नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे लोगों को कट्टर चरमपंथी मुसलमानों ने साज़िश रचकर जिस तरह से फसाया, वह सबक़ सीखने लायक़ है।

नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे लोगों को कट्टर चरमपंथी मुसलमानों ने साज़िश रचकर जिस तरह से फसाया, वह सबक़ सीखने लायक़ है। कमलेश तिवारी का भी सबक़ याद रखना चाहिये। मुसलमानों का ओवर ऑल मानसिक स्तर बहुत नीचे है। कोई भी उन्हें अल्लाह, जन्नत और मोहम्मद का वास्ता देकर भड़का सकता है। आप इसी फ़ेसबुक पर एक फ़र्ज़ी फ़ोटो किसी मुस्लिम ग्रुप में डाल दीजिए कि चाँद पर चन्द्रयान ने एक ऐसा फ़ोटो खिचा है जिसमें स्पष्ट रूप से अरबी में अल्लाह लिखा हुआ दिख रहा है। फिर देखिए, उस फ़ोटो के नीचे हज़ारों मुसलमानों के माशाल्लाह, शुभानअल्लाह लिखा हुआ कमेंट आ जाएगा। एक को भी नहीं लगेगा कि यह एक मजाक है। क्यूँकि वह समुदाय ही मानसिक स्तर पर एक मजाक बना हुआ है और इनको जो हर शुक्रवार पढ़ाया बताया जाता है, उसके पीछे का लक्ष्य भी वहीं होता है, वरना कौन मूर्ख होगा जो मरने के बाद किए गए वादों पर आज का असल जीवन तबाह करेगा? 
क्या स्वर्ग की कल्पना हिंदुओं में नहीं है या ईसाईयों में नहीं है? लेकिन सिवाय मुसलमानों के अपनी वास्तविक ज़िंदगी जहन्नुम बनाने वाला कोई नहीं। 
इनमें सुधार कब होगा, नहीं होगा, इसकी चिंता जिसको करना होगा करेगा, पर हम लोगों को अपनी और अपने समाज की चिंता करनी ज़रूरी है। वरना किसी मुसलमान के भड़काने पर भाव भाव में बोलती नूपुर शर्मा हैं और मारे जाते हैं राजस्थान के टेलर और महाराष्ट्र के दवा व्यवसायी। यदि आपकी क़िस्मत कमलेश तिवारी वाली है तो ख़ुद मारे जाएँगे। 

हिंदुओं और उनके नेताओं को यह भी समझना ज़रूरी है कि अल्लाह और मोहम्मद को अपशब्द कहकर आप न हिंदुओं में कोई एकता उत्पन्न कर रहे हैं, न मुसलमानों में कोई सुधार कर रहे हैं, उल्टा मुसलमानों को भड़काने के लिए उनके मुल्लों के हाथ में एक हथियार दे रहे हैं। आप मोहम्मद और अल्लाह की सच्चाई बताने के नाम पर लेख लिखते हैं, वह समाज उसे पहले से जानता है। और जो नहीं जानता, वह उस मूर्खता से इस्लाम से घृणा नहीं करने वाले, उल्टा उस गंदगी को ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करने वाले हैं क्यूँकि वहाँ सही ग़लत का निर्णय तर्क के आधार पर नहीं होना है, बल्कि जो लिखा है वह सब सही ही है।

यदि हिंदू कुछ कर सकते हैं तो केवल इतना कि मुसलमानों को यह याद दिलाते रहे है कि वह अरब से गदहों पर बांधकर इस देश में नहीं आये हैं बल्कि इसी देश की पैदाइश हैं। दूसरी बात यह कि इस देश में कम से कम सात आठ सदी तक मुसलमान होना फ़ायदे का सौदा रहा है, इसीलिए लोग मुसलमान होते रहे हैं। लोकतंत्र में उस स्थान पर मज़बूती से खड़ा होइए जहां लौंग टर्म में हिंदू होना फ़ायदेमंद हो। गाय पालना फ़ायदेमंद था तो इसी देश में हिंदुओं ने हज़ारों साल तक गाय की पूजा की और आज ट्रेक्टर आ गया, जर्सी आ गई तो महज़ तीन दशक के भीतर गाय समस्या बन गई। 

याद रखिए, इस्लाम से सबसे पहला प्रताड़ित व्यक्ति हिंदू या ईसाई नहीं है, स्वयं मुसलमान है जो अपने इस असली जीवन को भविष्य के एक नक़ली वादे पर दाव पर लगा देता है।

कल की संसद में हुई घटना भी पुराने घटनाओं की ही सततता है, उससे भिन्न कुछ भी नहीं। दानिश अली के भड़काने पर रमेश विधुनी ने जो कहा वह संसदीय मर्यादा को तारतार करने वाला था। लोग यह याद नहीं रखते कि नूपुर शर्मा के बयान से पूर्व हिंदुओं के देवी देवता के बारे में क्या कहा गया, उसी तरह कोई भी दानिश अली के लफ़ंगई को नहीं याद रखेगा। अतः इनके काइयाँपने को पहचानिए, संभलकर बोलिये। 

हाँ, यदि आपके पास कोई विक्टिम कॉर्ड है तो अवश्य खेलिए, इसकी सीख इस्लाम ही पूरी दुनिया में देता है।



डॉ भूपेंद्र सिंह
लोकसंस्कृति विज्ञनी 

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