चाक्षुष मन्वन्तर से वर्तमान चतुर्थीयुगी का कृतयुग - भाग १

बहुत अतीत काल की वार्ता है। जल प्लावन आदि दैव प्रकोप से उतर काल की और ब्रह्मा स्वयंभू मनु आदि से परकाल की कथा है। है् यह कथा सच्ची । वैदिक ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है । 

जैमिनीय ब्राह्मण में लिखा है - तीन कुमार थे । रायोवाज पृथुरश्मि और वृहद्विरि । उनमें से प्रत्येक की कामना पूछी गई । पृथु रश्मि ने कहा क्षेत्रकाम है। उसके लिए क्षेत्र दिया गया। वह पृथु वैन्य था । 

अथर्ववेद ८।१०। तथा २०। १४०।५।। में दो पर है। पृथो वैन्य । क्या यही से लेकर उस राजा ने अपना नाम पृथु वैन्य रक्खा । आथवर्ण पैप्पलाद संहिता १६। १३५। २।। में भी पृथी वैन्य पाठ है । अतः पृथु ने अपना नाम पृथी न रख कर पृथु क्यों रक्खा यह चित्य है 


 

१वायु पुराण में स्पष्ट किया गया है कि वैन्य काल वेवस्वत अन्तर में था 

चाक्षुषस्यान्तरेऽतीते प्राप्ते वैवस्वत पुनः 
वैन्यनेन मही दुग्धा यथा ते कीर्तिमान मया।। ।।६३। ९१।। 
२पृथहं वै वैश्यों मनुष्याणा प्रथमोऽभिषिचे । शत ० व्रा ५। ३। ५।।

३अथाब्रवीत पृथुरश्मि क्षेत्रोकमोऽहमस्मीति । तस्मै क्षेत्र प्रायच्छत । सा एव पृथवैन्य ; 

४तस्मै क्षेत्र प्रायच्छत ।स पृथुवैन्य । स एव पृथवैन्य ६२।
वायु पुराण में इसे अत्रि वशंज लिखा है १०७।। ५८।१६- १३६।।  
६ मत्स्य १४५। ९००।  के अनुसार एक भृगु मंत्रकृत था । 

महाभारत और पुराणों पाठो में कुछ अन्तर है । पुराणों में सुनीथा नास्री मृत्यु -दुहिता अङ्ग प्रजापति की पत्नी कही गई है । इस प्रतीत होता है कि पुराणों के मुद्रित पाठों के अनुसार अङ्ग और वेन के मध्य में दूसरा कोई नाम नहीं होना चाहिए । हम समझते हैं महाभारत का पाठ कुछ बिगड़ गया है।  
जय श्री कृष्ण 
 


टिप्पणियाँ