ऋषि सुनक स्वामीनारायण मंदिर में

मनुष्य देवता के स्तर तक पहुंच सकता है और देवता मनुष्य रुप में आ सकते हैं, ये अवधारणा केवल हिंदू धर्म में ही है; इसलिए रामकृष्ण मिशन के मठों में रामकृष्ण परमहंस की मूर्ति मां काली के साथ ही पूजित होती है और न जाने ऐसे कितने ही मत और पंथ हिंदू धर्म के अंदर है जहां उस पंथ के प्रवर्तक या आचार्य को देवता मानकर पूजा जाता है।

दादूपंथी, रैदासी, कबीरपंथ वाले ऐसे ही मान्यताओं पर चलते हैं और वो भी हिंदू ही हैं। हमारे आपके जितने ही हिंदू।

वृक्षों में, नदियों में, सांप में, यहां तक कि कण- कण में शंकर मानने वाले हिंदू धर्म में अगर किसी ने अपने गुरु, प्रवर्तक या आचार्य को देवता मानकर उसकी मंदिर बना दी और बाकी देवी देवताओं के साथ उसे भी पूज रहा है तो वो कहीं से भी हिंदू धर्म के विरुद्ध काम नहीं कर रहा है।

ऐसे में ऋषि सुनक अगर स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर में गए तो वो एक हिंदू मंदिर में, एक हिंदू के रूप में और हिंदुओं के बीच में गए और विश्व के समक्ष अपनी हिंदू आस्था का खुला प्रदर्शन किया।

सेमेटिक अवधारणाओं को हिंदुत्व पर थोपने का ही दुष्परिणाम है नित्य विभिन्न संप्रदायों द्वारा खुद को हिंदू न कहने की घोषणाएं। भारत भूमि के लिए हम कहते हैं- जितनी राहें उतने दर्शन चिंतन का चैतन्य धरा......तो यह कथन इस पवित्र भूमि पर जन्में हर मत, विचार, पंथ और दर्शन के लिए होती है।

वैचारिक स्वातंत्र्य और उपासना की स्वतंत्रता ही हिंदुत्व के विचार गंगा की निर्मल धाराएं हैं, इसे बाधित किया तो यह नदी भी सूख जाएगी।

Abhijeet Singh

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