वर्ष पहले(14 फरवरी 1556) अकबर भारत के शासन का सूत्रधार बना। 

फरवरी में किसी को मालूम भी नहीं हुआ, कि भारत के लिए यह कितनी महान घटना थी।

आज से आधी शताब्दी बाद 2005 ईस्वी में अकबर का निर्वाण(कहो महापरिनिर्वाण नहीं लिख रहे महापंडित) हुए 400 वर्ष बीत जाएंगे।

आशा करनी चाहिए, उस वक्त इस दिन के महत्व को हमारा देश समझेगा।

यदि इस पुस्तक से हमारे लोग अकबर को कुछ पहचान सकें, तो मैं अपने प्रयत्न को सफल मानूंगा।"

                         ••• राहुल सांकृत्यायन.]

सोचिए ----- हो सकता है कभी माइंड सेट में बदलाव हमारे परिवेश और बुद्धिजीवियों के चिंतन कर्म में ?

अशोक कम से कम बचे हुए थे, उन्हें भी घसीटकर गांधी और अकबर के वृत्तमंडल में डाल दिया महापंडित ने....

अशोक = अकबर = गांधी 

नेहरू = दिनकर = राहुल सांकृत्यायन.

बुद्धिभ्रष्ट = बुद्धिशौच = बुद्धिपिशाच.

इन सबको जब तक हम आप बौद्धिक परिवेश से धकियाते हुए, इनकी मक्कार, शातिर और अर्द्धसत्यो से भरी नितान्त झूठी प्रस्थापनाओं का सन्दर्भ प्रस्तुत करते हुए खारिज नहीं करेंगे, बौद्धिक जनमंचों, विद्यालयी और विश्वविद्यालयी शिक्षण पाठ्यक्रमों में इनके इस फर्जी नैरेटिव्स की असलियत पढ़ाना बतलाना चालू नहीं करेंगे.... आत्मबोध से हीन हिन्दू शिक्षित जनसमूह का बहुमत ऐतिहासिक वास्तविकता से अनभिज्ञ और अनजान बना रहेगा, बल्कि इनके इस कुत्सित, विकृत नैरेटिव्स को पढ़कर कभी भी अपने जातीय सांस्कृतिक संदर्भों को, उस पर हुए अकल्पनीय संघातों को, आत्मघात को, जान ही न पायेगा....

इस फर्जी के झूठे ऐतिहासिक बोध से संस्कारित हिन्दू प्रजाति के लिए सबसे ज्यादा वीभत्स और भयंकर परिणाम इसीलिए अनवरत यह निकलता रहा है कि हमारे राष्ट्र और सनातन धर्म के तीनों सबसे बड़े शत्रुओं ---- (धार्मिक और सामाजिक वर्ग के रूप में इस्लाम और ईसाइयत तथा वैचारिक बौद्धिक रूप में वामपंथी समाजवादी) को आत्मघात व आत्मध्वंस करने पर आमादा बल्कि हिन्दुत्व का विनाश करने के लिए सर्वाधिक उत्सुक और उत्साही शिक्षित हिन्दुओं की करोड़ों की फौज बैठे बिठलाए मिलती रही है...
ये कोबरे गाजी(धर्मयोद्धा, जेहादी) बनकर अपनी ही मातृभूमि और उसके जीवन गौरव के विनाशक जाने अनजाने में बनते चले जा रहे हैं....

यह सबसे ज्यादा मर्मस्पर्शी, बेध्य और "बल्नरेबल सन्दर्भ" है...

हिन्दू प्रजाति और सनातन धर्म का हर हृदय-पथिक अगर इस सबसे बड़ी चुनौती, सबसे बड़े संकट का समाधान सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक, आध्यात्मिक आन्दोलन चलाकर, राजनीतिक सत्ता के माध्यम से साथ ही उसे ऐसा करने के लिए विवश करके पूर्ण कर पायेगा.... बिल्कुल स्वामी रामानन्द, गोस्वामी तुलसीदास और आदिगुरु शंकराचार्य जैसों की तरह पुरुषार्थ दिखलाकर तभी हिन्दू धर्म और उसके मूल सांस्कृतिक आत्मबिंब सुरक्षित रह पाएंगे...

90 से 95 करोड़ हिन्दुओं की एकमात्र भूमि बच पायेगी !

साभार
कुमार शिव जी 

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