चाक्षुष मन्वन्तर से वर्तमान चतुर्थीयुगी का कृतयुग - भाग ३ सतयुग अंत में असुर प्रभाव

दैत्य - महाराज पृथु के चिरकाल पश्चात संसार पर असुरों प्रभाव बढ़ने लग गया  मारीच कश्यप के दिति से दो बली पुत्र, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । 
इस प्रकार दनु के पुत्र दानव हुए , हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । 
इसी प्रकार दनु के पुत्र दानव हुए। उन्हो ने पृथ्वी के सब प्रदेश संभाल लिए । वाल्मीकि रामायण में यह भाव स्पष्ट शब्दों में दर्शाया गया है। 
                        
               दितिस्वजनयत पुत्रान् दैत्यांस्तात यशस्विन:।। 
               तेषामियं वसुमती पुरासीत् सवनार्णव ।। , अरण्य काण्ड १४।१५,१६।। 

वैदिक घटनाओं को आंख्यानो के साथ समझाने के लिए उन्हें असुर कहा गया है 
तैत्तिरीय ब्राह्मण में लिखा है । असुराणां वा इयं ( पृथ्वी) अग्र आसीत ।३।२।१।६।।  
दैत्य और दानव प्रजापति कश्यप मारीच के पुत्र थे । उसके पश्चात कश्यप से बारह देवो अथवा आदित्यो का जन्म हुआ । 

बारह देव चाक्षुस मन्वन्तर के अंत अथवा सतयुग के अंत में मारीच कश्यप और दक्ष कन्या अदित के बारह पुत्र जन्मे । वे थे धाता अर्यमा , मित्र वरूण अंश भग इन्द्र विवस्वान ,पूषा पर्जन्य त्वष्टा और विष्णु । ये ही बारह आदित्य या देव कहाए । इन के नाम वेद मंत्रो से लेकर आए रखे गए । 

इस अभिप्राय से ताण्ड्य ब्राह्मण कहता है _ देवाय या असुराध प्रजापतेद्वया: पुत्रा आसन १८।१।२।। असुर ज्येष्ठ और कनिष्ठ थे , यह ब्रह्माण ग्रन्थों में उल्लिखित है 

         कानीयसा एवं देवा ज्यायसा असुरा । शतपथ १४।४।१।१।। 


देवों ने  राज्य मागा - जब देव बड़े हुए तो उन्हो ने दैत्यों और दानवों से कुछ भूमि राज्य मांगा । काठक संहिता में लिखा है असुराणां वा इयं पृथिव्यासीत ते देवा अव्रुवन दत्त नोऽस्या इति । ३१।८।। दैत्यो ने यह बात स्वीकार न की । दोनों में घोर युद्ध आरम्भ हुए । संख्या में ये बारह थे संस्कृत वाङ्ममय में ये संग्राम देवासुर संग्रामो के नाम से प्रसिद्ध है। इन पर उन्ही दिनों ग्रंथ रचे गए । उन्ही ग्रंथों के आधार पर रामायण और महाभारत में राम रावण युद्ध और भारत युद्ध के वर्णनो में देवासुर संग्रामो की उपमाएं पदे पदे दी गई है । 
मंत्रों में इतिहासोक्त देवासुर संग्राम वर्णित नहीं है वेदा मंत्रो देवासुर संग्राम वर्णित है । पर वह आधिदैविक है ऐतिहासिक नहीं । शतपथ ब्राह्मण में लिखा है तस्मादाहुनैतदस्ति यद्दैवासुर यदेदम व्माड्याने उद्यत इतिहासे त्त्वत।।१९१६।९।। 

 
अमृत मंथन इन संग्रामो में चतुर्थ संग्राम आहत मन्यन था । इस कथा अनेक तथ्यों प्रकाश डालती है। इतिहास और पुराण के अतिरिक्त इस का उल्लेख चरक संहिता आदि आर्य ग्रंथों में मिलता है । 
इन्ही देवासुर संग्रामो के विषय में महाभारत के शान्ति पर्व अध्याय ३२ में लिखा है

        इदं तु श्रूयते पार्थ मुद्दे देवासुरे पुरा ।
        असुरा भ्रातरो ज्येष्ठा देवाश्यचापि यवीयस: ।१३।। 
         तेषामपि श्रीनिमिति महानावासीत्समुच्छ्रयं । 
        युद्ध वर्षसहस्राणि द्वात्रिशदभवत्विकल ।१४।। 
        एकार्णवां मही कृत्वा रूधिरेण परिप्लुताम । 
          जघदैत्यांस्तथा देवास्रिदिंव चाभिलेमिरे ।।१५।। 



जय श्री कृष्ण
सोर्स 
पंडित भगवद्दत्त 
भारतवर्ष का इतिहास
दीपक कुमार द्विवेदी 
         
        






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