दक्ष से वैवस्वत मनु तक भाग ४

            (  साभार प्रतिकात्मक चित्र वैवस्वत मनु)


प्राचीन भारत के इतिहास की श्रृंखला के प्रथम भाग में  पृथ्वी के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन किया गया दूसरे भाग में चाक्षुस मन्वन्तर के अंत वर्णन जल प्लावन वर्णन किया गया भाग तीन मे महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी का समतल करने का प्रसंग वर्णन किया गया  भाग चार में वर्तमान चतुर्थीयुगी के कृतयुग में असुरों प्रभाव बढ़ने का और संक्षिप्त देवासुर संग्रामो का वर्णन किया गया है। आज से हम दक्ष प्रजापति से मनु तक आद्य त्रेतायुग का वर्णन किया जाएगा । 

वायु पुराण ८।१५६।। के अनुसार आद्य त्रेता में वनस्पतियों उत्पन्न हुई। उस समय जल प्लावन का प्रभाव हट चुका था । महाराज पृथु की कृपा पुनः वासयोग्य हो गई थी । आर्य इतिहास में अपने प्रारंभ की कुछ घटनाएं सुरक्षित है । उनमें ब्रह्मा के कुछ मानस पुत्रो का उल्लेख है। मानस पुत्रों से यह तात्पर्य है की ब्रह्मा के मन से जिनकी उत्पत्ति हुई है । सृष्टि प्रारंभ में जीवो उत्पति ब्रह्मा जी के मन से हुई थी जिसे मानसिक सृष्टि कहा जाता है  प्रजापति दक्ष के बात मैथुनिक सृष्टि की शुरुआत हुई थी।  


वायु पुराण में ब्रह्रा के 14 मानस पुत्र कहे गए हैं । मस्यपुराण में ब्रह्म के चौदह मानस पुत्र और कई शरीर पुत्र कहे गए हैं । ब्रह्म जी के मानस पुत्रों उत्पत्ति कैसे हुई  ? वायु मत्स्यपुराण विष्णु पुराण में विलक्षण ढंग से बताई गई है ।   ब्रह्म जी के मन से मारिच उत्पन्न हुए, ब्रह्म जी के नेत्र से अत्री उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के मुख से अंगिरस  उत्पन्न हुए ब्रह्मा  जी के कान से पुलस्त्य उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के नाभि से पुलह उत्पन्न हुए  ब्रह्मा जी के हाथ से कृतु  ब्रह्मा जी के त्वाचा से भृगु  उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के प्राण से वशिष्ठ उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के अंगुष्ठ से दक्ष प्रजापति उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के छाया से महर्षि कंदर्भ उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के छाया से देवर्षि नारद उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के इच्छा सनक सनन्दन सनातन और सनतकुमार उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के शरीर से स्वयंभू मनु शतरूपा उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी के ध्यान से चित्रगुप्त उत्पन्न हुए ।    

सृष्टि के आदि में मानसिक सृष्टि चल रही थी प्रजापति दक्ष के काल से  मैथुनिक सृष्टि की शुरुआत हुई दक्ष की संतान परंपरा से राजवंशों की उत्पत्ति हुई । दक्ष का विवाह वीरिणी से हुआ । वह वीरण प्रजापति की असिक नाम की दुहिता थी । दक्ष और असिक्नी की कन्या अदिति थी । दक्ष की दिति दनु आदि और भी कन्याएं थीं । मारीच कश्यप से इनका विवाह हुआ । 

