शांति की अर्थव्यवस्था जैसे कांवड़ यात्रा या वॉर इकॉनमी या युद्ध की अर्थव्यवस्था




पूरा विश्व तय कर ले शांति की समृद्धि चाहिये अथवा विश्व के अनेक क्षेत्रों में युद्ध करवा कर वॉर इकॉनमी..

प्राचीन काल से ही युद्ध होते आये हैं । युद्ध के मूल में यदि हम जाकर देखें तो “मोह “ “काम” और “ लोभ” इसका मनोवैज्ञानिक और इसका भौतिक कारण टेस्टोस्टेरोन नामक वह हार्मोन है जो कि मुख्यतः पुरूषों में पाया जाता है । 

टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन एक अत्यन्त आवश्यक हार्मोन है और मैं इसके वैज्ञानिक पहलू में न जाकर केवल इसके वॉर इकॉनमी या सत्य सनातन हिन्दू धर्म के पहलू को उठा रहा हूँ ।

हमने आपने अक्सर दो साड़ों को लड़ते देखा है या नर बारासिंहे या नर जानवरों को अक्सर आपस में जूझते हुये देखा है । 

इसको और साधारण ढंग से समझा जाये । जैसे कि आप कोई कुत्ता या कुतिया पालने के लिये ले आते हैं तो यदि कुत्ते को ठीक से नियंत्रित करना है तो उसके अंडे निकलवा दिये जाते हैं ।कुत्ते के अंडे निकलवाने से उसके टेस्टोस्टेरोन में भारी कमी आ जाती है । उस कुत्ते का आक्रमणकारी व्यवहार शांत हो जाता है । वह स्थान स्थान पर अपनी सुगंध छोड़ना ( अपना इलाक़ा बनाना ) कम कर देता है और कुतिया में ऑपरेशन लोग अधिकतर केवल वह गर्भवती न हो जाये इसलिये करते हैं ।

मनुष्य में लोभ और मोह रूपी और दो और दुर्गुण अधिक होते हैं । अतः अंडाशय काटकर मनुष्य का केवल एक तिहाई ही नियंत्रण हो सकता है ( उसके क्रोध और आक्रमण स्वभाव का ) परन्तु मोह और लोभ फिर भी बने रहेंगे । 

मोह काम क्रोध लोभ को कैसे नियंत्रित और संचालित किया जाये इसके लिये सनातन हिन्दू धर्म ( जिसमें बौद्ध जैन भी सम्मिलित हैं ) की एक विधा है और दूसरा दृष्टिकोण है किताबी , अकिताबी , वामपंथी या पूँजीवादी । 

ध्यान रहे मैं सनातन हिन्दू धर्म के दृष्टिकोण से इन चारों को अलग कर रहा हूँ ( किताबी अकिताबी वामपंथी और दक्षिणपंथी पूँजीवादी ) । 

पोस्ट बहुत लंबी हो जायेगी अतः संकेत में दोनों का स्वरूप बता रहा हूँ ..

प्रथम विश्वयुद्ध की इकॉनमी लगभग ३० बिलियन डॉलर 
द्वितीय विश्वयुद्ध की इकॉनमी लगभग ३३० बिलियन डॉलर ( इसमें हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु प्रहार भी सम्मिलित है ) 

और दूसरी बात भी ध्यान रखें कि किसी मनुष्य की मृत्यु का मूल्य इस इकॉनमी या किसी भी वॉर इकॉनमी में सम्मिलित नहीं होता । 

कई वर्षों तक चला वियतनाम युद्ध भी लगभग १०० बिलियन डॉलर से उपर था और अफ़ग़ानिस्तान तथा इराक़ वॉर की इकॉनमी ३ ट्रिलियन डॉलर से अधिक थी । 

केवल डेढ़ वर्षों में युक्रेन को १०० बिलियन डॉलर दिये जा चुके हैं । 
एक बिलियन डॉलर 1,00,000 करोड़ डॉलर के बराबर होता है। अगर हम 100 बिलियन डॉलर को भारतीय रूपये में बदलें, तो यह 7,40,000 अरब भारतीय रूपये के आसपास होंगे।

अब एक प्रश्न उठ सकता है कि १०० बिलियन डॉलर अमेरिका या इंग्लैंड ने किस आधार पर दिये ? 

