मनुस्मृति : स्वयंभू मनु के राजकोष एवं अर्थनीति सम्बन्धी विचारों को जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

स्वयंभू मनु इस बात से परिचित थे कि राज्य का संगठन संचालन और समृद्धि के लिए कोष की आवश्यकता होती है । अतः स्वयंभू मनु द्वारा राजकोष या राज्य के प्रमुख साधन बताये गये है । बलि ( विभिन्न प्रकार के कर) शुक्ल बाजार या हाट में व्यापारियों द्वारा बिक्री को लाई गई वस्तुओं पर चुंगी और दण्डकर जुर्माना इनमें प्रथम कर व्यवस्था ही महत्वपूर्ण साधन है । अतः स्वयंभू मनु ने इसकी विस्तार के साथ विवेचना की है। 

स्वयंभू मनु का राजनैतिक अर्थशास्त्र

मनुस्मृति में राजनीतिक अर्थशास्त्र पर विचार मिलते हैं । मनु के आर्थिक विचार है इस बात से शुरू होते हैं कि राजा को बगुले की तरह चिंतन करना चाहिए । स्वयंभू मनु  का विचार है कि राज्यों को राज्य संचालन के लिए धन की अत्यंत आवश्यकता होती है , क्योंकि धन के बिना वह प्रशासन नहीं चला सकता है । इसलिए  स्वयंभू मनु ने करो की व्यवस्था की है । स्वयंभू मनु के अनुसार राज्य को कर भी कम लगाना चाहिए । स्वयंभू मनु ने राज्य को अग्र प्रकार के कर लगाने के लिए कहा है । ये कर है बलि शुल्क दण्ड और भाग बलि एक विशेष प्रकार का कर होता था जो भूभिपतियो पर लगाया जाता है । यह जनता द्वारा राजा को स्वेच्छा से दिया जाता था । शुल्क वह कर होता है जो व्यापारिक वस्तुओं पर लगाया जाता है । इसे हम चुंगी जैसा मान सकते हैं । दण्ड में राजा या उसके अधिकारियों द्वारा अपराधों पर लगाए गए जुर्माने सम्मिलित थे । स्वयंभू मनु के अनुसार दण्ड को राजकोष में अवश्य जमा करना चाहिए 


और उसका उपयोग जन कल्याण के लिए होना चाहिए । भाग उस कर को कह सकते हैं जो स्वयंभू मनु के अनुसार भूपतियो से भूमिकर के रूप में राजा लेता है । इसे आजकल लगान कहते हैं उपज का एक चौथाई तक लिया जा सकता है । इसके अलावा मनुस्मृति में तट कर नदी नालो पर भी लगता था परन्तु ब्रह्राचारियो वानप्रस्थी और संन्यासियों को कर से मुक्त रखा गया था राजपथ कर उन व्यक्तियों पर लगता था जो राजमार्ग का किसी न किसी रूप उपयोग करते थे । पशु कर पशुओं पर लगाया जाता था । मनुस्मृति में उत्पादन कर का वर्णन भी आता है। 

इसके साथ ही साथ स्वयंभू मनु ने करारोपण के महत्वपूर्ण सिद्धांतो का विवेचन भी मनुस्मृति में किया है । उनका मत था कि इस प्रकार वसूल किए जाने चाहिए जिससे गरीब जनता पर कर का भार कम पड़े और समृद्धिशाली लोगों पर कर का भार अधिक पड़े । 
स्वयंभू मनु कहते हैं कि कर न लेने से राजा के और अत्यधिक कर लेने से प्रजा के जीवन का अन्त हो जाता है। अतः राजा के द्वारा प्रजा से कर वसूल करने का कार्य निर्धारित सिद्धांतो के आधार पर किया जाना चाहिए । उनके अनुसार ये सिद्धांत इस प्रकार है । 


1.प्रजा रक्षण का सिद्धांत 

स्वयंभू मनु के अनुसार कर कर लेने का उद्देश्य और आधार प्रजा को रक्षण है अतः राजा द्वारा कर लेने के बदले प्रजा के जीवन और संपत्ति की रक्षा की जानी चाहिए और कर भी इसी दृष्टि से ही लिए जाने चाहिए । इसमें यह भाव निहित है कि यदि राजा प्रजाजन  की रक्षा करने में असमर्थ हो , उसे प्रजा से कर लेने का कोई अधिकार नहीं है । 


2.लाभ पर कर का सिद्धांत 

इसका आशय यह है कि किसी व्यवसाय में सभी प्रकार के व्यय देने के पश्चात जो विशुद्ध लाभ होता है , उस पर ही कर लगाए जाने चाहिए । इस प्रकार मनु का विचार है कि मूलधन एवं व्यवसाय सम्बन्धी कार्यों में लगे हुए धन को करमुक्त रखा जाना चाहिए

3.राष्ट्रीय योजना सिद्धांत 

स्वयंभू मनु के अनुसार राजा के लिए यह जरूरी है कि उसके कारण राष्ट्र को संपन्न बनाने हेतु राष्ट्रीय योजनाओं को दृष्टि को रखते हुए ही कर लगाए जाने चाहिए 

4. व्यथा ( कष्ट) मुक्ति का सिद्धांत 

राजा के द्वारा प्रजाजन से कर इस प्रकार वसूल किए जाने चाहिए कि कर देने में प्रजाजन को किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव न हो । स्वयंभू मनु के अनुसार,   जिस प्रकार जोंक ,बछड़ा और मधुमक्खी थोड़े थोड़े अपने खाद्य क्रमशः रक्त दूध और मधु ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार राजा को प्रजा से थोड़ा थोड़ा वार्षिक ग्रहण करना चाहिए । 



5.अधिक कर निषेध सिद्धांत 

स्वयंभू मनु इस बात के विरोधी हैं कि राजा प्रजाजन पर उसकी सामर्थ्य के बाहर कर लगाए । उनके अनुसार , जो राजा मूर्खतावश अपने अधीन प्रजाजन से अधिक कर वसूल करता है । वह स्वयं अपना और अपने बंधु बांधवों का नाश करता है । 

मनुस्मृति में करो की दर के विषय में कुछ बातें कही गई
 व्यापारियों से कर उनके सभी प्रकार के लाभ व व्यय को देखकर लिया जाना चाहिए । राजा को कर के रूप में पशु तथा स्वर्ण का पचासवां भाग और भूमि की श्रेष्ठता , उपजाऊपन एवं परिश्रम आदि का विचार कर धान्य का छठा , आठवां या बारहवां भाग ग्रहण करना चाहिए । वृक्ष मांस ,घी गंध औषधि कपड़ा , मिट्टी के बर्तन और पत्थर की बनी सभी वस्तुओं का छटा भाग कर के रूप में लिया जाना चाहिए । राजा को चाहिए कि वह सब्जी आदि समान्य वस्तुओं की खरीद और बिक्री से जीने वाले साधरण व्यक्तियों से बहुत कम कर ले । करीगर बढ़ई बोझ ढोने वाले मजदूर, आदि से राजा प्रतिमास एक दिन काम करावे । राजा को अन्धे जड़ ,पंगु और 70 वर्ष से अधिक बूढ़े व्यक्तियों से कर नहीं लेना चाहिए । स्वयंभू मनु के अनुसार राजा को किसी प्रकार की स्थिति में वेदपाठी से कर नहीं लेना चाहिए तथा उसके द्वारा ऐसा प्रयत्न किया जाना चाहिए कि ब्रह्माण भूख से पीड़ित न हो ।

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