चाक्षुष मन्वन्तर से वर्तमान चतुर्थीयुगी का कृतयुग - भाग २

                      ( साभार प्रतिकात्मक चित्र)

पृथिवी का स्वाभाव है कि मन्वन्तर के पश्चात यह समतल नहीं रहतीं । जल प्लावन और समुद्र क्षोभ के कारण अनेक स्थानों पर शैल आदि निकल आते हैं ।  उस समय नगर आदि कोई विभाग नहीं रहता है । पृथिवी की यह दशा देर तक रही । छठे अर्थात चाक्षुस मन्वन्तर में महाराज पृथु ने पृथ्वी के अधिकांश भाग को समतल बनाया यह मन्वन्तर - विभाग ज्योतिष सम्बन्धी प्रतीत नहीं होता है,प्रत्युत सतयुग का दिखाई देता है। वायु पुराण में चाक्षुस मन्वन्तर में पृथ्वी का समतल होना कह कर फिर तत्काल वैवस्वत मनु काल अन्तर होना कहा है अतः हम निश्चय से इतना कह सकते हैं कि पृथु वैन्य का काल प्राचेतस दक्ष वैवस्वत मनु इक्ष्वाकु पुरूरवा आदि आर्य ऋषियों और राजाओं से पहले का है। मनु इक्ष्वाकु आदि आर्य ऋषियों और राजाओं से पहले का है । 

वेन एक पापी राजा था । वह ऋषियों का क्रोध भाजन बना। उस की मृत्यु हो गई। उसी का पुत्र पृथु था । पृथु की उत्पत्ति दक्षिण पाणि  से विचित्र प्रकार से कही गई है । वह हमारी बुद्धि में नहीं आई । पृथु जन्म की यह कथा अश्वघोष को भी ज्ञात थी। पृथु का इतिहास अवश्य सत्य है । यह पृथु धार्मिक राजा था ।  
पृथुवैन्य का कुछ वर्णन शांतिपर्व २८।१३७-१४२ ।। मे भी मिलता है । पृथु वैन्य की कथा अत्यंत अतीत काल की है । महाभारत के काल से भी यह श्रुति मात्र ही था । अतः इससे अधिक स्पष्टीकरण अभी हमारे पहुंच से परे । इससे आगे इतिहास की पहली रश्मियां हम तक पहुंचती है ।   
पृथु अभिषेक का वर्णन वायु पुराण ६२।१३६।। मे मिलता है 

सोऽभिषिक्तो महाराजो देवैरङ्गिरस सुतै: । 
आदिराजो महाराज: पृथुवैन्य: प्रतापवान् ।। 


१ वायु ६२।१३।। ब्रह्माण्ड पूर्वभाग ,पाद २,३६।१०८ ।।  मत्स्य १०।३।। 
२ मन्वन्तरेषु सर्वेषु विषमा जायते यही । म० शांतिपर्व ५८।१२४।। 
३वायु पुराण ६२।१७०-१७२।। महाभारत दोणपर्व ६१।२७।।  
४वैवस्तेऽन्तरे तस्मिन्सर्वस्यैस्य संभव ।।६१।१७२। 
५ वेन अविनय से नष्ट हुआ। मनुस्मृति ७ ।३४।। 
६ वायु पुराण ६२।१२५ ।। 
७ पृथोश्च हस्तात। 
बुद्वचरित १।१० ।।  
८ श्रुतिरेष परा नृषु । महा ० शा ५८।१२१ ।। 


पृथु वैन्य का प्रदेश - पृथु वैन्य के प्रदेश के सम्बन्ध में हम इतना ही जानते हैं कि उसने मगध और आनूप भूमिया: क्रमशः मागध और सूत को दे दी । अतः उसका राज्य मगध आदि अवश्य होगा  
पुरातन इतिहास और पुराण - पृथु वैन्य काल में मागध और सूत बन गए । वे पुरातन आर्य इतिहास और पुराण को गाते थे । वह पुरानी इतिहास सामग्री थोड़ी सी बच गई है । ऋषियों की कृपा से महाभारत और वायु पुराण में उस का थोड़ा सा अंश मिल जाता है महाभारत युद्ध के आस पास वर्तमान ब्राह्मण ग्रंथों का प्रवचन हुआ और उसी काल में महाभारत और मूल वायु पुराण रचे गए 


जय श्री कृष्ण
सोर्स 
पंडित भगवद्दत्त 
भारतवर्ष का इतिहास
दीपक कुमार द्विवेदी 


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