भारत के सांस्कृतिक मूल्य और श्री कृष्ण

भारत को समझने के लिए भारत की संस्कृति के मूल, और संस्कृति को समझने के लिए भारत की सांस्कृतिक धरोहर के स्पर्श में आना बहुत अनिवार्य है । जो संतति भारत की सांस्कृतिक धरोहरों और पौराणिक कथाओं से दूरी पर बैठी है, वो सिर्फ अल्प ज्ञान के चलते उनका मजाक बना सकते है । इक्का दुक्का विकृति का उदाहरण उठाकर हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का मजाक बनाना अब एक नया फैशन बन गया है ।

विकृतियां सत्य नहीं होती, सत्य होती है संस्कृति ।
विकार सत्य नहीं होते, सत्य होता है संस्कार ।।

और सत्य है श्रीकृष्ण 😍

इसीलिये उस सत्य को, उस मूल को, उस मर्म को, उस अर्थ को स्पर्श करना जरूरी है अगर भारत को समझना है तो भारत के मूल, भारत के मर्म, भारत की चिति को जानने के लिए उसके सांस्कृतिक मूल्यों तक जाना पड़ेगा क्योकि सभ्यता के परिष्कृत रूप से सभ्यता को जाना जाता है ।

भारत को जानने के लिए उसके परिष्कृत स्वरूप को जानना जरूरी है जो हमारी आत्मा में पलता है, हमारे संस्कारो में जीवित रहता है और हजारो लाखो गांवों में दिख जाता है । भारत की यही चिति, भारत के यही मूल्य आपको भारत के पुरुषों, महिलाओं, त्यौहारो, प्रक्रमो और उपक्रमो में दिख जाएंगे ।

भारत के उन्ही सांस्कृतिक मूल्यों को हम उन चरित्रों के माध्यम से जान सकते है । उन चरित्रों में से सबसे महत्वपूर्ण चरित्र है भगवान श्रीकृष्ण का, जो भारत के मर्म को सबसे ज्यादा स्पर्श करता है । कृष्ण से भारत का जुड़ाव क्या है ? भारत के विचारो और मूल्यों का मूर्तरूप है श्रीकृष्ण । 

कृष्ण प्रतीक है आसक्ति और अनाशक्ति के बीच के । कही जन्म लेते है और माँ बाप से बहुत दूर पाले जाते है । जहाँ पाले जाते है वही से दूर जाते वक्त माँ यशोदा को सिखाते है कि पुत्र आशक्ति से प्रबल और प्रखर बनते है । अनाशक्ति से पुत्रो की वृद्धि होती है ।

गोपियों से दूर होते हुए भी उनके हृदय में रहकर वो सिखाते है कि कैसे अनाशक्त प्रेम हृदयों में खड़ा होता जो मोक्ष की तरफ ले जाता है । 

जन्माष्टमी की बधाई

क्रमशः

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