विवस्वान - अदित का पुत्र विवस्वान सूर्य था । इसे आदित्य भी कहा गया है । विवस्वान 12 आदित्यो में एक था । ऋग्वेद १०/७२।८।। मे अदिति के आठ पुत्र कहे - अष्टो पुत्रोसो ।अदिते: विवस्वान का एक पुत्र प्रसिद्ध वैवस्वत मनु था जो वर्तमान में चल रहे सातवें  मन्वंतर के मनु हुए और दूसरे पुत्र का नाम यम । विवस्वान की स्री का नाम सुरेणु संज्ञा वा त्वाष्टी था । पुराणों में जिस प्रकार से विवरण मिलता है उसके अनुसार मारीच कश्यप वैवस्वत अन्तर के आद्य त्रेतायुग में हुआ था। इसलिए हमारा अनुमान कि पृथु वैन्य आद्य  चतुर्थीयुगी में था । सत्य इस से यह परिणाम निकलता है कि आद्य दक्ष सतयुग के अंत और त्रेता के आरंभ में था । 

पृथिवीत्राता कूर्म - शतपथ ब्राह्मण ७५।१।५।। मे इसी कश्यप प्रजापति को कूर्म कहा है कूर्म ने पृथ्वी के एक अंश को जल से बाहर निकाला था राजतरंगिणी और नीलमतपुराण के अनुसार कश्मीर की भूमि पहले जलमग्न थी। महार्षि कश्यप ने उसे जल से बाहर किया था। 

वैवस्वत मनु - इस नाम शतपथ ब्राह्मण १३।४।३।३।। मे स्मरण किया गया है । बाल्मीकि रामायण में स्वयंभू मनु आदि को राजा माना गया है । अर्थशास्त्र के रचयिता आचार्य चाणक्य ने इसे मनुष्यों का प्रथम राजा स्वीकार किया है । इस विषय आचार्य विष्णु गुप्त लिखते हैं की स्वयंभू मनु को सबसे पहले प्रजा ने कर देना शुरू किया । मनु दण्ड आदि व्यवस्था चलाने वाले प्रथम राजा थे ।  

सूर्यवंश -  विवस्वान का पुत्र था । मनु वंश भारत में बहुत व्यापक हुआ । भारतीय प्रजा मानवी अथवा आदित्य की प्रजा है ताण्ड्य ब्राह्मण १८।८।१२।। मे इसी भाव में कहा है । 
   
       आदित्या वाइमा प्रजा: 

सबसे पहले नगर निर्माता स्वयंभू मनु थे अयोध्या नगरी स्वयंभू मनु की बसाई हुई है ।  

विवस्वान मनु और आर्य इतिहास के इतिहास के सजीव व्यक्ति थे भारतीय इतिहास में इन का उल्लेख न करना एक प्रकार से इतिहास की अवहेलना करना है । इन का नाम सुरक्षित रखने के लिए इतिहासकारो का बड़ा उत्तरदायित्व था । ये लोग मंत्रदृष्टा थे । मंत्र आर्य जाति का प्राण है अपने मंत्रदृष्टाओ का कीर्तन आर्य इतिहासकारो के लिए आवश्यक था । विवस्वान ऋग्वेद १०।१३।।  का दृष्टा है। मनु का एक पुत्र नाभानेदिष्ट था । स्वयंभू मनु ने अपने दो सूक्त उसे  दिए । वे नाभानेदिष्ट नाम से प्रसिद्ध हुए । वे सुक्त ऋग्वेद १०।६१,६२, । मनु  भ्राता वैवस्वत यम का भी एक सूक्त 
 ऋग्वेद में विद्यमान है । वह ऋग्वेद के दशम मंडल का चौदहवां सूक्त हैं  


ऋग्वेद के सूक्त महाभारत से करोड़ों वर्ष पहले से विद्यमान थे  जो लोग वेद मंत्रों का काल ईसा से २४०० वर्ष पहले से अधिक पूर्व नहीं मानते , उन्हें तनिक पक्षरहित होकर विचार करना चाहिए और कल्पित भाषा विज्ञान को कल्पना क्षेत्र से परे ले जाकर किसी सुदृढ़ आधार शिला पर स्थापित करना चाहिए । 


जय श्री कृष्ण
सोर्स 
पंडित भगवद्दत्त 
भारतवर्ष का इतिहास
दीपक कुमार द्विवेदी 

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