चित्तौड़ का पहला जौहर :(26 अगस्त 1303)


आज ही के दिन चित्तौड़ की "रानी पद्मिनी" के साथ 13000 अन्य वीरांगनाओं ने मलेच्छ अलाउद्दीन खिलजी और उसकी बलात्कारी सेना से अपने सतीत्व की रक्षा हेतु #जौहर (अग्नि स्नान) किया था। 

प्रश्न : क्या आप अतुलनीय वीरता की प्रतिमान इन 13000 में से माता पद्मिनी के अतिरिक्त किसी अन्य वीरांगना का "नाम" जानते है?

उत्तर : नही !! (क्यों?)

प्रश्न : क्या ये सभी 13000 तेजस्विनी स्त्रियां "केवल" राजपरिवार (क्षत्रिय कुल) की थीं?

उत्तर : नही!! अग्नि स्नान के द्वारा आत्मोत्सर्ग करने वाली इन देवियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्णों की देवियां सम्मिलित थीं!

और इस दुर्भाग्यपूर्ण जौहर के बाद हिंदू वीर योद्धाओं ने जो #साका (मृत्यपर्यंत युद्ध) किया था; उन देवतुल्य योद्धाओं में भी #चारो_वर्ण के लोग सम्मिलित थे।

सनद रहे - इन सभी अतिविशिष्ट लोगों के पास अपना जीवन बचाने का "विकल्प" था। 
▪️अगर वो "कलमा" पढ़ लेते, 
▪️हिंदू गुलाम बनना स्वीकार कर लेते,
▪️स्त्रियां अपने शील को जीवन से अधिक महत्त्वपूर्ण समझना छोड़ देती; 

तो इन्हे ऐसी कठिन "मृत्यु का वरण" नही करना पड़ता....

अब प्रश्न उठता है कि : हमारे पूर्वजों में वो क्या बात थी, जो हजारों लोग अपनी माता, बहनों, बेटियों, भाइयों, पिता, चाचा, पूरे कुल की #आहुति दे देते थे परंतु अपना #धर्म नही बदलते थे?

और आज !! 

आज इन देवतुल्य लोगों के वंशज "दो बोरी चावल" के लिए अपना  धर्म परिवर्तन कर रहे हैं? क्यों?
(नोट : यहां दो बोरी चावल सांकेतिक है और इसका तात्पर्य "तुच्छ/क्षणिक लाभ" से है।)

कृपया विचार कर के उत्तर अवश्य दीजियेगा।

अपना धर्म और सतीत्व की रक्षा हेतु आत्मोत्सर्ग करने वाली चित्तौड़ की पुण्यत्माओं की पावन स्मृतियों को अश्रुपूर्ण नमन..

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साभार
अफ्रीकन हिंदुस्तानी ( संतोष तिवारी)

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