क्या भारत में सच कहना अपराध है ? कब तक हिन्दू समाज की धार्मिक भावनाओं को आहत किया जाता रहेगा ?

                       (   साभार प्रतिकात्मक चित्र )


      
भारत में सच कहना बोलना और सुनना अपराध हो चुका है कोई भी आकर हिन्दुओं भावनाओं को आहत कर सकता है कोई जेहादी सारेआम हिंदू का गला भी काट सकता है फिर भी इस देश हिंदू के जान माल की कोई अहमियत नहीं है कब तक इस देश में ऐसा चलता रहेगा ? 



जिस देश में हिंदू समाज के विरूद्ध अपराध को जायज़ ठहराने वाला मोहम्मद जुबेर खुलेआम घुमता उसके विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती है। जिस देश में भारत एक राज्य से हजारों की संख्या में हिंदू लड़किया गायब हो जाती है उस घटना का कोई फिल्म बनाता है तो उस फिल्म को प्रोपेगंडा फिल्म बता दिया जाता है।  जिस देश में विदेशी मिडिया में अपने लेखों के माध्यम  से भारत को बदनाम करने वाली राना अय्यूब का कोई बाल भी बांका  नहीं कर पता है । जिस देश  दिलीप मंडल खुलेआम ब्रह्माणो और हिंदू देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करता है  । उसके उपर कोई कार्यवाही होने की बात भी नहीं होती है न कोई FIR होती है । कोई सच बताने का प्रयास करें उसे NSA लगाकर जेल में डाल दिया जाता है । उसी देश में इतिहास छुपे अनुछूए पहलूओ सामने लाने वाला सोशल मीडिया एकाउंट ट्रू इंडोलॉजी को फांसी में लटाकाए जाने की बात की जाती है ?  आखिरी क्या मजबूरी है ? 



ठीक है, 'ट्रू इंडोलॉजी' को फाँसी पर लटका दो लेकिन उससे पहले ये घोषित कर दो कि भारत में कितने ऐसे तथाकथित महापुरुष हैं जिनके खिलाफ हमें न कुछ बोलना है न लिखना है। इस्लाम के पैगंबर का नाम लेने से भी 'सर तन से जुदा' हो जाता है, भारत में ऐसे कितने 'मसीहा' हैं, जिनका नाम लेने से ही फाँसी हो जाएगी? 


जिस देश में भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र पर भी लांछन लगाया जाता हो, हमारे आराध्यों को प्रतिदिन अपमानित किया जाता हो, वहाँ क्या किसी सामान्य व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर बहस नहीं हो सकती? क्या भीमराव आम्बेडकर या ज्योतिबा-सावित्रिबाई फुले के जीवन को लेकर सार्थक चर्चा नहीं हो सकती? उनकी आलोचना नहीं की जा सकती? क्यों? जब छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की जा सकती है तो बाकियों की क्या औकात है इनके सामने? स्वस्थ बहस की परंपरा को खत्म न किया जाए, हर शख्स के नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं पर बातचीत होनी चाहिए, लोकतंत्र में खूब आलोचना होनी चाहिए - इसके लिए फाँसी पर नहीं लटकाया जा सकता है। 



क्या कल को ऐसा समय आ जाएगा कि आम्बेडकर का ये वाला कथन शेयर करने पर भी फाँसी हो जाएगी - "मुस्लिम कभी हिन्दुओं को अपना स्वजन नहीं मानेंगे। वो हमेशा कुरान को राष्ट्र से ऊपर रखेंगे। उनकी वफादारी 'उम्माह' के प्रति है।"जहाँ 166 लोगों का खून बहाने वालों में शामिल मोहम्मद कसाब जैसे आतंकी को भी फाँसी के लिए 4 साल इंतजार करना पड़ा हो, देश के लोकतंत्र के सबसे बड़े स्थल संसद भवन पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फाँसी देने में 11 साल लग गए हों, वहाँ एक इतिहासकार को फाँसी पर लटकाए जाने की बात की जा रही है? जबकि वो देश का एक नागरिक है, जो अपनी बात रख रहा है उद्धरण और सबूतों के साथ।




क्या आप तथ्यों से इसका जवाब देने में असमर्थ हैं? क्या आपके पास जवाब देने के लिए तर्क और सबूत नहीं हैं? इतिहास से उद्धरण दीजिए, बात को काटिए - लेकिन फाँसी पर लटकाना...?


जो लोग रात दिन अभिव्यक्ति आजादी का झंडा बुलंद करते हुए घुमते है वो लोग बताए क्या इस देश में हिंदू आस्था को अपमानित करने पर FIR किया जाता है तो अभिव्यक्ति स्वतंत्रता हनन होने लगता है वही दूसरी तरफ कोई हिन्दू तर्क और तथ्य के सच सत्य बोलने का प्रयास करें तो उसकी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का गला घोंटने का प्रयास क्यों किया जाता है ?  क्या इस देश में अभिव्यक्त ठेका एक गिरोह विशेष ने लिया है ? क्या हिंदुओं कोई अभिव्यक्ति नहीं है ?  क्या इस देश में हिंदू सच नहीं बोल नहीं सकता है ? 


संपादकीय 
दीपक कुमार द्विवेदी 

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