मनुष्य - निर्माण का कार्य


जनसाधारण को शिक्षित करना तथा उनके द्वारा चुने गए योग्य व्यक्तियों को राष्ट्रहितकारी कार्यों में संलग्न बनाए रखने का अपना कार्य तभी सम्भव है और हम तब ही उसके पात्र बन सकते हैं, जब हमारा समाज के साथ आत्मीयतापूर्ण निकट का समय हो। विभिन्न छोटे-बड़े क्षेत्रों में चलनेवाली अपनी संघ शाखाएँ ऐसी होनी चाहिए कि जिनसे उन क्षेत्रों के सब लोगों का संबध स्थापित होता हो। उस क्षेत्र में यदि स्फोटक परिस्थिति का खतरा हो तो सब लोगों के सामंजस्य से उसका निराकरण करने लायक हमारे संबंध समाज के साथ चाहिए। प्रारभ से ही शाखा संबधी हमारी कल्पना यही है। शाखाओं में ऐसे कार्यकर्ता तैयार होने चाहिए, जो अपने चारों ओर के समाज में व्याप्त अवस्था को समझते हों। 

     ऐसे कार्यकर्ता तैयार करना ही सब समस्याओं का एकमात्र उत्तर हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। अच्छे व्यक्ति तैयार करने हैं। चारों ओर देखनेवाले आदमी तैयार करने हैं। सबको साथ में लेकर चलनेवाले लोग होने चाहिए और यह सब प्रत्येक शाखा क्षेत्र में होना आवश्यक है।

     यह कार्य बातें करने से नहीं होगा। धीरे-धीरे विस्तार करते हुए शीघ्रातिशीघ्र नगर के प्रत्येक छोटे क्षेत्र तक और जिले के प्रत्येक छोटे कस्बे में ऐसे लोग खड़े होने चाहिए, जो अपने सपूर्ण जीवन की शक्ति लगाकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाने में यशस्वी होंगे। यह अपनी ओर से सदा दोहराया जाता रहा है कि मनुष्य तैयार करना सर्वाधिक महत्त्व की बात है ओर जितने प्रमाण में यह कार्य होगा उतने प्रमाण में बाकी सब समस्याऍ॓ सुलझती जाएँगी।


श्री गुरुजी समग्र : खंड-2 : पृष्ठ-313

टिप्पणियाँ