किताबियों अकिताबियों द्वारा सुधा मूर्ति की ट्रोलिंग क्यों की जा रही है ?

धूर्तों की ट्रोलिंग …

( धर्म और नास्तिक के एक आचरण का उदाहरण) 

हम सब अपनी आँखों से देख लें कि कैसे “ मैं शाकाहारी हूँ “ कहने से सुधा मूर्ति को ट्रोल किया जा रहा है और न केवल सुधा मूर्ति बल्कि ऋषि सुनक भी इन धूर्तों के निशाने पर हैं । 

क्या सुधा मूर्ति ने किसी और को कहा कि आप मांसाहार न करो ? 
क्या उन्होंने किसी अन्य भोजन की निंदा करी ? 
नहीं न ? 

उसने अपने संस्कार बताये । 

ध्यान दें , वह उस काल में इंजीनियरिंग करने गयीं थी जब लेडीज़ ट्वायलट तक नहीं होते थे । 

एक स्त्री ने सनातन हिन्दू धर्म का पालन करते हुये , उच्च शिक्षा प्राप्त करी । पति, नारायण मूर्ति का सहयोग किया । बच्चों को उच्च शिक्षा मिले उसके लिये हर त्याग किया ,

पर वह आज धूर्त इकोसिस्टम के लिये खलनायक बन गयी 
क्योंकि वह एलजीबीटा नहीं है । 

वह भक्ष्याभक्ष का निश्चय करती हैं और यदि उन्हें लगता है कि विदेश यात्रा में उनके भोजन की शुचिता नहीं रह पायेगी तो वह अपना भोजन साथ लेकर चलती हैं तो इससे किसी को क्या कष्ट होना चाहिये ? 

मित्रों , 

धर्म, स्वयम् से आरम्भ होता है ।
स्वयम् को रोकता है कि क्या करे और क्या न करें ।
क्या एकदम निर्जन स्थान पर कोई अकेली स्त्री दिख जाये तो हम उसके साथ क्या व्यवहार करेंगे ? यह धर्म ( मज़हब दीन पंथ रिलीजन नहीं ) बतलाता है कि उस स्त्री की मर्यादा को ठेस न पहुँचे ।

जब कोई भी न देख रहा हो उस समय भी धर्म हमें सद्मार्ग पर रखे रहता है 

दूसरा चित्र युरोप के एक प्रसिद्ध वामपंथी राजनेता का है जो कि तर्कशक्ति में बहुत निपुण हैं । 
पर क्या इस वामपंथी राजनेता के तर्क में धर्म का पुट है ? उत्तर है कि नहीं ये तो नास्तिक हैं ।

पिछले दिनों ये एयरपोर्ट पर हुगो बॉस का मंहगा चश्मा चोरी करते हुये पकड़े गये । 
जब दुकानदार ने इन्हें पकड़ा तो हेंकडी दिखाने लगे कि यह मेरा ही चश्मा है । 

फिर जब बात आगे बढ़ी तो कहने लगे कि चूँकि उनके पास वैसा ही हूगो बॉस का चश्मा पहले भी था तो भूलवश पहन लिये । 

परन्तु झूठ कहाँ तक चलता ? सीसी टीवी के फ़ुटेज में दिखा कि इस वामपंथी ने चश्मे का टैग भी निकाला था । 

और ध्यान दें यही है धर्म और अधर्म का अंतर ..

क्या हम आप एयरपोर्ट नहीं जाते ? हमारी तो कभी इच्छा भी नहीं हुयी कि अमुक वस्तु हम चोरी से ले लें । क्योंकि धर्म यह संस्कार डाल देता है । यह क़ानून पानून की बात नहीं है , यह धारण करने की बात है । 

सुधा मूर्ति ने धर्म के जितने भी अंश को धारण किया हुआ है उतने अंश का हम पुरज़ोर समर्थन करें ।

ध्यान रखा जाये कि किताबियों और अकिताबियों के निशाने पर अब सनातन हिन्दू धर्मी महिलायें हैं और परंपरा पालन करने वाली महिलाओं पर एक योजना बद्ध रूप से आक्रमण किया जा रहा है , इसके प्रतिउत्तर के लिये हम सबको आगे आना होगा ।

साभार
राजशेखर तिवारी जी 

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