तो वॉर इकॉनमी के भी वही अंग होते हैं जो कि अन्य इकॉनमी के ..
अमेरिका की कांग्रेस ( वहाँ की संसद ) ने यह धन अप्रूव्ड किया है । अब धन का अर्थ यह नहीं कि डॉलर प्रिंट करके दिया गया है । 

जी नहीं , उसके स्थान पर उस मूल्य के बराबर 

आई टी उपकरण या सर्विसेज़ ( अमेजन का AWS या गूगल ) 
टैंक 
युद्धक विमान 
ड्रोन 
बंदूक़ें 
टैंक्स
कपड़े 
जूते 
दवाइयाँ 
फ़र्स्ट एड के सामान 
सड़क बनाने के उपकरण 
और अमरीका का लगभग हर सांसद इन उद्योगों में से प्रत्यक्ष चंदा लेता है या परोक्ष समर्थन । 

और जब युद्ध समाप्त हो जायेगा तो 
नव निर्माण के उपकरण और नया स्थान युद्ध छेड़ने के लिये । डेमोक्रेसी की जय ? या डेमोक्रेसी के नामवर व्यापार जगत का सब पर नियंत्रण का प्रयास ? आप स्वयम् सोच लें । यहाँ व्यापार का अर्थ छोटे व्यापारी नहीं बल्कि वे व्यापारी जिनमें लोभ के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं । 

जैसा कि हम जानते हैं कि किताबों के आसमान से धरती पर उतरने के पूर्व सनातन हिन्दू धर्मी भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और एक अनुमान के अनुसार संभवतः यह ७५% से अधिक था । 

पर वह शांति की अर्थव्यवस्था किन वस्तुओं पर आधारित थी ? 

०१. पर्व त्योहार 
०२. विवाह इत्यादि १६ संस्कार 
०३. यज्ञ पूजा तीर्थयात्रा 
०४. कावड़ यात्रा या रख यात्रा या कुंभ इत्यादि विशाल आयोजन 

और इसके साथ वाणी को समृद्ध करने के लिये वाक्यपदीय 
शरीर को स्वस्थ करने के लिये चरक 
प्राण क्रिया शक्ति को समृद्ध करने के लिये योग 
और मोह काम क्रोध लोभ को संचालित नियमित करने के लिये 
वेदांत अथवा भक्ति । 

और विस्तार में न जाकर केवल कावड़ यात्रा पर ही हम ध्यान देते हैं ..और इसके आर्थिक पक्ष पर 

काशी वैद्यनाथधाम अथवा हरिद्वार जैसे मुख्य कावड़ यात्रा ही नहीं बल्कि लगभग हर जनपद कीं अपनी अपनी भी कावड़ यात्रा होती है ..

मान लें कि यदि १५-२० करोड़ लोग कावड़ यात्रा कर रहे हैं ( एक दिन से लेकर १२ दिन तक ) ..

तो क्या टी शर्ट या कपड़े का व्यापार नहीं हुआ ? 
भगवा रंग नहीं बिका ?
बाँस की कावड़ नहीं बनी ? 
रोड के किनारे के ढाबों का व्यापार नहीं बढ़ा ? 
पीतल के लोटे इत्यादि नहीं बिके 
फूल माला प्रसाद इत्यादि सैकड़ों वस्तुओं का निर्माण और व्यापार ..

और आप स्वयम् अपनी आँखों से देख लें कि युक्रेन में युद्ध छेड़कर भी पश्चिमी किताबी अर्थ व्यवस्था सुधार नहीं पा रहे हैं उन्हें और युद्ध चाहिये या क्रिसमस की राह देखेंगे कि सामान बिके 

वहीं सनातन हिन्दू धर्मी भारत 
रथ यात्रा 
कावड़ यात्रा 
नाग पंचमी 
रक्षा बंधन 
जन्माष्टमी 
पितृपक्ष 
नवरात्रि 
दशहरा 
दीपावली 
खिचड़ी 
होली 
रामनवमी 
और बीच बीच में अनेक बड़े छोटे पर्व से लगातार अर्थ व्यवस्था को घूमाता रहता है । 

किताबी अकिताबी वामपंथी पूँजीवादी यह चारों के चारों एक हैं और सनातन हिन्दू धर्म के शत्रु ..

जॉर्ज सॉरस या बिल गेट्स जैसे व्यापारियों के लिये मनुष्य के जीवन की कोई वैल्यू नहीं दिखती । 

संघर्ष बड़ा है पर समाधान केवल “ राम “ हैं ।

राम ने मोह रूपी समुद्र का बंधन किया । काम रूपी मेघनाद को मारा । क्रोध मोह रूपी रावण का वध किया । 

अतः हम चिंतन मनन पूर्वक सनातन हिन्दू धर्म को अपने आचरण में आत्मसात् करें ।किताबी अकिताबी वामपंथी दक्षिण पंथी यह सब विनाश के मार्ग पर ही हैं ।

व्यापार जगत यदि लाभ से लोभ की ओर मुड़कर विश्व का नियंत्रण करना चाहेगा तो केवल विनाश की लीला देखेगा ।

भारत , सनातन हिन्दू धर्म के मार्ग पर लौटे और पूरे विश्व को शांति की अर्थव्यवस्था से समृद्ध करे ।

साभार
राज शेखर तिवारी जी 

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