2014 के बाद बदल रहा भारत का परिदृश्य।

 "2014 के बाद बदल रहा भारत का परिदृश्य"
      - आशुतोष द्विवेदी
 
कांग्रेस का संवैधानिक राष्ट्रवाद बनाम भाजपा का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद।
एक मजबूरी से तुष्टीकरण की ओर बढ़ा दूसरा मजबूती से तुष्टीकरण का विरोध किया।
वैसे वर्तमान कांग्रेस पूरी तरह विचारधाराहीन हो चुकी है।पिछले दशक में आप लोगों ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन देखा है जो अभी तक बरकरार है।कुल मिलाकर अल्पसंख्यकों का इतना तुष्टीकरण किया गया कि लोगों सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपनाना पड़ा और आने वाले दशकों में बरकरार रहने की प्रबल संभावना है।इस तुष्टीकरण के लिए मुख्य जिम्मेदार कांग्रेस और मुस्लिम-यादव समीकरण वाली पार्टियां है।
  अब आते हैं यूपी के जाति की चिंता पर तथा 2022 के परिणाम-
सवर्ण पूरी तरह भाजपा के साथ।
ओबीसी 50-50
दलित-भाजपा की तरफ धीरे-धीरे अग्रसर।
मुस्लिम-सपा की तरफ लामबंद।ओवैसी फैक्टर बेअसर।
कुल मिलाकर भाजपा जातिवाद से उपर उठकर वोट  पायी।कुछ कुण्ठित वर्ग छोड़कर।
साथ ही साथ उन जनप्रतिनिधियों को आत्म चिंतन की आवश्यकता है जो मोदी योगी नेतृत्व के बल पर सत्ता में आए
अब आते हैं #कश्मीरफाइल्स पर
वैसे 2014 के बाद से ही यह साफ नजर आने लगा था कि एकाधिकार वालों और परिवार वालों के बुरे दिन आने वाले हैं।बची कसर को सुशांत विवाद और अर्नब गोस्वामी ने पूरा कर दिया।कश्मीर फाइल्स ने तो छक्के की जगह बरहा(12)लगाया है।बरहा जाकर लगा वामपंथियों पर,तथाकथित बुद्धिजीवियों पर,जेएनयू के तथाकथित छात्रों, प्रोफेसरों पर तथा बालीवुड पर।2014 के बाद इन पर सिर्फ चौका-छक्का लग रहा था। इसमें अहम योगदान राष्ट्रवादियों का है। सबसे बुरा हाल तो वामपंथियों का है।कन्हैया कुमार कांग्रेस  पहले ही ज्वाइन कर चुके हैं। अब इनकी बात लोगों को कौन समझाये।
कुछ कांग्रेसी लोग कश्मीरी पंडितों के समस्या के लिए जनता दल को ही जिम्मेदार ठहरा रहे।अरे पृष्ठभूमि 2 जुलाई 1984 को ही शुरू हो गई थी।इंदिरा गांधी ने जब जम्मू-कश्मीर सरकार का तख्तापलट किया और फारूख अब्दुल्ला के साले को मुख्यमन्त्री बना दिया। जिम्मेदार दोनों पार्टियां है।
मोदी जी ने जनता दल को समर्थन देने वाले तीनों भाजपा नेताओं की कमियों को देखकर अपने आप पर अच्छा काम किया है जो इनके व्यक्तित्व में झलकता है।
अब शिक्षा व्यवस्था और रोजगार की बात
सर्व शिक्षा अभियान का एक साइड इफेक्ट देखने को मिला वह यह कि ढकेली ढकेला हाईस्कूल पास करना।उसके बाद की शिक्षा व्यवस्था से पूरा उत्तर भारत ग्रस्त है।
नई शिक्षा नीति भी आ चुकी है तथा इसका क्रियान्वयन भी प्रारंभ हो चुका है।इसके साथ हमें महात्मा गांधी के विचार को भी महत्व देना होगा कि बच्चों को शिक्षा के साथ किसी विशेष व्यवसाय में भी प्रशिक्षित किया जाए।
हम 60% से ज्यादा युवा वर्ग भारत में हैं।सबको सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती और यहीं सत्य है।जरूरत है कि आप भी स्टार्ट अप इण्डिया के हिस्सा बनें।
हां आप सरकार से बिजनेस करने के लिए उचित वातावरण की मांग करिए।आप के लिए बहुत रास्ते अब भी खुले हैं।
अब बात भारतीय मुसलमानों की-
पहली चीज कि धर्म में आस्था होनी चाहिए कट्टरता नहीं।वास्तविकता यह है कि आस्था कम और कट्टरता ज्यादे है जिसके लिए जिम्मेदार मुख्यतः इस्लामी विद्वान तथा फतवा जारी करने वाले मौलवी साहब लोग हैं जो मुस्लिमों को जागरूक करने के बजाए कट्टर बना रहे हैं।भारतीय मुसलमानों को स्वतः जाग्रत होना होगा।
भारत में वास्तविक अल्पसंख्यकों को डर नहीं लगता जबकि आप संख्या में ज्यादे होकर भी डरते हैं।सच्चाई यह है कि यह एक गढ़ा हुआ नैरेटिव है।भारत में आप रहते हैं और हिन्दुओं का सहिष्णु होना ही आप की सुरक्षा है।बगल के किसी भी देश में आप के समुदाय वाले इतने सुरक्षित नहीं हैं जितना कि आप भारत में सुरक्षित हैं।आपको ब्रेनवाश्ड से बचना होगा।पिछले यूपी को अगर आप मध्यममार्गी बनकर देखेंगे तब समझ में आयेगा कि दंगा क्यों नहीं हुआ।इसका कुछ लोग उदाहरण देते हैं कि एक राजनीतिक दल दंगो में शामिल रहता था।तब सवाल उठता है कि प्रदेश चलाने वाले का पुलिस प्रशासन पर नियंत्रण नहीं था और दंगे ज्यादातर वहीं हुए जहां आप बराबर थे या ज्यादे थे।तत्कालीन सरकार आपकी सुरक्षा भी नहीं कर पाई सिवाय आपको बरगलाने के।जरूरत है आपको संविधान के प्रति निष्ठा की जिससे आप पर कोई संदेह व्यक्त न कर सके।

कुल मिलाकर विगत वर्षों से कई बदलाव तथा उठक-पटक हो रहा है।जरूरत है स्वयं को समय के साथ ढालने की और साथ में कदम से कदम मिलाकर चलने की।वर्तमान परिप्रेक्ष्य से आप सभी अनुभवित हैं।आज के संदर्भ में यहीं सच्चाई है।मार्क्स बाबा अपने घुटनों से भी नीचे की ओर बढ़ चले हैं,उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है परन्तु थोड़ा भी असरदार नहीं है।वर्तमान विश्व में तर्क,विवेक,राष्ट्रीय हित और कूटनीति की प्रासंगिकता है। आधुनिक युग में कोई भी
हिंसात्मक विचारधारा स्वीकार नहीं है।आज हमें व्यवहारिक आदर्शवाद अपनाने की जरूरत है जिसमें सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास, एक भारत श्रेष्ठ भारत तथा नैतिक उत्थान जैसे लक्ष्य निहितार्थ हो।
धन्यवाद।
    -आशुतोष द्विवेदी(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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